नई दिल्ली: जर्मन लेखक फ्रेंज काफका ने एक सदी पहले अपने नाटक ‘द ट्रायल’ में यह सवाल उठाया था कि क्या आदमी बिना किसी पाबंदी के स्वतंत्र है? काफका की सुप्रसिद्ध लघुकथा को हिंदी नाटक ‘गिरफ्तारी’ में रूपांतरित किया गया है जिसमें मौजूदा भारत के हालात पर ध्यान दिया गया है. हिंदी नाटक की निदेशक रमा पांडेय को लगता है कि भारत के मौजूदा हालात भी 20वीं सदी की शुरूआत के यूरोप जैसे हैं.
रमा के अनुसार उनका नाटक समकालीन व्यवस्था को उजागर करने का प्रयास करता है जिस तरह काफका ने अपने समय की नौकरशाही के लिए किया था.
उन्होंने कहा, ‘‘काफका ने अपने नाटक के हर दृश्य में जिन भावों का इस्तेमाल किया उनमें उस समय की सामाजिक व्यवस्था नजर आती है. हमने इसे सरल करने और यहां की स्थानीय स्थितियों के अनुरूप ढालने का प्रयास किया है. यह कहानी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की और उसके कारणों की है.’’ ‘द ट्रायल’ का जर्मन में मूल शीषर्क ‘देर प्रोसेज’ था जिसे 1914-15 में लिखा गया था. रमा पांडेय ने कहा कि समाज में और यहां तक कि आधुनिक जगत में बहुत कुछ नहीं बदला है.
हाल ही में दिल्ली में नाटक का मंचन किया गया था. रमा ने एक साल की अवधि में नाटक लिखा और इसका निर्देशन किया. इस दौरान उन्होंने काफका की और उन पर लिखी गयीं करीब 40 पुस्तकों को पढ़ा.
न्यूज एजेंसी भाषा से इनपुट