खुशवंत सिंह की पुस्तक 'कैप्टन अमरिंदर सिंह : द पीपल्स महाराजा' का कवर...
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख पद के लिए अमरिंदर सिंह के दावे पर जब कांग्रेस हाईकमान ने कान नहीं दिया, तो पार्टी की राज्य इकाई टूट की कगार पर पहुंच गई - अमरिंदर सिंह और प्रताप सिंह बाजवा मीडिया में खुलेआम एक दूसरे को लताड़ रहे थे. अमरिंदर और उनके वफादारों का दावा था कि वह पंजाब में कांग्रेस के 'महानतम नेता' हैं, वहीं प्रताप सिंह बाजवा और उनके समर्थकों ने अमरिंदर पर सक्षम और भरोसेमंद नहीं होने का आरोप लगाया, क्योंकि उन्हीं की देखरेख में हुए 2007 और 2012 के लगातार चुनावों में पार्टी हारी थी. पार्टी में इस अंदरूनी कलह की वजह से कांग्रेस विधायकों तथा अन्य पार्टी नेताओं के दिल्ली के लगातार चक्कर लगते रहे, और प्रत्येक ने हाईकमान के सामने अपने-अपने नेता का पक्ष रखा.
राज्य में बन गए इन हालात ने अमरिंदर के कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ रिश्तों की भी परीक्षा ली, जो उनके दावे पर विचार करने के लिए तैयार नहीं था. सोनिया गांधी के साथ बेहद मैत्रीपूर्ण संबंध रखने वाले अमरिंदर अचानक ही महसूस करने लगे थे कि गांधी परिवार उनसे कन्नी काट रहा है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, जिन्हें अमरिंदर दून स्कूल में अपने बेटे रनिंदर से मिलने जाते वक्त अक्सर साथ ले जाया करते थे, अब इस बात पर बज़िद थे कि वह अपने पिता के मित्र के दावे पर विचार नहीं करेंगे. भले ही सोनिया गांधी पंजाब में अमरिंदर को वापस शीर्ष पर लाने पर विचार करने के लिए तैयार थीं, राहुल गांधी का पार्टी की कमान प्रताप सिंह बाजवा से वापस लेने का कतई इरादा नहीं था.
2014 के बीतते-बीतते कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और अमरिंदर के बीच एक के बाद एक हुई बैठकों के बावजूद उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आई. फिर सभी को हैरान करते हुए अचानक ऐसा लगने लगा कि वह अपनी काबिलियत और तजुर्बे से किसी अन्य राजनैतिक दल को लाभान्वित कर सकते हैं. उनके वफादारों और सलाहकारों ने सुझाया कि वह अपने विकल्प खुले रखें, क्योंकि उन सलाहकारों और वफादारों का खुद का भविष्य भी उन्हीं के भविष्य पर निर्भर करता था. अनिश्चितता के इस दौर में उनकी टीम ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का हिस्सा बनाने पर भी विचार किया, जो खुद ही अपने पुराने और वरिष्ठ साझीदार शिरोमणि अकाली दल से संबंधों की समीक्षा कर रही थी. लेकिन फरवरी, 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से मिली करारी हार ने बीजेपी को पुनर्विचार पर विवश कर दिया. (आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली ती, और शेष तीन सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं.)
जब बीजेपी के साथ अमरिंदर सिंह की करीबी की ख़बरों के बाद कांग्रेस हाईकमान टस से मस नहीं हुआ, तो अमरिंदर ने अपनी कोशिशों को एक कदम आगे बढ़ाया. उन्हें ढके-छिपे तरीके से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर बार-बार सवाल खड़े किए. इस संदर्भ में उनकी ओर से पहला हमला नवंबर, 2014 में किया गया था.
कांग्रेस उपाध्यक्ष जो बदलाव करना चाह रहे थे, उसके लिए की जा रही मांग पर प्रतिक्रिया में अमरिंदर ने कहा कि सोनिया और राहुल गांधी को अन्य वरिष्ठ नेताओं की बात भी सुननी चाहिए. यह बयान देने के पीछे उनका मकसद सिर्फ यह बताना था कि उनके जैसे वरिष्ठ नेता अब भी अहम हैं, लेकिन इस बयान ने गांधी परिवार से उनकी दूरियों को बढ़ा दिया. राहुल गांधी, जो उन्हीं दिनों एक अनजानी जगह पर छुट्टियां मनाकर लौटे थे और काफी जोश में दिख रहे थे, ने इसे अच्छा नहीं समझा और इसे टकराव वाली हरकत माना.
इस तरह बेहद निचले स्तर तक पहुंचने के बाद अमरिंदर और गांधी परिवार के संबंध बिल्कुल ठंडे पड़ गए. किसी तरह भी किसी सुलह के कोई आसार नहीं दिखने की वजह से अमरिंदर के ड्राइंग रूप में चर्चा का मुख्य विषय होता था - अब क्या...? पंजाब में अमरिंदर के कद, तजुर्बे और लोकप्रियता को देखते हुए यह सोचना मुमकिन नहीं था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी कोई भूमिका न हो. लेकिन कांग्रेस हाईकमान इस ज़मीनी सच्चाई के बावजूद आंखें मूंदे बैठा था.
'अपनी पार्टी बनाओ' - यह सलाह थी, जो लगभग हर शख्स ने उन्हें दी, क्योंकि उस वक्त उनके सम्मान को ठेस पहुंची थी और सम्मान वह शह है, जिसे लेकर अमरिंदर ने कभी समझौता नहीं किया. कुछ का कहना है कि बात जब गांधी परिवार की हो, उन्होंने हमेशा ही समझौता किया. कुछ का यह भी कहना है कि चापलूसी (भारतीय बोलचाल में चमचागिरी कहा जाता है) और दूसरे व्यक्ति के विचारों का सम्मान करने में फर्क होता है, जिसमें से अमरिंदर और गांधी परिवार के रिश्तों में हमेशा दूसरी बात ही सच रही है. दरअसल, पंजाब से जुड़े अहम मुद्दों को लेकर गांधी परिवार के सामने खड़े हो जाने की उनकी काबिलियत ने ही उन्हें बहुतों का पसंदीदा बनाया है.
बहरहाल, चूंकि वह पूरी तरह संभ्रांत पुरुष रहे हैं, अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी का बेहद सम्मान किया है. सोनिया के लिए यह आदर इसलिए नहीं है, क्योंकि वह पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी हैं, या उनके स्कूली साथी की पत्नी हैं, बल्कि सोनिया की पार्टी का नेतृत्व करने की क्षमता की वजह से है. उनका ज़िक्र वह हमेशा 'श्रीमती गांधी' के रूप में करते हैं, और अक्सर इस बात के लिए आभार व्यक्त करते हैं कि सोनिया ने उन्हें इतने लंबे वक्त तक पंजाब में कांग्रेस का नेतृत्व करने का अवसर दिया और मुख्यमंत्री भी बनाया.
यह सच्चाई कि वह न कभी चापलूस रहे हैं, और न कभी रहेंगे, एक बार फिर साबित हो गई. कांग्रेस उपाध्यक्ष द्वारा उनके साथ किए जा रहे बर्ताव से घुटन और अपमान महसूस करने की वजह से उन्होंने अपनी खुद की पार्टी खड़ी करने पर विचार किया, बिल्कुल वैसे ही, जैसा उन्होंने 1992 में किया था. उनका संयम तब टूट गया था, जब सितंबर, 2015 के अंत में पंजाब कांग्रेस में उत्पन्न अलगाव को दूर करने के उद्देश्य से 10, जनपथ पर बुलाई गई एक बैठक के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जो उनके जैसे वरिष्ठ नेता को मिलना चाहिए था. यही वह बैठक थी, जब सोनिया गांधी को राहुल गांधी को यह याद दिलाना पड़ा था कि वह अपने पिता के मित्र से बात कर रहे हैं, और उसी के बाद वह कुछ शांत हुए. इस बर्ताव से बेतरह तकलीफ महसूस करने वाले अमरिंदर ने जानी-मानी पत्रकार सागरिका घोष को दिए एक साक्षात्कार (यह टाइम्स ऑफ इंडिया में 21 सितंबर, 2015 को प्रकाशित हुआ) में कहा था कि राहुल गांधी को 'ज़मीनी हकीकत को समझने' की ज़रूरत है. इसी साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बिल्कुल साफ कर दिया था कि वह संभवतः बहुत जल्द अपनी पार्टी खड़ी कर लेंगे...
खुशवंत सिंह की पुस्तक 'कैप्टन अमरिंदर सिंह : द पीपल्स महाराजा' के अंश. पुस्तक हे हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित. अंश प्रकाशित करने की अनुमति हे हाउस इंडिया द्वारा. स्टोरों में तथा ऑनलाइन उपलब्ध.
राज्य में बन गए इन हालात ने अमरिंदर के कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के साथ रिश्तों की भी परीक्षा ली, जो उनके दावे पर विचार करने के लिए तैयार नहीं था. सोनिया गांधी के साथ बेहद मैत्रीपूर्ण संबंध रखने वाले अमरिंदर अचानक ही महसूस करने लगे थे कि गांधी परिवार उनसे कन्नी काट रहा है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, जिन्हें अमरिंदर दून स्कूल में अपने बेटे रनिंदर से मिलने जाते वक्त अक्सर साथ ले जाया करते थे, अब इस बात पर बज़िद थे कि वह अपने पिता के मित्र के दावे पर विचार नहीं करेंगे. भले ही सोनिया गांधी पंजाब में अमरिंदर को वापस शीर्ष पर लाने पर विचार करने के लिए तैयार थीं, राहुल गांधी का पार्टी की कमान प्रताप सिंह बाजवा से वापस लेने का कतई इरादा नहीं था.
2014 के बीतते-बीतते कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और अमरिंदर के बीच एक के बाद एक हुई बैठकों के बावजूद उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आई. फिर सभी को हैरान करते हुए अचानक ऐसा लगने लगा कि वह अपनी काबिलियत और तजुर्बे से किसी अन्य राजनैतिक दल को लाभान्वित कर सकते हैं. उनके वफादारों और सलाहकारों ने सुझाया कि वह अपने विकल्प खुले रखें, क्योंकि उन सलाहकारों और वफादारों का खुद का भविष्य भी उन्हीं के भविष्य पर निर्भर करता था. अनिश्चितता के इस दौर में उनकी टीम ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का हिस्सा बनाने पर भी विचार किया, जो खुद ही अपने पुराने और वरिष्ठ साझीदार शिरोमणि अकाली दल से संबंधों की समीक्षा कर रही थी. लेकिन फरवरी, 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से मिली करारी हार ने बीजेपी को पुनर्विचार पर विवश कर दिया. (आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली ती, और शेष तीन सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं.)
जब बीजेपी के साथ अमरिंदर सिंह की करीबी की ख़बरों के बाद कांग्रेस हाईकमान टस से मस नहीं हुआ, तो अमरिंदर ने अपनी कोशिशों को एक कदम आगे बढ़ाया. उन्हें ढके-छिपे तरीके से राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर बार-बार सवाल खड़े किए. इस संदर्भ में उनकी ओर से पहला हमला नवंबर, 2014 में किया गया था.
कांग्रेस उपाध्यक्ष जो बदलाव करना चाह रहे थे, उसके लिए की जा रही मांग पर प्रतिक्रिया में अमरिंदर ने कहा कि सोनिया और राहुल गांधी को अन्य वरिष्ठ नेताओं की बात भी सुननी चाहिए. यह बयान देने के पीछे उनका मकसद सिर्फ यह बताना था कि उनके जैसे वरिष्ठ नेता अब भी अहम हैं, लेकिन इस बयान ने गांधी परिवार से उनकी दूरियों को बढ़ा दिया. राहुल गांधी, जो उन्हीं दिनों एक अनजानी जगह पर छुट्टियां मनाकर लौटे थे और काफी जोश में दिख रहे थे, ने इसे अच्छा नहीं समझा और इसे टकराव वाली हरकत माना.
इस तरह बेहद निचले स्तर तक पहुंचने के बाद अमरिंदर और गांधी परिवार के संबंध बिल्कुल ठंडे पड़ गए. किसी तरह भी किसी सुलह के कोई आसार नहीं दिखने की वजह से अमरिंदर के ड्राइंग रूप में चर्चा का मुख्य विषय होता था - अब क्या...? पंजाब में अमरिंदर के कद, तजुर्बे और लोकप्रियता को देखते हुए यह सोचना मुमकिन नहीं था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी कोई भूमिका न हो. लेकिन कांग्रेस हाईकमान इस ज़मीनी सच्चाई के बावजूद आंखें मूंदे बैठा था.
'अपनी पार्टी बनाओ' - यह सलाह थी, जो लगभग हर शख्स ने उन्हें दी, क्योंकि उस वक्त उनके सम्मान को ठेस पहुंची थी और सम्मान वह शह है, जिसे लेकर अमरिंदर ने कभी समझौता नहीं किया. कुछ का कहना है कि बात जब गांधी परिवार की हो, उन्होंने हमेशा ही समझौता किया. कुछ का यह भी कहना है कि चापलूसी (भारतीय बोलचाल में चमचागिरी कहा जाता है) और दूसरे व्यक्ति के विचारों का सम्मान करने में फर्क होता है, जिसमें से अमरिंदर और गांधी परिवार के रिश्तों में हमेशा दूसरी बात ही सच रही है. दरअसल, पंजाब से जुड़े अहम मुद्दों को लेकर गांधी परिवार के सामने खड़े हो जाने की उनकी काबिलियत ने ही उन्हें बहुतों का पसंदीदा बनाया है.
बहरहाल, चूंकि वह पूरी तरह संभ्रांत पुरुष रहे हैं, अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी का बेहद सम्मान किया है. सोनिया के लिए यह आदर इसलिए नहीं है, क्योंकि वह पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी हैं, या उनके स्कूली साथी की पत्नी हैं, बल्कि सोनिया की पार्टी का नेतृत्व करने की क्षमता की वजह से है. उनका ज़िक्र वह हमेशा 'श्रीमती गांधी' के रूप में करते हैं, और अक्सर इस बात के लिए आभार व्यक्त करते हैं कि सोनिया ने उन्हें इतने लंबे वक्त तक पंजाब में कांग्रेस का नेतृत्व करने का अवसर दिया और मुख्यमंत्री भी बनाया.
यह सच्चाई कि वह न कभी चापलूस रहे हैं, और न कभी रहेंगे, एक बार फिर साबित हो गई. कांग्रेस उपाध्यक्ष द्वारा उनके साथ किए जा रहे बर्ताव से घुटन और अपमान महसूस करने की वजह से उन्होंने अपनी खुद की पार्टी खड़ी करने पर विचार किया, बिल्कुल वैसे ही, जैसा उन्होंने 1992 में किया था. उनका संयम तब टूट गया था, जब सितंबर, 2015 के अंत में पंजाब कांग्रेस में उत्पन्न अलगाव को दूर करने के उद्देश्य से 10, जनपथ पर बुलाई गई एक बैठक के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जो उनके जैसे वरिष्ठ नेता को मिलना चाहिए था. यही वह बैठक थी, जब सोनिया गांधी को राहुल गांधी को यह याद दिलाना पड़ा था कि वह अपने पिता के मित्र से बात कर रहे हैं, और उसी के बाद वह कुछ शांत हुए. इस बर्ताव से बेतरह तकलीफ महसूस करने वाले अमरिंदर ने जानी-मानी पत्रकार सागरिका घोष को दिए एक साक्षात्कार (यह टाइम्स ऑफ इंडिया में 21 सितंबर, 2015 को प्रकाशित हुआ) में कहा था कि राहुल गांधी को 'ज़मीनी हकीकत को समझने' की ज़रूरत है. इसी साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बिल्कुल साफ कर दिया था कि वह संभवतः बहुत जल्द अपनी पार्टी खड़ी कर लेंगे...
खुशवंत सिंह की पुस्तक 'कैप्टन अमरिंदर सिंह : द पीपल्स महाराजा' के अंश. पुस्तक हे हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित. अंश प्रकाशित करने की अनुमति हे हाउस इंडिया द्वारा. स्टोरों में तथा ऑनलाइन उपलब्ध.
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