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जिन लोगों के हाथ-पैर नहीं होते, उन्हें कहां लगाई जाती है स्याही?

Voting Ink: चुनावी स्याही का इस्तेमाल पिछले कई दशकों से हो रहा है, वोट डालने आए लोगों की उंगली पर इस स्याही का निशान लगाया जाता है, जो आसानी से नहीं मिटता है.

जिन लोगों के हाथ-पैर नहीं होते, उन्हें कहां लगाई जाती है स्याही?
वोटिंग इंक का इस्तेमाल

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण की वोटिंग चल रही है. दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जिसके बाद 14 नवंबर को नतीजे सामने आएंगे. वोटिंग के लिए सुबह से ही लोग लाइनों में लग जाते हैं और लोकतंत्र के पर्व में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करवाते हैं. इस दौरान कई तरह के वोटर्स पोलिंग बूथ पर पहुंचते हैं, जिनकी उंगली पर वोटिंग वाली स्याही लगाई जाती है. हालांकि लोगों के मन में ये भी सवाल होता है कि जिन वोटर्स के हाथ या पैर नहीं होते हैं, उन्हें कैसे और कहां स्याही लगाई जाती है. आइए जानते हैं कि ऐसे मामलों में क्या होता है.

चुनावी स्याही लगाने की वजह

वोटिंग के दौरान स्याही इस वजह से लगाई जाती है, क्योंकि इससे दोबारा वही शख्स वोट डालने नहीं पहुंच सकता है. ये स्याही एक से दो महीने तक छूटती नहीं है. इसे आमतौर पर बाएं हाथ की तर्जनी उंगली में लगाया जाता है. वोटिंग के अलावा पोलियो ड्रॉप पिलाने के बाद भी बच्चों की उंगली में ये स्याही लगाई जाती है. 

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हाथ या उंगलियां नहीं होने पर कहां लगती है स्याही?

जिन लोगों के हाथ या फिर उंगलियां नहीं होती हैं, उनके पैर पर ये स्याही लगाई जाती है. हर बार वोटिंग के बीच ऐसी कई तस्वीरें सामने आती हैं, जिनमें पैर पर वोटिंग इंक लगाई जाती है. ऐसे लोगों के बाएं पैर के अंगूठे पर चुनावी स्याही लगाई जाती है, जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो वोट डाल चुके हैं. जिन लोगों का एक हाथ नहीं होता है, उनके दाएं हाथ में भी निशान लगाया जा सकता है. वहीं हाथ और पैर नहीं होने की स्थिति में शरीर में किसी एक जगह ये निशान लगाया जा सकता है. चुनाव अधिकारी तय करते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या करना है. 

कहां बनती है ये अमिट स्याही

मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड नाम की कंपनी पिछले कई दशकों से ये स्याही बना रही है. हर बार चुनाव आयोग की तरफ से लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए इस स्याही का ऑर्डर दिया जाता है. 1962 के चुनावों में पहली बार इस कंपनी की बनाई गई स्याही का इस्तेमाल किया गया था. सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल होने के चलते इसका निशान कई दिनों तक मिटता नहीं है. 

(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a press release)

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