
Link found between Thumb and Brain size: आम तौर पर ठेंगा दिखाने खराब माना जाता है. आपने किसी को एक काम कहा, उसने सामने से ठेंगा दिखा दिया. यानी वो काम नहीं करेगा! यही ठेंगा ऊपर की ओर (Thumbs Up) हो तो, काम नक्की, ओके या सहमति. और ठेंगा नीचे की ओर (Thumbs Down) हो तो 'ठीक नहीं' (Not OK), मनाही, असहमति. अंगूठे का ही सब खेल है जी! अनपढ़ हैं तो अंगूठा ही उनका हस्ताक्षर. बैंक से पैसे निकालने से लेकर जमीन-जायदाद बेचने तक, उनके लिए अंगूठे का निशान ही काफी. और पढ़े-लिखें हैं तो भी अंगूठा जरूरी. आधार के लिए, स्कूल-कॉलेज या ऑफिस में अटेंडेंस के लिए, बायोमीट्रिक पहचान के लिए.
ज्योतिष की दृष्टि से भी आपका अंगूठा काफी कुछ कहता है. और एक्यूप्रेशर चिकित्सा में भी तो इसका खूब इस्तेमाल है जी! के लिए भी. क्या इसके अलावा भी अंगूठा कुछ कहता है? कहता है न! किसी इंसान का अंगूठा ये बताता है कि वो कितना चतुर है. यानी कि दिमाग से वो कितना तेज है. चौंक गए न!
जितना बड़ा अंगूठा, उतना बड़ा दिमाग
तो किसी इंसान के बारे में अंदाजा लगाना हो, तो अगली बार उसके अंगूठे पर गौर करें. दरअसल हाल में हुई एक रिसर्च स्टडी के मुताबिक, अगर किसी के अंगूठे ज्यादा लंबे होते हैं, तो वह खासकर चतुर हो सकता है. यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग और डरहम के वैज्ञानिकों ने इंसानों समेत 95 प्राइमेट प्रजातियों (जिनमें इंसान भी शामिल हैं) के दिमाग के साइज और अंगूठे के साइज के बीच संबंध पाया है. उन्होंने सभी प्रजातियों में पाया कि अंगूठा जितना लंबा होता है, दिमाग उतना ही बड़ा होता है.

शोधकर्ताओं ने आदिम युग और आज के इंसानों के अलावा आधुनिक और विलुप्त हो चुके प्राइमेट्स समेत 95 प्राइमेट प्रजातियों का विश्लेषण किया. इनमें चिंपैंजी, गोरिल्ला, बंदर, लेमुर, मार्मोसेट, बबून और ओरंगुटान शामिल थे.
पकड़ के साथ विकसित हुआ दिमाग!
इस शोध में दावा किया गया है कि लाखों सालों के विकास के दौरान प्राइमेट्स के अंगूठे और दिमाग साथ-साथ विकसित हुए हैं. इसका मतलब है कि जैसे-जैसे प्राइमेट्स में चीजों को पकड़ने और इस्तेमाल करने की काबिलियत विकसित हुई, वैसे-वैसे उनके दिमाग को भी इन नई क्षमताओं को प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करने और प्रोसेस करने के लिए बढ़ना पड़ा.
इस स्टडी की मुख्य लेखक डॉ जोआना बेकर ने कहा, 'जैसे-जैसे हमारे पूर्वजों में चीजों को उठाने और चलाने की क्षमता बेहतर होती गई, उनके दिमाग को इन नई क्षमताओं को संभालने के लिए बड़ा होना पड़ा. ये क्षमताएं लाखों सालों के दिमाग के विकास के जरिए बेहतर हुई हैं.'

इंसानों का दिमाग बाकियों से ज्यादा बड़ा
डॉ बेकर ने बताया, 'हमें सभी प्रजातियों में यह संबंध मिला. 'इसका मतलब है कि यह संबंध हमारे अपनी प्रजाति समेत सभी सबसे मशहूर प्राइमेट्स में एक जैसा है.'
जैसा कि उम्मीद थी, होमिनिन (आधुनिक इंसान, विलुप्त हो चुके इंसानी प्रजातियों और हमारे सभी करीबी पूर्वजों का समूह) के अंगूठे दूसरे प्राइमेट्स की तुलना में काफी लंबे पाए गए. इंसानों का दिमाग गैर-इंसानी प्राइमेट्स के दिमाग से काफी बड़ा होता है.

अंगूठे के साथ दिमाग का कौन-सा हिस्सा बढ़ता है?
वैज्ञानिकों ने एक और चौंकाने वाली खोज की है कि प्राइमेट्स में अंगूठे के साथ-साथ दिमाग का कौन सा हिस्सा बढ़ता है. उन्हें उम्मीद थी कि लंबे अंगूठे से सेरिबैलम (दिमाग का वह हिस्सा जो मूवमेंट और तालमेल से जुड़ा है) का संबंध होगा.
लेकिन असल में, लंबे अंगूठे नियोकॉर्टेक्स से जुड़े थे. नियोकॉर्टेक्स एक जटिल, परतदार क्षेत्र है, जो इंसानी दिमाग के करीब आधे हिस्से में फैला है और मूवमेंट और तालमेल में भी शामिल होता है.
टीम का कहना है कि नियोकॉर्टेक्स संवेदी जानकारी को प्रोसेस करता है और संज्ञानात्मकता (cognition) और चेतना को संभालता है, लेकिन यह जानने के लिए और शोध की जरूरत है कि यह वास्तव में हाथों से जुड़ी क्षमताओं में कैसे मदद करता है.

हालांकि केवल अंगूठा तय नहीं करता बुद्धिमानी
'कम्युनिकेशंस बायोलॉजी' में प्रकाशित ये रिसर्च पहला सीधा सबूत देता है कि हाथों की निपुणता और दिमाग का विकास, लेमुर से लेकर इंसान तक, प्राइमेट की पूरी वंशावली में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
हालांकि, टीम इस बात पर जोर देती है कि लंबे अंगूठे अकेले 'प्राइमेट्स के चतुर व्यवहार और क्षमता की जटिलता' को पूरी तरह से नहीं बताते हैं. वे कहते हैं, 'प्राइमेट की चतुरता सिर्फ अंगूठे की लंबाई पर निर्भर नहीं करती; अंगूठे की लंबाई से हमें कुछ सामान्य जानकारी मिल सकती है.'
इसके अलावा, दिमाग का साइज जरूरी नहीं कि इंसान को ज्यादा बुद्धिमान बनाए. शोध से पता चला है कि दोनों के बीच सिर्फ थोड़ा-सा ही संबंध है.
बड़ा दिमाग वाला ज्यादा बुद्धिमान हो, जरूरी नहीं
शोधकर्ताओं के अनुसार, जरूरी नहीं कि बड़ा दिमाग वाला हर व्यक्ति ज्यादा बुद्धिमान हो. उनका कहना है, 'ये कहना इतना आसान नहीं है कि बड़ा दिमाग ज्यादा बुद्धिमानी के बराबर है. बल्कि, एक बड़े दिमाग में अलग-अलग दिमागी हिस्सों में बढ़ोतरी हो सकती है, जो व्यवहार, सोचने-समझने की क्षमता, मोटर कंट्रोल वगैरह के लिए जिम्मेदार होते हैं.'

दिलचस्प बात यह है कि हाथों की चतुरता की भी एक कीमत चुकानी पड़ती है, यहां तक कि इंसानों जैसी बड़ी दिमाग वाली प्रजातियों को भी. हालांकि, इंसानों के पास प्राइमेट्स में सबसे बड़ा दिमाग है और वे हाथों से बहुत कुशल होते हैं, लेकिन दूसरे प्राइमेट्स की तुलना में हमें सबसे आसान हाथ और उंगली के मूवमेंट सीखने में भी बहुत ज्यादा समय लगता है.
इंसानी बच्चों को जानबूझकर किसी चीज को पकड़ने में आमतौर पर करीब पांच महीने लग जाते हैं, जबकि कांटा-छुरी से खाने या जूते के फीते बांधने जैसे ज्यादा जटिल कौशल सीखने में 5-6 साल और लग सकते हैं. जबकि इस उम्र तक, दूसरे जीव/प्राइमेट प्रजातियां काफी आगे निकल चुकी होती हैं. और तो और उनके अपने बच्चे भी हो जाते हैं. यानी अगली जेनरेशन फिर से कौशल सीखने के लिए तैयार हो जाती है.
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