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ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 अंतरिक्ष में भेज ISRO का बजा डंका, जानें भारत कैसे बना दुनिया का लॉन्चिंग सेंटर?

ISRO का लॉन्चिंग खर्च भले कम हो लेकिन विश्वसनीयता ज्यादा है. इसीलिए कई देश अपने उपग्रह भारत से ही लॉन्च करवाते हैं. ISRO ने चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन में कामयाबी हासिल की.

ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 अंतरिक्ष में भेज ISRO का बजा डंका, जानें भारत कैसे बना दुनिया का लॉन्चिंग सेंटर?
  • इसरो ने श्रीहरिकोटा से अमेरिका के सबसे भारी सैटेलाइट ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया
  • यह लॉन्चिंग भारत की अब तक की सबसे भारी कमर्शियल लॉन्चिंग है जिसमें 6100 किलो वजन वाला सैटेलाइट भेजा गया है
  • ISRO सस्ती, विश्वसनीय और भूगोलिक दृष्टि से लाभकारी स्थितियों के कारण दुनिया का प्रमुख लॉन्चिंग सेंटर बन गया है
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 24 दिसंबर, बुधवार सुबह ठीक 8 बजकर 55 मिनट पर वो कर दिखाया, जिससे पूरी दुनिया को भारत की ताकत के बारे में पता चला. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में मौजूद सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ISRO ने अमेरिका के सबसे भारी सैटेलाइट ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 (BlueBird Block-2) को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर एक नया कीर्तिमान बनाया है. इस खबर में आपको बताते हैं कि ये लॉन्चिंग भारत और दुनिया के लिए क्यों खास है.

LVM3 ने किया कमाल

यह भारत की अब तक की सबसे भारी कमर्शियल लॉन्चिंग है. ब्लूबर्ड ब्लॉक-2 सैटेलाइट का वजन 6100 किलो है. इससे पहले नवंबर में भारत ने 4400 किलो का सैटेलाइट भेजा था. इस भारी-भरकम सैटेलाइट को LVM3 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया, जिसे इसकी ताकत की वजह से बाहुबली कहा जाता है. LVM3 की यह लगातार 9वीं सफल उड़ान है. इसी रॉकेट ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे ऐतिहासिक मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था.

पीएम मोदी और इसरो चीफ ने दी बधाई

इस बड़ी कामयाबी पर पीएम मोदी ने कहा, "भारत के युवाओं की ताकत से हमारा स्पेस प्रोग्राम ज्यादा एडवांस्ड और असरदार बन रहा है. LVM3 ने भरोसेमंद हेवी-लिफ्ट परफॉर्मेंस दिखाकर, हम गगनयान जैसे भविष्य के मिशन के लिए नींव मजबूत कर रहे हैं. कमर्शियल लॉन्च सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं और ग्लोबल पार्टनरशिप को गहरा कर रहे हैं. यह बढ़ी हुई क्षमता और आत्मनिर्भरता को मिला बढ़ावा आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत शानदार है."

वहीं, ISRO चेयरमैन वी. नारायणन ने खुशी जताते हुए कहा कि यह LVM3 का मात्र 52 दिनों के भीतर दूसरा सफल मिशन है, जो हमारी टीम की दक्षता और रॉकेट की विश्वसनीयता को साबित करता है.

भारत कैसे बना दुनिया का लॉन्चिंग सेंटर?

  • कम खर्च

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसलिए दुनिया की पसंद है, क्योंकि यहां सैटेलाइट लॉन्चिंग दूसरे देशों के मुकाबले सस्ता है. इसीलिए व्यावसायिक उपग्रहों के लिए ISRO किफायती विकल्प है. 2013 में लॉन्च 'मंगलयान' ISRO का सबसे सस्ता अंतरग्रहीय मिशन था. इसकी लागत 450 करोड़ थी, जो हॉलीवुड फिल्म ग्रेविटी से भी कम थी.

  • विश्वसनीयता ज्यादा

ISRO का लॉन्चिंग खर्च भले कम हो लेकिन विश्वसनीयता ज्यादा है. इसीलिए कई देश अपने उपग्रह भारत से ही लॉन्च करवाते हैं. ISRO ने चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन में कामयाबी हासिल की. ISRO में मजबूत नेतृत्व और एक्सपर्ट वैज्ञानिकों की टीम मौजूद है, जिन्होंने कई बड़े मिशन पूरे कर गहरी अंतरिक्ष विशेषज्ञता सिद्ध की है.

  • रिकॉर्डतोड़ लॉन्चिंग

ISRO ने 2017 में लॉन्चिंग का शतक लगाकर रिकॉर्ड बनाया था. तब ISRO ने एक ही मिशन में 104 उपग्रह लॉन्च कर दिये थे. यहीं से इसरो ने दुनिया को अपनी ताकत का फिर अहसास दिलाया, जिसने वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत को अहम खिलाड़ी बनाया. इसरो ने अब तक सैकड़ों विदेशी उपग्रह लॉन्च किए हैं.

  • भौगोलिक स्थिति

भारत ज्यातार लॉन्चिंग आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से करता है. क्योंकि यहां का सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र भूमध्य रेखा के करीब है. इससे पृथ्वी की घूर्णन गति यानी रोटेशन का फायदा मिलता है. जिससे रॉकेट को कक्षा में ले जाने में कम ईंधन और ऊर्जा लगती है. इसी से किसी भी लॉन्चिंग मिशन की लागत कम हो जाती है, जिसके बाद मिशन की रिसर्च और विकास में ज्यादा खर्च किया जा सकता है.

हर जगह चलेगा धुआंधार इंटरनेट

इस सैटेलाइट के लॉन्च होने से इंटरनेट की दुनिया पूरी तरह बदलने वाली है. यह सैटेलाइट सीधे आपके 4G या 5G फोन से कनेक्ट होगी. यानी अब जंगल, रेगिस्तान या समंदर के बीच भी आपके फोन में फुल सिग्नल रहेंगे. अमेरिकी कंपनी AST स्पेसमोबाइल की यह तकनीक मोबाइल को ही सैटेलाइट फोन बना देगी. बाढ़ या भूकंप के समय जब मोबाइल टावर गिर जाते हैं, तब भी यह सैटेलाइट कनेक्टिविटी बरकरार रखेगी.

कैसे काम करेगी सैटेलाइट?

सैटेलाइट की धरती की निचली कक्षा में तैनाती होगी. अंतरिक्ष में जाते ही इसका बड़ा शक्तिशाली एंटिना खुलता है. एंटिना सीधे 4G या 5G फोन के सिग्नल से जुड़ जाता है. फिर मोबाइल सैटेलाइट को टावर समझकर सिग्नल भेजता है. सैटेलाइट सिग्नल को ग्राउंड स्टेशन तक पहुंचाता है. फिर ग्राउंड स्टेशन सिग्नल को मोबाइल नेटवर्क से जोड़ता है. कॉल, मैसेज और डेटा सामान्य नेटवर्क की तरह प्रोसेस होते हैं. नेटवर्क का जवाब सैटेलाइट के जरिए फोन तक पहुंचता है. इससे बिना मोबाइल टावर के भी कॉल, SMS और इंटरनेट चलेगा. इसके लिए अमेरिकी कंपनी AST स्पेसमोबाइल दुनियाभर के 50 से ज्यादा मोबाइल ऑपरेटर्स से साझेदारी कर चुकी है. कंपनी का टारगेट सेलुलर ब्रॉडबैंड को पूरी दुनिया में पहुंचाना है. 

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