इतिहास की तिजोरी में बंद भारत के बेशकीमती हीरों की अनोखी कहानी
गोलकुंडा की खानों से निकले द ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे न जाने कितने ऐसे हीरे हैं, जो कोहिनूर जितने ही बेशकीमती हैं.

कहते हैं कि हीरा होता है सदा के लिए. लेकिन यह भी सच है कि हीरा हमेशा के लिए किसी का नहीं होता. बांग्लादेश में भी एक बेशकीमती हीरे की किस्मत पिछले 117 साल से तिजोरी में बंद है. नाम है दरिया-ए-नूर. नकदी संकट से जूझ रही बांग्लादेश की सरकार ने एक कमिटी को यह तिजोरी खोलने का आदेश दिया है. इसी से पता चलेगा कि तिजोरी में यह हीरा अब भी है या नहीं. इस हीरे की बेहद अनूठी दास्तां बताएंगे, लेकिन उससे पहले भारत के उन गुमनाम बेशकीमती हीरों की कहानी जान लीजिए, जो भारत के गोलकुंडा की खदानों से निकले और दुनिया में चर्चित हो गए.
भारत की गोलकुंडा की खानों से कोहिनूर के अलावा भी दुनिया के कई बेशकीमती हीरे निकले. ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे न जाने कितने ऐसे हीरे हैं, जो कोहिनूर जितने ही बेशकीमती हैं. कोई अपनी क्लैरिटी से कोहिनूर पर इक्कीस बैठता है, तो कोई अपने रंग, वजन और आकार से. इन सभी हीरों में एक बात कॉमन है. कभी भारतीय बादशाहों की ताकत, समृद्धि और उनके सौभाग्य के प्रतीक रहे ये हीरे आज या तो विदेश में हैं या फिर गुमनाम.
हीरों को लेकर आम आदमी से लेकर पुराने जमाने के राजा-महाराजाओं तक में गजब का आकर्षण रहा है. किसी ने हीरों को सितारों का अंश बताया तो किसी ने देवताओं के आंसू. बाबर और अकबर तो कोहिनूर और आगरा डायमंड को अपनी पगड़ी में बांधकर रखते थे. हीरों के जादुई प्रभाव से कुछ राजा तो इतने अभिभूत थे कि वे युद्ध के मैदानों तक में इन्हें लेकर जाते थे. 18वीं शताब्दी में दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में हीरों की खानों का पता चलने से पहले तक दुनिया में भारत की गोलकुंडा खान से निकले हीरों की धाक थी. आज भारत के अधिकांश चर्चित हीरे या तो लापता हैं, या फिर विदेशी म्यूजियमों की शोभा बढ़ा रहे हैं.
धरती की कोख से निकले से लेकर बादशाहों के ताजों पर सजने और फिर वहां से गुमनामी के अंधेरों में डूब जाने तक की भारतीय हीरों की कहानी बड़ी दिलचस्प है.
कोह-ए-नूर
कोहिनूर का मूल फ़ारसी नाम कोह-ए-नूर है. आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खान से निकला ये हीरा मूल रूप से लगभग 793 कैरेट का था, लेकिन 1852 में ब्रिटेन में इसे काटकर छोटा किया गया ताकि इसकी चमक और क्लैरिटी बढ़ाई जा सके. आज ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़े कोहिनूर के बारे में कभी दो बातें बड़ी प्रसिद्ध थीं. कोहिनूर के बारे में कहा जाता था कि इसे बेचकर सारी दुनिया को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है. दूसरा इसे सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता था. मान्यता थी कि जिस किसी के पास कोहिनूर होगा, उसके साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होगा. कोहिनूर की यही खासियत इसके कई बादशाहों के हाथ से होकर देश से बाहर जाने की वजह भी बन गई.
ग्रेट मुगल डायमंड
भारत के सबसे वजनीले हीरे की बात करें तो नाम आता है 'ग्रेट मुगल' का. गोलकुंडा की खान से 1650 में जब यह हीरा निकला, तो इसका वजन 787 कैरेट था. यानी कोहिनूर से करीब छह गुना भारी. कहा तो यहां तक जाता है कि कोहिनूर, गेट मुगल का ही अंश है. इसकी तुलना ईरानियन क्राउन में जड़े बेशकीमती दरिया-ए-नूर हीरे से भी की जाती है. 1665 में फ्रांस के जवाहरातों के व्यापारी ने इसे अपने समय का सबसे बड़ा 'रोजकट' हीरा बताया था. नादिरशाह के खजाने की शान यह हीरा आज समय की खद पर घिसकर करीब 280 कैरेट का हो चुका है. यह हीरा कहां है, किसी को नहीं पता.
अहमदाबाद डायमंड
लंबे समय से लापता भारतीय हीरों की सूची में 'अहमदाबाद डायमंड' भी शामिल है. 17वीं सदी में मिले इस हीरे की असल वजन 157 कैरेट बताया जाता है, जिसे बाद में तराशकर लगभग 95 कैरेट का कर दिया गया. यह हीरा अवध की बेगम हजरत महल के पास था. अंग्रेजों से हारने के बाद बेगम ने यह हीरा देकर अपनी जान बचाई थी और भागकर नेपाल चली गई थीं. अहमदाबाद डायमंड को 1995 में क्रिस्टी में (4.3 मिलियन डॉलर) करीब 20 करोड़ 85 लाख रुपये में नीलाम किया गया था. आज यह हीरा भी विदेशों में कहीं है.
आगरा डायमंड
हल्के गुलाबी रंग की आभा वाले आगरा डायमंड का इतिहास विवादित है. कहा जाता है कि बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर इसे हासिल किया था. यह बाबर के ताज में जड़ा रहता था. 1844 तक यह हीरा ड्यूक ऑफ ब्रंस्कविक चार्ल्स के पास था. 19वीं सदी में इसे तराशकर करीब 32.2 कैरेट का कर दिया गया था. इस दुर्लभ रंगीन हीरे को आखिरी बार 1990 में लंदन के क्रिस्टीज ऑक्शन हाउस की नीलामी में देखा गया था. तब यह करीब 40 लाख पाउंड (उस समय के करीब 13 करोड़ रुपये) में खरीदा गया था. उसके बाद से यह हीरा लापता है.
द रीजेंट हीरा
'द रीजेंट' डायमंड की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 1702 के आसपास यह हीरा गोलकुंडा की खान से निकला. तब इसका वजन 410 कैरेट था. मद्रास के तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर विलियम पिट के हाथों से होता हुआ 'द रीजेंट' फ्रांसीसी क्रांति के बाद नेपोलियन के पास पहुंचा. नेपोलियन को यह हीरा इतना पसंद आया कि उसने इसे अपनी तलवार की मूठ में जड़वा दिया. अब 140 कैरेट का हो चुका यह हीरा पेरिस के लूव्र म्यूजियम में रखा गया है.
ब्रोलिटी ऑफ इंडिया
गुमनाम भारतीय हीरों की लिस्ट में अगला नाम आता है 'ब्रोलिटी ऑफ इंडिया' का. 90.38 कैरेट के ब्रोलिटी को कोहिनूर से भी पुराना बताया जाता है. 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने इसे खरीदा था. कई सालों तक गुमनाम रहने के बाद यह हीरा 1950 में सामने आया. तब न्यूयॉर्क के ज्वैलर हेनरी विंस्टन ने इसे भारत के किसी राजा से खरीदा. माना जाता है कि अब यह हीरा यूरोप में कहीं है.
ओरलोव डायमंड
एक और बेशकीमती भारतीय हीरे ओरलोव की गुमनामी की दास्तान भी कुछ ऐसी ही है. लगभग 18वीं शताब्दी के इस करीब 200 कैरेट के हीरे को सालों पहले मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुरा लिया था. बताया जाता है कि यह हीरा रूस के रोमनोव वंश के ऐतिहासिक ताज में जड़े साढ़े आठ सौ हीरे-जवाहरातों में से एक है. ओरलोव फिलहाल मॉस्को में स्थित डायमंड फंड ऑफ द मॉस्को क्रेमलिन में है.

दरिया-ए-नूर
अब कहानी उस दरिया-ए-नूर हीरे की, जिसका जिक्र हमने सबसे पहले किया था. यह हीरा कभी फारस के शाहों के पास था. 19वीं सदी के पंजाब में सिख योद्धा-नेता रणजीत सिंह ने उसे पहना. बाद में अंग्रेजों से होता हुआ यह हीरा ढाका के नवाबों के खजाने में शामिल हुआ. उन्होंने अपने पिता से इस विशाल हीरे की कहानी सुनी थी. यह आयताकार हीरा एक चमचमाते आर्मबैंड के बीच में लगा था. उसके आसपास करीब आधा दर्जन छोटे हीरे लगे थे. यह हीरा 108 खजानों के भंडार का हिस्सा था.
कंगाल हुए तो गिरवी रख दिया
1908 में ढाका के तत्कालीन नवाब सलीमुल्लाह बहादुर ने वित्तीय संकट के चलते ब्रिटिश सरकार के पास इसे गिरवी रख दिया था. तभी उस हीरो को आखिरी बार देखा गया था. 1908 के अदालती कागजात में हीरे कितने कैरेट वजन का है, यह नहीं बताया गया था. लेकिन उस समय इसका मूल्य 5 लाख रुपये (आज के करीब 115 करोड़ रुपये) था.
117 साल से तिजोरी में!
बेशकीमती दरिया-ए-नूर हीरा पिछले 117 साल से बैंक की तिजोरी में बंद है. यह भी नहीं पता कि एक सदी बीत जाने के बाद यह उस तिजोरी में है भी या नहीं. क्या यह हीरा 1947 में ब्रिटिश हुकूमत के अंत में हुई हिंसा में बच गया था? क्या 1971 में बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई और उसके बाद हुए तख्तापलट में भी तिजोरी में बचा रहा? इसका पता तभी चलेगा, जब बांग्लादेश सरकार की बनाई कमिटी उस तिजोरी को खोलेगी.
'C' में छिपी हीरों की कीमत
महज बड़ा होने से ही हीरा बेशकीमती नहीं हो जाता. हीरे की कीमत का राज चार 'C' में छिपा होता है. ये चार सी हैं; कैरेट, कलर, क्लैरिटी और कट. 'कैरेट' माने हीरे का वजन. पांच कैरेट एक ग्राम के बराबर होता है. हीरे की कीमत उसके रंग पर भी निर्भर करती है. हीरे कई रंगों में मिलते हैं. बेहद दुर्लभ होने के कारण ऐसे हीरे काफी महंगे होते हैं. आगरा डायमंड का वजन हालांकि 32 कैरेट ही है, लेकिन अपने गुलाबी रंग के कारण यह बेहद महंगा है. इसी तरह हीरे को कैसा तराशा गया है और वह कितना पारदर्शी है, यह भी हीरे की कीमत को तय करते हैं.
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