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Golden Langur Story: मौसम की तरह रंग बदलने वाले सुनहरे लंगूरों को क्‍यों है इंसानों से एलर्जी?

गोल्‍डन लंगूर प्रजाति में एक औसत मादा करीब 59 महीने की उम्र में पहली बार बच्चे को जन्म देती है. बच्चे का पालन-पोषण बहुत जवाबदेही भरा काम होता है, इसलिए वह तब तक दूसरा बच्चा पैदा करने से बचती है जब तक कि उसकी पहली संतान दूध पीना न छोड़ दे.

Golden Langur Story: मौसम की तरह रंग बदलने वाले सुनहरे लंगूरों को क्‍यों है इंसानों से एलर्जी?

Golden Langur: अमूमन बंदर, लंगूर वगैरह अचानक हमारे आसपास आ जाएं तो हम इंसान चौंक जाते हैं और हममें से कई भाग खड़े होते हैं, लेकिन क्‍या आप जानते हैं बंदरों की प्रजाति में ही, या फिर ये कहिए कि एक लंगूर ऐसा भी है, जिसे इंसानों से ही 'एलर्जी' है. वो खुद इंसानों से परहेज करते हैं. चौंक गए न! इसका नाम है गोल्‍डन लंगूर (Trachypithecus geei). जंगल की दुनिया में आज हम परिचय करवा रहे हैं, इसी खूबसूरत सुनहरे बालों वाले लंगूर से.

ये लंगूर अपने मलिन-सी रंगत, गहरी काली आंखों और शरारती चुप्पी के लिए जाने जाते हैं. हालांकि बदन पर सुनहरी चमक लिए यह रहस्यमयी प्रजाति जितनी खूबसूरत है, उतनी ही संकटग्रस्त भी.

कहां पाए जाते हैं सुनहरे लंगूर?

गोल्डन लंगूर मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से खासकर असम में पाए जाते हैं, साथ ही ये भूटान के दक्षिणी इलाकों में पाए जाते हैं. वहां के राष्ट्रीय उद्यानों में एक अधिक सुरक्षित निवास मिलता है. 1950 के दशक में प्रकृति प्रेमी एडवर्ड प्रिचर्ड गी ने पहली बार दुनिया को इनके बारे में बताया था. इसी वजह से इन्हें 'गीज गोल्डन लंगूर' भी कहा जाता है. ज्यादातर समय ये ऊंचे पेड़ों पर छिपे रहते हैं, लेकिन गर्मियों के मौसम में नीचे उतर आते हैं. उस वक्त वे पानी पीने के लिए जलस्रोतों तक पहुंचते हैं. यही मौका होता है जब इन्हें नजदीक से देखा जा सकता है.

Golden Langur

Golden Langur

तो क्‍या रंग बदलते हैं ये लंगूर?

नवजात गोल्डन लंगूर का फर बिल्कुल सफेद होता है, जो बड़े होने पर धीरे-धीरे सुनहरा हो जाता है. इनके चेहरे पर बाल नहीं होते, सिर्फ काली चमड़ी होती है, जो इनके सुनहरे शरीर को और ज्यादा आकर्षक बनाती है. एक वयस्क गोल्डन लंगूर का वजन 9 से 12 किलो और शरीर की लंबाई करीब 90 सेंटीमीटर होती है.  

  • इनकी सबसे बड़ी पहचान है इनका सुनहरा फर. 
  • मौसम बदलने के साथ इनकी रंगत भी बदल जाती है.
  • सर्दियों में इनका फर गहरा और चेस्टनट यानी भूरा-सा हो जाता है.
  • गर्मियों में यह हल्का होकर क्रीमी ऑरेंज दिखने लगता है.

कई मादाओं को साथ लेकर चलते हैं नर 

सुनहरे लंगूर नर-प्रधान, बहु-मादा समूहों का निर्माण करते हैं। अधिकांश समूहों में एक ही वयस्क नर होता है, लेकिन बड़े समूहों में दो तक नर हो सकते हैं। दोनों ही स्थितियों में, प्रमुख नर अपने समूह की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. सुनहरे लंगूर गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में कम पत्ते वाले पेड़ों पर बसेरा करना पसंद करते हैं, ताकि वे सूर्य की गर्मी को सोख सकें. वहीं, धूप वाले दिनों की अपेक्षा बादलों वाले दिनों में अपने विश्राम काल के दौरान अधिक सक्रिय होते हैं. 

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बच्‍चों का मिल-जुलकर ख्‍याल रखती हैं मादाएं

गोल्‍डन लंगूर प्रजाति में एक औसत मादा करीब 59 महीने की उम्र में पहली बार बच्चे को जन्म देती है. बच्चे का पालन-पोषण बहुत समय लेने वाल, जवाबदेही भरा और ऊर्जा खर्च करने वाला काम होता है, इसलिए वह तब तक दूसरा बच्चा पैदा करने से बचती है जब तक कि उसकी नवीनतम संतान दूध छुड़ा न ले. 

बच्चों का पालन-पोषण मादाओं की जिम्‍मेदारी है. जहां माताएं अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं, वहीं समूह की हर मादा एक-दूसरे की मदद करती है. वे बारी-बारी से एक-दूसरे के बच्चों की देखभाल और देखभाल करती हैं, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो कई पत्ते खाने वाले बंदरों में आम तौर पर पाई जाती है. इसे एलो-मदरिंग कहते हैं.

इंसानों से 'एलर्जी' क्यों?

शोधकर्ताओं के लिए बड़ा सवाल यही है कि गोल्डन लंगूर इंसानों से इतनी दूरी क्यों बनाते हैं. दरअसल, ये बेहद शर्मीले और छिपने में माहिर होते हैं। जंगल में किसी इंसान की आहट पाते ही ये भाग जाते हैं. रिसर्चर्स का कहना है कि इन्हें लगता है कि कोई उन्हें देख रहा है, तो ये और भी सतर्क हो जाते हैं. इसी वजह से इन्हें दुनिया का सबसे गुप्त और रहस्यमयी बंदर भी कहा जाता है. 

कम होती संख्‍या चिंता का विषय

दुखद पहलू यही है कि गोल्डन लंगूर आज गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) प्रजाति हैं. कुछ साल पहले असम में हुए एक सर्वेक्षण से पता चला था कि भारत में इनकी संख्‍या  7,300 के करीब है. भूटान में कमोबेश वही स्थिति है. हालांकि हाल के वर्षों में ये संख्‍या और कम हुई है. न्‍यू इंग्‍लैंड प्राइमेट्स कंजर्वेंसी के मुताबिक, दुनियाभर में इनकी संख्‍या 6,500 के करीब रह गई है. 

जंगलों की अंधाधुंध कटाई, खेती और चराई के लिए जमीन साफ करना और इनके प्राकृतिक आवास का बिखरना प्रमुख वजहें हैं. इससे इनकी आबादी बुरी तरह प्रभावित हुई है. सुनहरे लंगूर को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN, 2015) द्वारा संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है. वाइल्‍डलाइफ ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया (WTI) और अन्य संगठनों ने असम में एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की थी, जिसमें वैज्ञानिक समुदाय, वन विभाग और नीति निर्माताओं ने मिलकर इन इस प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए रणनीति तैयार करने की बात कही थी.  

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