
सुप्रीम कोर्ट ने NIA को फटकार लगाई है. कोर्ट ने NIA से कहा है कि आप विशेष कानूनों के तहत भी मुकदमा चलाना चाहते हैं. फिर भी आरोपियों के लिए त्वरित सुनवाई नही. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि 23 मई के आदेश के अनुपालन में, NIA के अवर सचिव द्वारा एक हलफनामा दायर किया गया है. यह पता है कि NIA द्वारा जाँच किए जाने वाले मामलों में विशेष विशेष अदालतें स्थापित करके शीघ्र सुनवाई करने के लिए कोई प्रभावी या प्रत्यक्ष कदम नहीं उठाए गए हैं.इसके लिए उच्च न्यायिक सेवा कैडर में पदों के सृजन और आवश्यक मंत्रालयिक कर्मचारियों के पदों की भी आवश्यकता होगी. जमानत के लिए उपयुक्त न्यायालय कक्षों की आवश्यकता होगी. इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया गया.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह धारणा बन रही है कि NIA अधिनियम 2008 की धारा 11 के तहत किसी मौजूदा अदालत को विशेष अदालत के रूप में नामित करना हमारे पिछले आदेश का पालन होगा. इसे अस्वीकार किया जाता है. यह जेलों में बंद सैकड़ों विचाराधीन कैदियों सहित अन्य अदालती मामलों की कीमत पर होगा. वरिष्ठ नागरिक, वंचित वर्ग, वैवाहिक विवाद आदि.
कोर्ट ने आगे कहा कि यदि प्राधिकारी समयबद्ध सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे वाली विशेष अदालतें स्थापित करने में विफल रहते हैं, तो अदालतों के पास विचाराधीन कैदियों को ज़मानत पर रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. क्योंकि जब त्वरित सुनवाई और समयबद्ध तरीके से सुनवाई पूरी करने की कोई व्यवस्था नहीं है. तो ऐसे संदिग्धों को कब तक सलाखों के पीछे रखा जा सकता है. हमने पहले कहा था कि यदि विशेष अदालतें स्थापित नहीं की जाती हैं, तो याचिकाकर्ता की ज़मानत पर रिहाई की प्रार्थना पर शीघ्र विचार किया जाएगा. आपको बता दें कि इस मामले में अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी.
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