इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) द्वारा शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन को नामंजूर किए जाने के बाद ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. शीर्ष न्यायालय में दायर एक रिट याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए उसे गलत मिसाल बताया गया है. इसके साथ ही हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई है. ये याचिका वकील अलदानिश रीन ने दायर की है. रिट याचिका में आरोप लगाया गया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने को अस्वीकार्य करार देते हुए अलग-अलग धर्म से संबंध रखने वाले एक विवाहित जोड़े को पुलिस संरक्षण न देकर एक ''गलत मिसाल'' कायम की है.
याचिका में कहा गया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उक्त आदेश देते समय न केवल गैर-धर्म में विवाह करने वाले जोड़े को उनके परिवारों की घृणा के सहारे छोड़ दिया है, बल्कि एक गलत मिसाल भी कायम की है कि ऐसे पार्टनर में से किसी एक द्वारा धर्म परिवर्तन करके अंतर-धार्मिक विवाह नहीं किया जा सकता है.
सिर्फ शादी के लिए धर्मांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट
लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले महीने एक शादीशुदा जोड़े को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर एक व्यक्ति किसी अन्य धर्म को सिर्फ किसी सांसारिक लाभ या फायदे के लिए अपनाता है, तो यह धार्मिक कट्टरता होगी. याचिकाकर्ता और उसकी बहन (वर्तमान में एससीबीए के संयुक्त कोषाध्यक्ष है) दोनों ही धर्म से मुस्लिम हैं और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अपने संबंधित हिंदू पति-पत्नी से विवाह कर चुके हैं.
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याचिका में कहा गया है कि भागकर शादी करने वाले जोड़े के लिए उक्त प्रावधानों का पालन करना बहुत मुश्किल हो जाता है. याचिका में कहा गया है कि व्यावहारिक रूप से, विशेष विवाह अधिनियम केवल उन जोड़ों के लिए है, जहां दोनों परिवार ऐसे विवाह के लिए तैयार हैं या कम से कम वह कपल को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिनियम एक नोटिस की अवधि को अनिवार्य करता है और इस तरह के नोटिस पर आपत्तियां आमंत्रित करता है, जिससे भागकर शादी करने वाले जोड़ों के लिए मुश्किल होती है.
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