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This Article is From Nov 21, 2022

घर की महिला समन स्वीकार नहीं कर सकती, CrPC के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

सीआरपीसी की धारा 64 के मुताबिक घर के किसी बालिग पुरुष सदस्य को ही समन की तामील कराई जा सकती है, सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करने को तैयार

सुप्रीम कोर्ट.

नई दिल्ली:

क्या आपको पता है कि आपराधिक कानून में एक प्रावधान है कि किसी अदालत द्वारा जारी समन को व्यक्ति के घर की कोई महिला स्वीकार नहीं कर सकती. इसके पीछे कारण ये है कि यह प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, यानी सीआरपीसी (CrPC) की धारा 64 में बनाया गया था. इसके मुताबिक घर के किसी बालिग पुरुष सदस्य को ही समन की तामील कराई जा सकती है. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करने को तैयार हो गया है.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने नोटिस जारी किया है. साथ ही अटार्नी जनरल आर वेंकेटरमनी को अदालत की सहायता करने को कहा है. दरअसल महिलाओं के साथ भेदभाव और समन में होने वाली देरी की वजह से न्याय मिलने में होने वाली देरी को आधार बनाते हुए CrPC की धारा 64 को चुनौती दी गई है. 

सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अटार्नी जनरल (AG) को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. मामले पर याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि CrPC की धारा 64 महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण है और इससे न्याय देने में देरी भी होती है. हालांकि CJI ने नोटिस जारी करते हुए यह सवाल पूछा कि आप एक वकील हैं और आप इससे किस तरफ से प्रभावित है? कम से कम इस तरह के मामले से जुड़ी किसी महिला को कोर्ट में आना चाहिए.  

दरअसल सीआरपीपी की धारा 64 में प्रावधान है कि समन किए गए व्यक्ति की ओर से समन को घर की महिला द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता. प्रावधान कहता है कि, “जहां समन किए गए व्यक्ति तक उचित परिश्रम के बावजूद पहुंचा नहीं जा सकता है, उसके साथ रहने वाले उसके परिवार के किसी बालिग पुरुष सदस्य के साथ उसके लिए डुप्लिकेट में से एक को छोड़कर समन की तामील की जा सकती है.“ 

याचिका में कहा गया है कि ये महिलाओं के साथ भेदभाव है और यह न्याय मिलने में देरी का भी कारण है. इस पर सुप्रीम कोर्ट विचार करे. याचिका के अनुसार, 1908 में बनी सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रतिवादी के परिवार के किसी भी वयस्क सदस्य को उनके लिंग की परवाह किए बिना समन तामील करने की आवश्यकता है जबकि 65 वर्षों के बाद अधिनियमित CrPC में ऐसा नहीं है. CrPC परिवार की एक वयस्क महिला सदस्य को समन प्राप्त करने के लिए सक्षम नहीं मानती है. 

यह याचिका कुश कालरा की और से दाखिल की गई है. 

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