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बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय के हाथ में क्यों है सत्ता की चाबी? समझिए क्या है वोटो का समीकरण

मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिश्चंद्र ठाकुर हैं, जो दलित और पिछड़ों के सामाजिक उत्थान के लिए थे. धार्मिक उत्पीड़न के कारण मतुआ समाज के लोग बांग्लादेश से भागे और भारत आ गए थे.

बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय के हाथ में क्यों है सत्ता की चाबी? समझिए क्या है वोटो का समीकरण
नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल के चुनावों में मतुआ समुदाय को ‘किंगमेकर' या सत्ता की चाबी इसलिए माना जाता है क्योंकि यह समुदाय न केवल संख्या में काफ़ी मजबूत है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी काफ़ी सक्रिय हैं. विधानसभा से लेकर लोकसभा तक के सीटों पर इनका गहरा प्रभाव है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये मतुवा समुदाय है क्या और ये लोग पश्चिम बंगाल में कहां से आए. आपको बता दें कि मतुआ समुदाय के लोग मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं, जो 1947 और 1971 के विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल में बस गए. इनकी आबादी राज्य में लगभग 3-5 करोड़ अनुमानित है, जो कुल मतदाताओं का 20-25% है. यह समुदाय उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले सहित सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे बोंगांव,रानाघाट,जंगीपुर में खास तौर पर मौजूद हैं. यहां के 30-40 विधानसभा क्षेत्रों और 5-7 लोकसभा सीटों पर इनका वोट निर्णायक भूमिका निभाता है. 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के शांतनु ठाकुर ने ममता बाला को हराकर मटुआ वोट बैंक की ताकत दिखाई. 

नागरिकता और CAA का मुद्दा 

मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिश्चंद्र ठाकुर हैं, जो दलित और पिछड़ों के सामाजिक उत्थान के लिए थे. धार्मिक उत्पीड़न के कारण मतुआ समाज के लोग बांग्लादेश से भागे और भारत आ गए. भारत आने के बाद भी कई को पूर्ण नागरिकता नहीं मिली क्योंकि उनके पास पुराने दस्तावेज नहीं हैं. नागरिकता संशोधन कानून, 2019 से उनकी उम्मीद जगी क्योंकि यह गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता का रास्ता देता है.भाजपा इस मुद्दे पर मतुआ को लुभाती रही है जबकि तृणमूल कांग्रेस ने स्थानीय स्तर पर कल्याण योजनाओं से इस समुदाय का समर्थन हासिल किया. 2021 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों में दोनों पार्टियां मतुआ वोट के लिए आमने-सामने रहीं और दोनों ने इस समुदाय के वोट से अपने अपने उम्मीदवारों की जीत दर्ज की. 

SIR (Special Intensive Revision) का असर 

हाल ही में पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन  शुरू हुआ है,जो 2026 विधानसभा चुनाव से पहले हो रहा है. सख्त दस्तावेजीकरण की मांग से मटुआ समुदाय के लोग घबराये हुए हैं. कई को डर है कि वे वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे क्योंकि उनके पास जन्म प्रमाणपत्र या दूसरे पुराने कागजात नहीं हैं. इससे 40+ विधानसभा सीटों पर असर पड़ सकता है. जबकि भाजपा ने 1,000+ CAA कैंप लगाकर नागरिकता सहायता का दावा किया. कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी गृह मंत्री को पत्र लिखकर मतुआ समाज को SIR से छूट देने की मांग की.

राजनीतिक स्विंग वोट 

मतुआ कोई एक पार्टी का बंधा वोट बैंक नहीं है. वे मुद्दों पर स्विच करते हैं,जैसे CAA पर BJP की ओर, या स्थानीय विकास पर TMC की ओर. 2021 चुनाव में TMC ने मतुआ बहुल क्षेत्रों में जीत हासिल की, लेकिन 2024 में BJP ने कुछ सीटें छीनीं. 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मटुआ समुदाय के कई उम्मीदवार मैदान में थे. यह समुदाय उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नादिया और आसपास के जिलों में है, जहां 30-40 सीटों पर इनका प्रभाव था. दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने मटुआ वोट बैंक को साध कर कई उम्मीदवार उतारे.  जैसे मंजुल कृष्ण ठाकुर हंसखाली विधानसभा, नादिया जिला जो की बिनापानी देवी मटुआ धर्मगुरु के बेटे हैं चुनाव जीते,पार्थोप्रदीप मजूमदार भवानीपुर से चुनाव लड़े मटुआ समुदाय से जुड़े, हालांकि सीट पर ममता बनर्जी ने जीत दर्ज की.शशिकांत सिंह ठाकुर रानाघाट उत्तर पूर्व मटुआ बहुल क्षेत्र से चुनाव लड़े.

BJP के मतुआ उम्मीदवार (कई हारे, लेकिन कुछ जीते)

दुलाल सरकार बोंगांव उत्तर मतुआ नेता हैं भाजपा से लड़े थे. शांति दास गौरीपुर मतुआ समुदाय से हैं चुनाव लड़े. भाजपा ने मतुआ हार्टलैंड नादिया और उत्तर 24 परगना में 28 सीटों पर इस समुदाय से उम्मीदवार उतारे, जैसे रानाघाट दक्षिण, बागदा (SC).कांग्रेस और CPI(M) ने भी कुछ मतुआ उम्मीदवार उतारे, लेकिन उनका प्रभाव कम था.TMC ने मतुआ बाहुल विधानसभा क्षेत्रों में 21  सीटें जीतीं, जबकि BJP ने 28। मतुआ वोट बंटे, लेकिन CAA और स्थानीय विकास के मुद्दों पर भाजपा को फायदा हुआ.

वर्तमान में मतुआ समुदाय से सांसद 2024 लोकसभा चुनावों के बाद पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से मतुआ बहुल क्षेत्रों - बोंगांव,रानाघाट,कृष्णानगर,बासिरहाट,जॉयनगर से कुछ सांसद हैं.

शांतनु ठाकुर: बोंगांव लोकसभा से BJP सांसद। मटुआ ‘फर्स्ट फैमिली' के सदस्य,हरिचंद ठाकुर के वंशज, 2019 और 2024 में जीते. CAA के प्रमुख समर्थक थे.
पोली घोष: रानाघाट लोकसभा से BJP सांसद. मतुआ समुदाय से, 2024 में TMC की ममता बाला ठाकुर को हराया. ममता बाला ठाकुर लोकसभा हार गईं, लेकिन वे राज्यसभा सांसद हैं TMC से. ये सांसद मतुआ के नागरिकता और SIR जैसे मुद्दों पर सक्रिय हैं. मतुआ का वोट 17-20% है, जो 6-7 लोकसभा सीटों पर निर्णायक है.

निष्कर्ष :
मतुआ वोट बैंक राज्य के 20-25% मतदाताओं को प्रतिनिधित्व करता  है, जो 30-70 सीटों पर ‘किंगमेकर' भूमिका निभाता है. पिछली बार टीएमसी और बीजेपी दोनों ने मतुआ समुदाय को जम कर साधा. टीएमसी से ममता ठाकुर चुनाव लड़ीं और अपने लोगों के वोट ट्रांसफर करवाये तो भी की तरफ़ से शांतनु ठाकुर. इस बार फिर से इस समुदाय को बीजेपी और टीएमसी मजबूती से साधने की कोशिश करेंगे ताकि ज़्यादा से ज़्यादा सीटों पर कब्ज़ा हो पाए. 

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