क्या सियासत के शोर में सुरक्षा के गंभीर इनपुट को नजरअंदाज किया गया? यह सवाल इसलिए खड़ा हो गया है क्योंकि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की सुरक्षा को लेकर एक नया खुलासा हुआ है. एक तरफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की साजिश का इनपुट था, केंद्र सरकार की ओर से बाकायदा पत्र भेजा गया था, लेकिन बावजूद इसके कथित तौर पर मध्यप्रदेश का सरकारी तंत्र पूरे एक महीने तक 'सोता' रहा. 12 नवंबर को आए खतरे के अलर्ट पर 12 दिसंबर को कार्रवाई हुई. अब सवाल यह है कि यह महज प्रशासनिक सुस्ती है या फिर इसके पीछे कोई गहरा सियासी पेंच?

ISI की 'रुचि' और गृह मंत्रालय का वो गोपनीय पत्र
पूरा मामला 12 नवंबर 2025 का है, जब भारत सरकार के गृह मंत्रालय (MHA) के IS-1 डिवीजन यानी वीआईपी सुरक्षा इकाई ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को एक गोपनीय पत्र भेजा. इस पत्र की एक्सक्लूसिव NDTV के पास है. जिसमें दी गई जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के पास पुख्ता इनपुट था कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI शिवराज सिंह चौहान की गतिविधियों और जानकारियों में 'खास दिलचस्पी' दिखा रही है. पत्र में स्पष्ट हिदायत दी गई थी कि सुरक्षा व्यवस्था को तुरंत मजबूत और संतुलित किया जाए ताकि किसी भी अप्रिय घटना को टाला जा सके. इस पत्र की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी कॉपी दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी (सिक्योरिटी) और मध्यप्रदेश के डीजीपी को भी भेजी गई थी.
एक महीने का 'मौन' और फिर जागी सरकार
हैरानी की बात यह है कि जब इनपुट सीधे ISI से जुड़ा था, तब सुरक्षा में एक दिन की देरी भी भारी पड़ सकती थी, लेकिन मध्यप्रदेश में फाइलें एक मेज से दूसरी मेज तक घूमने में पूरा एक महीना बीत गया. 12 नवंबर को मिले अलर्ट के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने 12 दिसंबर को जाकर शिवराज सिंह चौहान के भोपाल स्थित सरकारी आवास (बी-8 और बी-9) पर बैरिकेडिंग करवाई और अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किया. इस बीच शिवराज लगातार सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे, काफिले निकलते रहे और सुरक्षा के नाम पर वही पुराना ढर्रा चलता रहा.
घेरे में सिस्टम: जब बार-बार टूटा सुरक्षा कवच
शिवराज सिंह चौहान को वर्तमान में Z+ सुरक्षा मिली हुई है, जिसमें 10 से ज्यादा NSG कमांडो और लगभग 55 प्रशिक्षित जवान तैनात रहते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते राज्य सरकार भी सुरक्षा देती है, लेकिन हालिया घटनाओं ने इस सुरक्षा घेरे की पोल खोल दी है. खातेगांव में एक युवक का उनकी कार के सामने बैठ जाना हो, सीहोर में कांग्रेस नेताओं द्वारा घेराव हो या फिर सतना में खाद संकट को लेकर काफिला रोका जाना—इन तमाम घटनाओं में सुरक्षा घेरा टूटता नजर आया. खुफिया इनपुट के बावजूद सुरक्षा में हुई देरी ने अब इस 'सिस्टम फेलियर' पर मुहर लगा दी है.
विपक्ष ने पूछा- क्या यह आंतरिक कलह का नतीजा?
इस खुलासे के बाद प्रदेश की सियासत गरमा गई है. कांग्रेस के पूर्व मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने सरकार को घेरते हुए कहा कि जब केंद्र खुद खतरे की बात कह रहा है, तो सरकार सुरक्षा देने में असफल क्यों है? उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अगर एक केंद्रीय मंत्री और चार बार के मुख्यमंत्री सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता का क्या होगा? मरकाम ने इसे बीजेपी की 'आंतरिक कलह' से जोड़ते हुए केंद्रीय गृह मंत्री से सफाई मांगी है और यहां तक कह दिया कि यदि सुरक्षा नहीं दे सकते तो पद से त्यागपत्र दे दें.
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