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चिराग पासवान ने आरा से ही क्यों भरी 'हुंकार', क्या है लोक जनशक्ति पार्टी की रणनीति

बिहार में विधानसभा की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. चिराग पासवान ने विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा की है. उन्होंने अपने विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करने के लिए शाहबाद के आरा को चुना. आइए जानते हैं कि उन्होंने आरा को ही क्यों चुना.

चिराग पासवान ने आरा से ही क्यों भरी 'हुंकार', क्या है लोक जनशक्ति पार्टी की रणनीति
नई दिल्ली:

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने रविवार को बिहार के आरा में आयोजित 'नव-संकल्प महासभा' को संबोधित किया. लोजपा (रामविलास) की ओर से आयोजित इस रैली में चिराग ने बिहार विधानसभा का इस साल होने वाला चुनाव लड़ने की घोषणा की. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वो किस सीट से चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि बिहार की जनता ही तय करेगी कि वो किस सीट से चुनाव लड़ेंगे. विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा करने के लिए चिराग ने जिस इलाके का चयन किया वह एनडीए की दुखती रग है. बिहार का शाहबाद एक ऐसा इलाका है, जहां बीजेपी के नेतृत्व वाला पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर पाया है. 

चिराग पासवान ने कहा क्या है

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की ओर से बिहार के शाहाबाद में आने वाले आरा में रविवार को एक रैली का आयोजन किया गया.इसमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान शामिल हुए. रैली को संबोधित करते हुए चिराग ने कहा,''मैं बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ूंगा. मैं बिहार और उसके लोगों के लिए चुनाव लड़ूंगा. मैं रामविलास पासवान का बेटा हूं. मैं अपने पिता के सपनों को साकार करूंगा और राज्य को बदलने के उद्देश्य से 'बिहार प्रथम, बिहारी पहले' के लिए काम करूंगा.''चिराग ने कहा, ''विधानसभा चुनाव में मुझे राज्य की किस सीट से चुनाव लड़ना चाहिए, यह बिहार के लोगों को तय करना है.जब भी मैं कोई राजनीतिक फैसला लेता हूं, तो राज्य और उसके लोगों के हित में लेता हूं.''

चिराग पासवान की वजह से नीतीश कुमार की जेडीयू को 2020 में करीब 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.

चिराग पासवान की वजह से नीतीश कुमार की जेडीयू को 2020 में करीब 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में पासवान की बगावत के कारण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को कम से कम 45 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. इसका परिणाम यह हुआ कि 2015 में 71 सीटें जीतने वाली जेडीयू 2020 में 43 सीटों पर आ गई थी. उसका वोट बैंक भी कम हुआ था. साल 2020 के चुनाव तक लोजपा में विभाजन नहीं हुआ था. उस चुनाव में लोजपा ने जेडीयू को शाहबाद के इलाके में 11 सीटों का नुकसान कराया था. इसका परिणाम यह हुआ था कि शाहबाद में जेडीयू कोई सीट नहीं जीत पाई थी.बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में इस इलाके में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट में जीत दर्ज की थी. वहीं औरंगाबाद का आधा इलाका भी शाहबाद में ही आता है, वहां भी महागठबंधन ने जीत हासिल की थी. लेकिन लोजपा (आरवी) ने लोकसभा चुनाव में जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से कोई भी शाहबाद इलाके में नहीं थी. 

शाहाबाद के इलाके में एनडीए को 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुत नुकसान उठाना पड़ा था.

शाहाबाद के इलाके में एनडीए को 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुत नुकसान उठाना पड़ा था.

कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि चिराग पासवान ने इस इलाके का इस्तेमाल एनडीए पर दवाब डालने के लिए किया, क्योंकि वो इस इलाके में 2020 के चुनाव में जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचा चुके हैं. उनके 243 सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है. दरअसल बिहार विधानसभा की 243 में से बीजेपी और जेडीयू की नजर 100-100 सीटों पर है.वहीं बाकी की 43 सीटों बाकी के सहयोगियों में बांटेने की योजना है. इन दलों में चिराग पासवान की लोजपा (आरवी), उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल है. इसे देखते हुए ही चिराग पासवान इस तरह की बातें कर रहे हैं.  पासवान की पार्टी पिछले काफी समय से चुनाव लड़ने के लिए हर जिले में एक सीट की मांग कर रही है. यानी की लोजपा (आरपी) कुल 38 सीटों की मांग कर रही है. ऐसे में चिराग पासवान का यह बयान और रणनीति आने वाले दिनों में सीटों के बंटवारे में परेशानी पैदा कर सकते हैं. 

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