Chhath Puja Story: नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. हर साल बिहार, पूर्वांचल समेत देश और विदेश के अलग-अलग हिस्सों में श्रद्धा और निष्ठा के साथ छठ महापर्व मनाया जाता है. लोक-आस्था के महापर्व छठ की महिमा अपरंपार मानी जाती है. मान्यता है कि छठी मइया, परबैतिन (पर्व करने वाले) और उनके परिवार की मनोकामनाएं पूर्ण करती है. बिहार-यूपी में तो लाेग छठी मइया के बारे में खूब जानते हैं, लेकिन बहुत से लोग छठी मइया के बारे में बहुत नहीं जानते. बहुत से लोगों के मन में ये सवाल होता है कि बाकी देवियों के बारे में तो वो जानते हैं लेकिन ये 'छठी मइया' कौन हैं, कैसे छठ पूजा की शुरुआत हुई और सूर्य देवता से छठ का आखिर कैसा संबंध है?
कौन हैं छठी मइया | Who is Chhathi Maiya?
छठी मइया का संबंध षष्ठी तिथि से है. छठी मइया को ब्रह्मा की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन कहा जाता है. लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया उर्वरता और समृद्धि की देवी हैं. बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई इलाकों में विशेष रूप से संतान की रक्षा और परिवार की समृद्धि के लिए छठ पूजा की जाती है. मान्यता है कि छठी मइया संतान की रक्षा करती हैं और पूरे परिवार के जीवन में उजाला भरती हैं, ठीक वैसे ही जैसे सूर्य अपनी रोशनी से धरती को जीवन देता है.

मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक, छठी मइया, प्रकृति का छठा स्वरूप, छठा हिस्सा हैं. काशी के पुरोहित दयानंद पांडेय ने बताया कि ब्रह्माजी ने प्रकृति का निर्माण किया तो प्रकृति ने खुद को 6 रूपों और हिस्से में बांटा था. इनमें से छठे हिस्से को छठी मइया के रूप में जाना जाता है.
मान्यताओं के मुताबिक, हिंदू धर्मावलंबी संतान के जन्म के 6 दिन पूरे होने पर 'छठी' करते हैं, इसका संबंध भी छठी मइया से है. मान्यता है कि जब शिशु का जन्म होता है, तब छठी मइया 6 दिन तक उसके साथ रहती हैं. छठी माई की पूजा कर संतान के दीर्घायु होने की कामना की जाती है.
कैसे हुई छठ पूजा की शुरुआत| How was Chhath Puja started?
छठ पूजा की शुरुआत वैदिक काल से ही मानी जाती है. ऋग्वेद में सूर्य उपासना का उल्लेख मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद और रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी और वे दुखी रहते थे. दोनों पहुंचे, ऋषि कश्यप के पास. ऋषि कश्यप ने दोनों को पुत्रेष्ठि यज्ञ करने की सलाह दी. राजा ने यज्ञ किया. उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति भी हुई. लेकिन हाय रे किस्मत! पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ. इससे दुखी होकर राजा प्रियंवद ने अपना जीवन समाप्त करने का फैसला लिया.

इसके बाद देवसेना प्रकट हुई और उनसे पूजा करने और लोगों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा. संतान की इच्छा रखते हुए राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया. इसके बाद उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. तभी से संतान की कामना और उनकी लंबी उम्र के लिए छठ पूजा की शुरुआत हो गई.
एक मान्यता ये भी है कि त्रेता युग में भगवान राम और माता सीता ने भी छठ पूजा की थी. अयोध्या लौटने के बाद राम और सीता ने राज्याभिषेक के छठे दिन सूर्य देव की पूजा की थी. कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों की माता कुंती ने सूर्यदेव की पूजा की थी, जिससे उन्हें कर्ण जैसा तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ और फिर अंगराज कर्ण के भी छठ पूजा करने की कथा, अंग प्रदेश, मौजूदा भागलपुर-मुंगेर में सुनाई जाती है. भगवान कृष्ण ने भी द्रौपदी को छठ व्रत करने की सलाह दी थी. द्रौपदी के छठ पर्व करने के बाद पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला.

सूर्य को अर्घ्य देने की कहानी | Offering Prayers to The Sun
छठी मइया को सूर्यदेव की बहन भी कहा जाता है. सूर्य को अर्घ्य देने का गहरा वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व है. धार्मिक रूप से माना जाता है कि सूर्य जीवन, ऊर्जा और सफलता के प्रतीक हैं. उन्हें अर्घ्य देकर हम उनके आशीर्वाद से स्वास्थ्य, संतान और समृद्धि की कामना करते हैं.
वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व है. जल में खड़े होकर उगते और डूबते सूर्य को निहारना शरीर को सकारात्मक ऊर्जा देता है. पानी की सतह से परावर्तित सूर्य किरणें आंखों और त्वचा के लिए भी लाभदायक होती हैं. जानकार बताते हैं कि ये प्रक्रिया डिटॉक्सिफिकेशन में भी मदद करती है.
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