- कर्मचारियों की पैरवी करने वाला राइट टू डिस्कनेक्ट बिल-2025 एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में पेश किया
- राइट टू डिस्कनेक्ट बिल कर्मचारियों को ऑफिस के बाद इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन से अलग होने का कानूनी अधिकार देगा
- बिल के तहत कर्मचारी ऑफिस के बाद फोन या ईमेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं होंगे और कोई कार्रवाई नहीं होगी
राजीव गुरुग्राम के एक कॉपरपोरेट ऑफिस में काम करते हैं. पिछले दिनों वह ऑफिस के बाद घर गए, तो तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. ऐसे में वह फोन को सायलेंट मोड पर करके सो गए. अगले दिन जब वह ऑफिस गए, तो उनके बॉस ने गुस्से से पूछा- राजीव कल तुमने मेरा फोन क्यों नहीं उठाया. कोई जरूरी काम था, जो तुरंत करना था. राजीव अपनी तबीयत के बारे में बता पाते, इससे पहले ही बॉस ने उन्हें वॉर्निंग देकर कुछ फाइलें थमा दीं. साथ ही नसीहत भी दे दी कि आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए. ये कहानी आज किसी एक कॉर्पोरेट ऑफिस तक सीमित नहीं है. लगभग हर ऑफिस में ऐसा ही वर्क कल्चर देखने को मिल रहा है. इसमें बॉस ये उम्मीद करता है कि एम्प्लॉइज ऑफिस के बाद घर पर भी उनका फोन उठाए और काम करे. इस वर्क कल्चर ने निजी जिंदगी और ऑफिस लाइव के बीच का बैलेंस बिगाड़ दिया है, जिसके घातक परिणाम लोगों की सेहत पर नजर भी आ रहे हैं. हालांकि, लोकसभा में पेश 'राइट टू डिस्कनेक्ट बिल- 2025' अगर कानून बन जाता है, तो ये समस्या हल हो सकती है.
क्या है राइट टू डिस्कनेक्ट बिल?
राइट टू डिस्कनेक्ट यानि अलग होने का अधिकार. यह बिल हर कर्मचारी को काम से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन से ऑफिस के बाद या छुट्टी के दिन डिस्कनेक्ट करने का अधिकार देता है. बिल के मुताबिक, यदि ऑफिस के बाद बॉस किसी कर्मचारी को फोन करता है, तो वह फोन को उठाने के लिए बाध्य नहीं होगा. घर पर ऑफिस के किसी ई-मेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं होगा. ऐसा करने पर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. कंपनी का कोई बॉस अगर अपने कर्मचारी को फोन उठाने के लिए बाध्य करता है, तो इसका हर्जाना कंपनी को जुर्माने के रूप में भुगतना होगा. बिल में प्रावधान है कि किसी भी तरह की अवहेलना (नॉन-कम्प्लायंस) की स्थिति में संबंधित संस्था (कंपनी या सोसायटी) पर उसके कर्मचारियों के टोटल रेम्यूनरेशन का 1 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा.
क्या है राइट टू डिस्कनेक्ट बिल का मकसद
कर्मचारियों की पैरवी करने वाला राइट टू डिस्कनेक्ट बिल-2025 एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में पेश किया है. इस बिल का मकसद भारत में कर्मचारियों के लिए वर्क-लाइफ को बैलेंस करना है. एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में ' राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025' पेश किया. इस बिल का मकसद भारत में वर्कर्स और एम्प्लॉइज के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा देना है. सामान्य शब्दों में कहें, तो ये बिल कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद बॉस के फोन या ईमेल का जवाब देने से कानूनी रूप से फ्री हो जाएंगे.
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सुप्रिया सुले ने प्राइवेट मेंबर बिल को लेकर कहा कि डिजिटल और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी काम में फ्लेक्सिबिलिटी देती हैं, लेकिन वे प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ के बीच की बैलेंस नहीं बैठने देती है. इसका सीधा प्रभाव कर्मचारी की सेहत पर पड़ता है. कर्मचारी मानसिक दबाव महसूस करते हैं. बता दें कि ये एक प्राइवेट बिल है, जिसे सुप्रिया सुले ने अभी लोकसभा में पेश किया है. अगर ये बिल लोकसभा में पास हो जाता है, तो इसे राज्यसभा में भेजा जाएगा. हालांकि, इसकी संभावना काफी कम है.
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