ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi Case) से आम नागरिकों को एक और शब्द 7/11 मिला है. इसका इस्तेमाल सिविल केसों और कानूनी अदालतों में बहुत होता है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी ज्ञानवापी मामले में आदेश देते हुए वाराणसी की जिला अदालत को कहा कि प्राथमिकता के आधार पर मुस्लिम पक्ष की सिविल प्रक्रिया संहिता यानी सिविल प्रॉसिजर कोड (Civil Procedure Code) यानी CPC के आदेश 7 नियम 11 के तहत इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला करे.
यानी पहले सुनवाई इस मुद्दे पर हो कि हिंदू पक्षकारों की ये याचिका सुनवाई योग्य है भी या नहीं. इस सुनवाई का मुख्य आधार 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट' यानी पूजा स्थल कानून के तहत ये तय करना है कि क्या ये मामला 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट' के तहत वर्जित है या नहीं. यानी सिविल प्रक्रिया संहिता में आदेश 7 नियम 11 के तहत इस मुकदमे पर रोक है या नहीं.
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दरअसल CPC आदेश 7 नियम 11 कहता है कि कोई वाद यानी मुकदमे को अदालत अस्वीकार कर देगी अगर :-
- a) जहां कॉज ऑफ एक्शन यानी कार्रवाई करने का कोई कारण नहीं दिख रहा हो. यानी अर्जी में कॉज ऑफ एक्शन ही नहीं बताया गया हो.
- b) जहां दावा की गई राहत का कम मूल्यांकन किया गया है, और वादी, अदालत द्वारा निर्धारित समय के भीतर मूल्यांकन को सही करने के लिए निर्देश देने के बाद भी ऐसा करने में विफल रहता है;
- c) जहां दावा की गई राहत का उचित मूल्यांकन किया गया है, लेकिन वाद के पेपर पर अपर्याप्त स्टाम्प लगी हैं, अदालत द्वारा निर्धारित समय के भीतर आवश्यक स्टाम्प लगाने के आदेश के बावजूद वादी ऐसा करने में विफल रहता है इसलिए.
- d) जहां वाद पत्र में दिया गया कोई बयान किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत होता है.
- e) जहां इसे डुप्लीकेट में दाखिल नहीं किया गया.
- f ) जहां वादी नियम 9 के प्रावधान का पालन करने में विफल रहता है यानी वादी द्वारा वाद की अपेक्षित प्रतियां दाखिल करने के अदालती आदेशों का पालन करने में विफलता.
इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि हिंदू पक्ष की याचिका 1991 के 'प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट' के तहत वर्जित है. इसलिए ये CPC आदेश 7 नियम 11 के प्रावधान d के तहत आता है, जिसमें कहा गया है कि जहां वाद पत्र में दिया गया कोई बयान किसी कानून द्वारा वर्जित प्रतीत होता है, उसे अदालत अस्वीकार करेगी.
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