"जेपीसी की मांग सिर्फ केंद्र को शर्मिंदा करने के लिए..": अदाणी-हिंडनबर्ग विवाद पर हरीश साल्वे

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने शुक्रवार को NDTV से कहा कि अदाणी समूह-हिंडनबर्ग रिसर्च मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से कराने की कुछ विपक्षी पार्टियों की मांग "केवल सरकार को शर्मिंदा करने के लिए है."

नई दिल्ली:

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने शुक्रवार को NDTV से कहा कि अदाणी समूह-हिंडनबर्ग रिसर्च मामले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से कराने की कुछ विपक्षी पार्टियों की मांग "केवल सरकार को शर्मिंदा करने के लिए है." उन्होंने कहा कि छह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश ज्यादा बेहतर विकल्प है और यह जांच समयबद्ध होनी चाहिए, क्योंकि इससे निवेशकों का भरोसा जुड़ा है.

साल्वे ने NDTV से कहा. "यह महत्वपूर्ण है (समयबद्ध जांच) क्योंकि निवेशकों का विश्वास नाजुक है. चाहे सच हो या गलत, बाजार में उतार-चढ़ाव की ऐसी घटनाओं से निवेशकों की भावना को नुकसान पहुंचा है और उसे वापस कायम करने के लिए हमें जल्दी से यह जानने की जरूरत है कि वास्तव में हुआ क्या था."

सुप्रीम कोर्ट ने कल विशेषज्ञों की एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया. यह अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग के आरोपों के कारण अदाणी समूह की फर्मों के स्टॉक क्रैश से उत्पन्न मुद्दों पर गौर करेगी.

साल्वे ने समिति के गठन का स्वागत करते हुए कहा कि अदाणी-हिंडनबर्ग केस में कुछ जटिल वित्तीय मामले शामिल हैं जिन्हें केवल विषय विशेषज्ञ ही संभाल सकते हैं.

हरीश साल्वे ने कहा, "जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) में ऐसे सांसद होते हैं जो बहुत समझदार लोग होते हैं. यहां जो हुआ है वह एक बहुत ही विशिष्ट क्षेत्र है. यहां क्या हुआ है, कंपनियों की स्ट्रक्चरिंग को लेकर आरोप लगाए गए हैं. आरोप लगाए गए हैं कि कैसे शेयर जारी किए गए हैं, कैसे शेयरों को ओवर वेल्यूड किया गया, कैसे बाजार में खेला गया." 

उन्होंने छह सदस्यीय समिति को लेकर कहा कि, "यह एक बहुत ही विशिष्ट क्षेत्र है. जस्टिस सप्रे बूहुत अनुभवी हैं, वे एक कॉमर्शियल लॉयर रहे हैं. हमने एक साथ काम किया है ... वह एसएटी (प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण) में थे. सोमाशेखरन सुंदरेसन भी हैं. वे इस विषय को जानते हैं. वे अधिकांश वकीलों की तुलना में इस कानून को बेहतर जानते हैं. वे मुझे यह कानून सिखा सकते हैं.'' साल्वे ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम सप्रे, एसबीआई के पूर्व चेयरमैन ओपी भट, बॉम्बे हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस जेपी देवधर, इंफोसिस के पूर्व चेयरमैन केवी कामत, इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि और वकील सोमशेखरन सुंदरसन सिक्यूरिटीज और रेगुलेटरी विशेषज्ञ भी हैं.

साल्वे ने कहा कि, "उनके जैसे लोग देखेंगे कि बाजार में क्या चल रहा है, और वास्तव में क्या हुआ है, और आपके सामने यह रिपोर्ट होगी. और इसके बाद यदि रिपोर्ट आपको आश्वस्त करती है कि राजनीतिक कवर-अप हुआ है, तो आपको संसद में कार्रवाई की मांग करनी चाहिए, संसद में बहस करनी चाहिए. संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग करनी चाहिए." साल्वे ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा, आज जेपीसी की मांग केवल सरकार को शर्मिंदा करने के लिए है और 2024 के करीब आते ही शोर और तेज हो जाएगा." 

नई कमेटी को लेकर विपक्षी पार्टियों में भी मतभेद हैं. कांग्रेस और उसके सहयोगी जेपीसी चाहते हैं. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी अकेले इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. तमिलनाडु की डीएमके ने भी कांग्रेस की मांग का समर्थन किया है.

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बहरहाल, तृणमूल कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि वह जेपीसी पर जोर नहीं देगी. तृणमूल अकेली नहीं है, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने भी अदालत के फैसले का स्वागत किया है. इससे कांग्रेस और उसके कुछ सहयोगी अलग-थलग पड़ गए हैं.