
- सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्यपालों की विधेयक मंजूरी शक्तियों पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई की.
- न्यायालय ने कहा कि उसका फैसला राजनीतिक दलों की स्थिति से प्रभावित नहीं होगा, केवल संविधान की व्याख्या करेगा.
- CJI ने कहा कि कोर्ट को राजनीतिक मंच नहीं बनाना चाहिए और वकीलों को कानूनी दलीलों तक सीमित रहना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों की शक्तियों से संबंधित राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई हुई. सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की अगुआई में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने कई अहम टिप्पणियां की. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि उसका फैसला इस बात से प्रभावित नहीं होगा कि वर्तमान में कौन सा राजनीतिक दल सत्ता में है या पहले था. वह केवल संविधान की व्याख्या करेगा. पीठ ने प्रथम दृष्टया यह भी टिप्पणी की कि समय-सीमा निर्धारित करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि वर्तमान संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, अर्थात अनुच्छेद 200, 201 में संशोधन शामिल किए जा सकते हैं.
सीजेआई जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि हम निर्दिष्ट करेंगे. जांच करेंगे कि क्या हम राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए एक स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला निर्धारित कर सकते हैं?
जितनी जल्दी हो सके सबसे अच्छा विकल्प, लेकिन... : CJI
पीठ ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित करने की अपनी शक्ति और निर्णय पर भी संदेह व्यक्त किया और कि यदि समय-सीमा का पालन नहीं किया गया तो क्या होगा? इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमें लगता है कि "जितनी जल्दी हो सके" सबसे अच्छा विकल्प है, लेकिन क्या यह पर्याप्त नहीं था? हम इसकी भी जांच कर रहे हैं.
इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने चुटकी लेते हुए कहा कि हम कोर्ट या अधीनस्थ न्यायालयों के लिए भी इसी भावना से समय सीमा निर्धारित करने से बचते हैं.
अदालत को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनने देंगे: CJI
वहीं सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के पास अन्य राज्यों की सूची हो सकती है जहां इसी तरह की देरी हुई हो. मेहता ने जवाब दिया कि उनके पास 1947 से ऐसे विवरण है कि संविधान को कैसे मजे की सवारी बनाकर इस्तेमाल किया गया था. हालांकि सीजेआई ने टोका कि 1947 में कोई अनुच्छेद 200 और 201 नहीं था. तब मेहता ने स्पष्ट किया कि उनका मतलब आजादी नहीं बल्कि देश में संविधान लागू होने के बाद से ही था.
मेहता ने कहा कि पीठ ने मेरे संदर्भ को समझ लिया है. संविधान लागू होने की तारीख से संविधान की अवमानना करते हुए कैसे व्यवहार किया गया था.
जवाब में सिंघवी ने कहा कि आप यह जताने रहे हैं कि शासन की सभी बुराइयां 1947 से जुड़ी हैं. आपको ऐसा कहने की जरूरत नहीं है. इस पर सीजेआई ने तपाक से कहा कि हम ये कतई नहीं चाहते कि इसे राजनीतिक मंच में परिवर्तित किया जाए. हम अदालत के मंच को राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाने देना चाहते हैं. वकील कानूनी दलीलों तक ही सीमित रहें.
इसके बाद सिंघवी ने दलील दी कि दो गलतियां मिलकर सही नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि सॉलिसिटर जनरल कहते हैं कि मेरे पास एक और चार्ट है. एक बार उन्हें यह चार्ट दिखाने दें. वहां भी हमारे ही प्रस्ताव और दलीलों का समर्थन ही मिलेगा. सिंघवी ने कहा कि कोर्ट समय की 'जीवंत वास्तविकताओं और महसूस की गई आवश्यकताओं' को भी ध्यान में रखता है.
सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल फिलहाल अपनी बहस जारी रखेंगे.
राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई कर रही है पीठ
चीफ जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदूरकर की संविधान पीठ संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा शीर्ष अदालत को भेजे गए संदर्भ पर सुनवाई कर रही है. इस संदर्भ में अदालत के अप्रैल 2025 के फैसले पर सवाल उठाया गया है. उसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए सदन में पारित विधेयकों को मंजूरी देने पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई है.
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