जन्मतिथि- 28 अक्टूबर 1930
पुण्यतिथि - 3 सितम्बर 1997
हिंदी फिल्मों के कुछ भोजपुरी गीतों से बात शुरू करते हैं
पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा
के हियरा में उठत हिलोर
पुरवा के झोंकवा में आयो रे संदेसवा
कि चलो आज देसवा की ओर।।
( फिल्म – गोदान / 1963 )
बिन बदरा बिजुरिया कइसे चमके
( फिल्म – बंधन / 1969 )
खई के पान बनारस वाला
( फिल्म – डॉन / 1978 ).
इन गीतों के गीतकार हैं अंजान. अंजान नितांत भोजपुरिया थे. उक्त तीन गीतों में से सबसे लोकप्रिय "खइके पान बनारसवाला" तो आप सबने सुना ही होगा और संभावना है कि बनारस जाकर लंका पर बनारसी पान भी खाया होगा. तो जनाब! वो पान का पत्ता, कत्था, कीमाम, गुलकंद और सुपारी का स्वाद भी थोड़ा-बहुत याद होगा ही. एकदम मन लहरा देता है बनारसी पान! वैसे ही थे अंजान, जिनके गीत सुनने पर मन में एक लहर-सी उठती है.
तीन सितम्बर को उनकी पुण्यतिथि पर उनकी याद आ गई. दिल-दिमाग से खालिश भोजपुरिया लालजी पांडे उर्फ अंजान यही बनारस में पैदा हुए. हालांकि दुनिया से विदा होते वक्त मायानगरी में थे. फिर भी, कहावत है, काशीवासी भले अन्यत्र चला जाए, अंदर से काशी कहीं नहीं जाती. ईश्वर की अजीब लीला है, लोग काशी तन तजते वक्त आते हैं, अंजान काशी से बंबई इसलिए गये ताकि जी सकें. क्या है उनकी कहानी, आगे जानेंगे.
अंजान का भोजपुरी कनेक्शन
अंजान ने अपने गीतों से ऐसी पहचान बनाई कि वे हिन्दी गीत-संगीतप्रेमियों के लिए कभी अंजान नहीं रहे. साथ ही, वे भोजपुरी में भी अपनी चुहलबाजी वाले गीतों से श्रोताओं का मन मोहते रहे. हालांकि उन्होंने जीवन-दर्शन के गीत भी लिखे और प्यार के रस से भरे रोमांटिक गीत भी. भोजपुरी फिल्म 'बलम परदेसिया' (1979) से उन्होंने भोजपुरी पर्दे पर धूम मचाई. इसके बाद तो उन्होंने एक से बढ़कर एक मधुर गीत भोजपुरी में लिखे, जो यादगार बन गये. "गोरकी पतरकी रे, मारे गुलेलवा जियरा उड़-उड़ जाये" को भला कौन भुला सकता है? आशा भोंसले की बलखाती आवाज और मोहम्मद रफी की गुदगुदाती गायकी का मिश्रण जब अंजान के लिखे शब्दों संग संयुक्त हुआ तो एक मधुर गीत का सर्जन हुआ, जिसे सुन-सुनकर संगीतप्रेमी गदगद हुए.
अंजान ने भोजपुरी में बहुत-से गीत लिखे. उन्होंने संगीतकार चित्रगुप्त के लिए भोजपुरी में गीत लिखे और दोनों की दोस्ती बाद में उनके लड़कों के बीच भी रही. अंजान के लड़के समीर अंजान और चित्रगुप्त के लड़के आनंद व मिलिंद की तिकड़ी बाद के वर्षों में एक से एक हिट गाने देती रही. अंजान के हिट भोजपुरी फिल्मों में 'बलम परदेसिया' के अतिरिक्त 'हमार भौजी', 'बिरहिन जनम-जनम के', 'भईया हमार राम जइसन भउजी हमरी सीता' आदि है. अंजान मनोरंजक फिल्मी गीतों में भी चेतना जगाने के दायित्व का निर्वहन करते रहे. बलम परदेसिया में उनका गीत है, "जगत रहs भईया तू सोये मति जइहs, पसीना के कमइया, मुफत जिन गँवइहा".
बीमारी उनको काशी से मायानगरी खींच ले आयी
अंजान का पूरा नाम लालजी पांडे है. बनारस के ओदार गांव में शिवनाथ पांडे के घर उनका जनम हुआ. उनकी माँ का नाम इंदिरा देवी था. 28 अक्टूबर 1930 को जन्मे अंजान को शुरू से कविता, गीत-संगीत, साहित्य और कला में रूचि रही. ज्ञातव्य है कि बनारस में स्वाभाविक रूप से प्रत्येक दूसरे घर में झाल, ढोलक, तबला, हारमोनियम की आवाज सुनने को मिल जाती है. यदि कोई पेशेवर गायकी नहीं भी करता तो भजन कीर्तन या शौकिया गायकी के बहाने संगीत प्रेम प्रदर्शित करता ही है. और ऐसा परिवेश अंजान को बनारस में मिला, उनके दिलो-दिमाग में संगीत की लहर उठने लगी. अंजान के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, पर जैसे-तैसे जोड़-गांठ कर उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से वाणिज्य में पोस्टग्रेजुएशन की उपाधि हासिल कर ली. पढ़ने-लिखने में अभिरुचि थी ही. पढ़ाई के दौरान गीत-शाइरी के कारण यार-दोस्त और पास-परिवेश में काफी चर्चित रहे. यह भी कहा जाता है कि उनके दोस्त ने ही उनका तखल्लुस 'अंजान' रखा. अंजान जवानी में ही अस्थमा जैसी व्याधी से पीड़ित हुए. अब उनका पूरा जीवन इस बीमारी के साथ व्यतीत होना था।
उनके एक दोस्त थे, शशि बाबू ! बनारस के डी पेरिस होटल के मालिक. एक दिन वे जिद्द कर अंजान को अपने एक जान-पहचान वाले होटल द क्लार्क में हो रहे एक संगीत कार्यक्रम में ले गये. इस कार्यक्रम में मशहूर गायक मुकेश आये थे. शशि बाबू ने मुकेश से अंजान को मिलवाया. जब मुकेश ने उनके गीत सुने और शाइरी सुनी तो वाह-वाह कर उठे. मुकेश ने अंजान को सलाह दी कि आपको बंबई आना चाहिए. हालांकि तब अंजान ने इस बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. उनको लगा कि बंबई का खर्च कहाँ से पूरा होगा, जब यहाँ का खर्च ही पूरा नहीं हो पा रहा है. पर किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था. उनकी अस्थमा की बीमारी और बिगड़ती गई. डॉक्टर ने यहाँ तक कहा कि आप अगर जीना चाहते हैं तो बनारस छोड़ दें. यहाँ की शुष्क हवा आपकी स्थिति पूरी तरह बिगाड़ देगी. आप समुद्री किनारे वाला शहर में जाएँ, वहाँ की हवा आपके अनुकूल होगी. अब अंजान को लगा कि शायद बंबई जाना ठीक होगा. वहाँ की नमी वाली हवा सेहत के अनुकूल होगी और मुकेश जी से मिलना भी हो जाएगा.
रूपए-पैसे तो थे नहीं. जैसे-तैसे संघर्ष के कुछ दिन कटे और फिर उनकी हालत खराब. उनके लड़के ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके बाबूजी कई साल तक कभी ट्रेन में, कभी प्लेटफ़ॉर्म पर, कभी अपार्टमेंट की सीढ़ी पर अपना समय काटते रहे. गुजारा के लिए बंबई में ट्यूशन पढ़ाने का काम भी किया. इसी बीच वे मुकेश से मिले, जिन्होंने उन्हें बंबई आने की सलाह दी थी. मुकेश ने उन्हें प्रेमनाथ से मिलवाया. प्रेमनाथ तब 'प्रिजनर ऑफ गोलकोंडा' बना रहे थे. इसमें उनको गाना लिखने का काम मिला. उनका पहला हिन्दी गीत "लहर ये डोले, कोयल बोले" इस फिल्म में आया. इस फिल्म में एक और गाना उन्होंने लिखा. गीत से उनके करियर को अपेक्षित गति नहीं मिली, पर छोटे-छोटे फिल्मों में गीत लिखने के मौके मिलने लगे. इस तरह रोटी की जुगाड़ हुई.
1963 की फिल्म 'गोदान' में उनको मौका मिला. राजकुमार की इस फिल्म का संगीत रवि शंकर ने दिया था. इस फिल्म के गीतों से अंजान ने इंडस्ट्री में अपनी धमक कायम की. इसकी वजह से तब के बड़े संगीतकार ओ.पी. नैय्यर ने उनसे संपर्क किया और बड़ी फिल्मों में गीत लिखने का अवसर दिया. फिल्म बंधन का गीत "बिन बदरा बिजुरिया कइसे चमके" अंजान का पहला सफल गीत था. इसी समय कल्याण जी-आनंद जी से भी अंजान की नजदीकी हुई और फिर शुरू हुआ अंजान के हिट गीतों का सिलसिला. तब अमिताभ बच्चन के लिए अंजान ने एक से बढ़कर एक हिट गीत लिखना शुरू किया और फिल्म इंडस्ट्री के बहुत बड़े गीतकार बन गये. प्रकाश मेहरा के साथ भी अंजान की खूब चली और उन्होंने मेहरा के अधिकांश फिल्मों में गीत लिखे. अमिताभ के लिए कल्याण जी-आनंद जी के साथ अंजान के गीत लिखने का सिलसिला शुरू हुआ 1976 की फिल्म 'दो अजनबी' से. उसके बाद 'हेरा फेरी' का "बरसों पुराना ये याराना", 'खून पसीना' का टाइटल सॉन्ग, 'मुकद्दर का सिकंदर' का "रोते हुए आते हैं सब", "दिल तो है दिल", "ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना", 'लावारिस' का "कब के बिछड़े" और 'डॉन' का "खइके पान बनारस वाला" उन्होंने लिखा. अंजान ने अमिताभ बच्चन के लिए दूसरे संगीतकारों के साथ मिलकर भी गीत लिखे. शायद गंगा किनारे वाला रिश्ता दोनों जनों ने खूब निभाया. बनारस के अंजान और प्रयाग के अमिताभ की जोड़ी खूब जमीं.
"जिसका कोई नहीं उसका तो ख़ुदा है यारो" या "मेरी सांसों को जो महका रही है" जैसे शानदार गाने अंजान ने रचे हैं. 'डिस्को डांसर' में उन्होंने टाइटल सॉन्ग लिखा तो "गोरों की ना कालों की, दुनिया है दिल वालों की" जैसा गाना भी लिखा. उन्होंने हमेशा किरदारों के मुताबिक गाने लिखे, वो भी आसान भाषा में, इसलिए उनके गाने जनता के बीच खूब लोकप्रिय हुए.
अंजान की प्रमुख फिल्मों में - दो अनजाने, हेरा फेरी, खून पसीना, मुकद्दर का सिकन्दर, डॉन, लावारिस, दो और दो पांच, याराना, नमक हलाल, शराबी, महान और जादूगर आदि हैं.
अंजान के विरासत को उनके बेटे समीर अंजान आगे बढ़ा रहे हैं. समीर ने नब्बे के दशक में एक से बढ़कर एक हिट गीत लिखा. समीर के लिखे आशिकी फिल्म के कई गीत तो आज भी लोगों की जुबान पर हैं. अंजान अपने गीतों के मार्फत हमेशा संगीतप्रेमियों के दिलों के तार झनझनाते रहेगें. उनकी पावन स्मृति को नमन.
अस्वीकरण: लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य-सिनेमा के जानकार हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.