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SC/ST एक्ट में अग्रिम जमानत तभी संभव, जब प्रथम दृष्टया अपराध न हो : सुप्रीम कोर्ट

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार कर ली और एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. आरोप था उसने कथित तौर पर अपीलकर्ता को उसके जाति के नाम का उल्लेख करके सार्वजनिक रूप से गाली दी और अपमानित किया था.

SC/ST एक्ट में अग्रिम जमानत तभी संभव, जब प्रथम दृष्टया अपराध न हो : सुप्रीम कोर्ट
  • SC ने कहा कि अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत तब दी जा सकती है जब प्रथम दृष्टया अपराध न बने.
  • यदि प्रथम दृष्टया यह पाया जाए कि अधिनियम की धारा तीन के तहत अपराध नहीं हुआ तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है.
  • आरोपियों ने शिकायतकर्ता को गालियां दीं और हिंसा की, क्योंकि उसने चुनाव में विशेष उम्मीदवार को वोट नहीं दिया.
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नई दिल्ली:

एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत तब तक स्वीकार्य नहीं है, जब तक कि प्रथम दृष्टया यह सिद्ध न हो जाए कि अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बनता. अदालत ने कहा कि जहां प्रथम दृष्टया यह पाया जाता है कि अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध नहीं बना है और ऐसे अपराध से संबंधित आरोप प्रथम दृष्टया निराधार हैं. वहां अदालत के पास धारा 438 के तहत आरोपी को अग्रिम जमानत देने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल करने की गुंजाइश है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार कर ली और एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. आरोप था उसने कथित तौर पर अपीलकर्ता को उसके जाति के नाम का उल्लेख करके सार्वजनिक रूप से गाली दी और अपमानित किया था.

जस्टिस अंजारिया द्वारा लिखित फैससे में यह उल्लेख किया गया कि प्रथम दृष्टया मामला SC/ST अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराधों के तत्वों के आधार पर बनता है. आरोपियों ने शिकायतकर्ता को लोहे की छड़ से पीटा और घर जलाने की धमकी दी. शिकायतकर्ता की मां और चाची के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया और उन्हें भी उसी जातिवादी गाली से संबोधित किया गया.

"मंगत्यानो" शब्द का प्रयोग स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे से किया गया था क्योंकि वह उक्त अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित था. आरोपी द्वारा की गई अपमानजनक बातों और आचरण से जातिगत गठजोड़ स्थापित होता है. शिकायतकर्ता को जातिवादी और अपमानजनक तरीके से इसलिए अपमानित किया गया क्योंकि उसने विधानसभा चुनाव में आरोपी की इच्छा के अनुसार एक विशेष उम्मीदवार, बाहुबली-आरोपी के पक्ष में वोट नहीं दिया था.

हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं, यह निष्कर्ष निकालते समय, अदालतो को मिनी- ट्रायल आयोजित करके साक्ष्य के दायरे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होगी.

अदालत ने कहा कि अपराध के घटित होने के बारे में प्रथम दृष्टया मामला न बनना एक ऐसी स्थिति मानी जाती है जहां अदालत प्रथम दृष्टया ही या FIR में दिए गए कथनों को पढ़कर ही इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है. इस संबंध में FIR की विषयवस्तु और आरोप निर्णायक होंगे. इसके अलावा, प्रथम दृष्टया अपराध बनता है या नहीं, इस निष्कर्ष पर पहुंचने में अदालत को साक्ष्य के दायरे में जाने या अन्य सामग्रियों पर विचार करने की अनुमति नहीं होगी, न ही अदालत मिनी-ट्रायल  आयोजित करने का फैसला ले सकती है.

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