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टिहरी-लेह से वायनाड तक... क्यों दरक रहे पहाड़? किन वजहों से होती हैं लैंडस्लाइड

केरल के वायनाड में तेज बारिश की वजह से सोमवार देर रात 4 अलग-अलग जगहों पर लैंडस्लाइड की घटनाएं हुई. देर रात करीब 2 बजे से सुबह 6 बजे के बीच हुए लैंडस्लाइड में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में तबाही मची. इन गांवों में घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां बह गईं.

लैंडस्लाइड की घटनाओं के बाद वायनाड में आर्मी, एयरफोर्स, SDRF और NDRF की टीमें रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हैं.

नई दिल्ली/कोच्चि:

क्लाइमेट चेंज (Climate Change) कोई भ्रम नहीं, बल्कि एक असलियत है... आए दिन एक के बाद एक सामने आ रही कई घटनाएं हमें इस बात का अहसास करा रही हैं कि हमारी हर गतिविधि को प्रकृति रिकॉर्ड कर रही है. उसका असर घूम फिर कर हमारे ही ऊपर असर डाल रहा है. क्लाइमेट चेंज यानी आबोहवा में हो रहा बदलाव पर्यावरण (Ecosystem) को लगातार गर्म कर रहा है. उसका असर गंभीर बेमौसमी बदलावों की शक्ल में सामने आ रहा है. उत्तराखंड के टिहरी और केरल के वायनाड (Wayanad Landslides)में जो हुआ, वो इसी का नतीजा है.  

केरल के वायनाड में तेज बारिश (Heavy Rainfall) की वजह से सोमवार देर रात 4 अलग-अलग जगहों पर लैंडस्लाइड की घटनाएं हुई. देर रात करीब 2 बजे से सुबह 6 बजे के बीच हुए लैंडस्लाइड में मुंडक्कई, चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में तबाही मची. इन गांवों में घर, पुल, सड़कें और गाड़ियां बह गईं. रिपोर्ट के मुताबिक, लैंडस्लाइड में अब तक 126 लोगों की मौत हो चुकी है. 800 लोग बचाए गए हैं. 100 से ज्यादा लोगों का इलाज चल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, 98 लोग लापता बताए जा रहे हैं.

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उत्तराखंड में लैंडस्लाइड में बह गए गांव
तीन दिन पहले उत्तराखंड में वायनाड जैसी ही स्थिति हुई थी. कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश से टिहरी में लैंडस्लाइड हो गया. पहाड़ी में लैंडस्लाइड के बाद उसका मलबा तेजी से टिहरी के तोली गांव की तरफ आ गया. इससे कई घर बह गए. भिलंगना ब्लॉक में तो एक गांव पूरा बह गया. शनिवार दोपहर केदारनाथ रूट पर सोनप्रयाग के पास भी लैंडस्लाइड की डरावनी तस्वीर सामने आई. यहां पहाड़ी से अचानक मलबा गिरने लगे थे. लैंडस्लाइड में कोई जान माल का नुकसान नहीं हुआ है. हालांकि, केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को रोक दिया गया है. 

लेह के अंजनी महादेव नाले में अचानक आई बाढ़
हिमाचल प्रदेश में मनाली के पास अंजनी महादेव नाले में शनिवार सुबह बाढ़ आई. लैंडस्लाइड के कारण यहां हालत खराब है. मनाली-लेह रूट कई घंटों तक बंद रहा. यात्री इस दौरान फंसे रहे. लैंडस्लाइड की वजह से 10 से ज्यादा सड़कें बंद हैं. उन्हें खोलने की कोशिश जारी है.

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कैसे हैं वायनाड के ताजा हालात?
लैंडस्लाइड की घटनाओं के बाद वायनाड में आर्मी, एयरफोर्स, SDRF और NDRF की टीमें रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हैं. कन्नूर से आर्मी के 225 जवानों को वायनाड के लिए रवाना किया गया है. एयरफोर्स के 2 हेलिकॉप्टर भी मदद के लिए भेजे गए हैं. इसके साथ ही NDRF की कई टीमों को स्टैंड बाय पर रखा गया है. लैंडस्लाइड के बाद 3 हजार से ज्यादा लोग अपने घरों से बाहर हैं. उनके लिए 45 रिलीफ कैंप बनाए गए हैं. मलबे में लापता लोगों का पता लगाने के लिए खोजी कुत्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे का ऐलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लैंडस्लाइड की घटनाओं पर दुख जाहिर करते हुए पीएम रिलीफ फंड से मृतकों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये बतौर मुआवजा देने का ऐलान किया है. प्रधानमंत्री ने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से बात कर उन्हें पूरी मदद का भरोसा दिया है. 

क्या है पर्यावरण के इस भयानक रूप की वजह?
इंसानी गतिविधियों के कारण पहाड़ी इलाकों में लगातार लैंडस्लाइड की घटनाएं बढ़ रही हैं. कहीं सामान्य से बहुत ज़्यादा गर्मी पड़ रही है. कहीं बहुत ज़्यादा बारिश हो रही हैं. कुछ जगहों पर तो बेमौसमी तूफान कहर बरपा रहा है. बारिश का पैटर्न भी बदलने लगा है. बहुत कम इलाके में ही कुछ देर में बहुत ज़्यादा बारिश हो रही है, जिससे लैंडस्लाइड की घटनाएं सामने आती हैं.

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भारतीदासन यूनिवर्सिटी ने रिसर्च पेपर में किया था आगाह
कई वैज्ञानिकों के रिसर्च पेपर लगातार इसे लेकर आगाह करते रहे हैं. अक्टूबर 2020 में केरल में होने वाली लैंडस्लाइड्स पर भारतीदासन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसएम रामास्वामी की अध्यक्षता में एक रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ. इस रिसर्च पेपर में केरल में पश्चिमी घाट की भौगोलिक बनावट का विस्तार से अध्ययन किया गया.

Geomorphology and Landslide Proneness of Kerala, India A Geospatial study नाम के इस रिसर्च पेपर का निष्कर्ष था कि बाकी दुनिया की तरह केरल में भी लैंडस्लाइड की घटनाओं के बढ़ने के पीछे भारी बारिश और मानव जनित कारण हैं. 

रिसर्च पेपर में क्या कहा गया?
-दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के दौरान केरल की पहाड़ी ढलानें लैंडस्लाइड के लिहाज़ से काफी संवेदनशील हो जाती हैं.
-पहाड़ी ढलानों पर सदियों से लगातार रसायनिक और भौतिक क्रियाओं की वजह से चट्टानों में टूट-फूट हो रही है.
-भारी बारिश के दौरान ये एक लैंडस्लाइड की शक्ल में बदल सकती हैं.
- बारिश का पानी चट्टानों में मौजूद दरारों में घुसता है. तापमान में लगातार बदलाव चट्टानों को दरकाने लगता है.
-इसके ऊपर इन पहाड़ी ढलानों में इंसानी दबाव लगातार बढ़ रहा है. विकास और बसावट से जुड़ी गतिविधियां इन पहाड़ी ढलानों को लैंडस्लाइड के लिहाज़ से और संवेदनशील बना रही हैं.

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केरल में क्यों बढ़ रही लैंडस्लाइड की घटनाएं?
केरल पश्चिमी घाट के दक्षिणी मुहाने पर है. लैंडस्लाइड के लिहाज से केरल ही नहीं पूरा पश्चिमी घाट काफी संवेदनशील है. केरल ही नहीं पूरा पश्चिमी घाट काफी ज़्यादा संवेदनशील रहा है. पश्चिमी घाट यानी वेस्टर्न घाट एक बड़ा इलाका है जो छह राज्यों के 44 जिलों और 142 तालुकों तक पसरा हुआ है. ये कई दुर्लभ वनस्पतियों और जीव-जंतुओं का निवास है. भारत में सबसे ज़्यादा जैव विविधता यानी बायो डायवर्सिटी भी वेस्टर्न घाट में ही पाई जाती है. 13 नेशनल पार्क और कई सेंक्चुअरी इसके तहत आती हैं. यूनेस्को ने इसे दुनिया के सबसे अहम जैव विविधता केंद्रों में से एक माना है और गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी बड़ी नदियां यहीं से निकलती हैं. दक्षिण भारत के छह राज्य यहां से निकलने वाली नदियों के पानी पर निर्भर हैं.
 

मार्च 2010 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने जाने माने इकोलोजिस्ट माधव गाडगिल की अध्यक्षता में गाडगिल कमीशन नाम से एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई. इस पैनल ने अगस्त 2011 में पश्चिमी घाट की जैव विविधता को बचाए रखने की रणनीति बनाने से जुड़ी रिपोर्ट तैयार की. 

गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट में क्या है?
गाडगिल कमेटी ने पूरे पश्चिमी घाट की पहाड़ियों को Ecologically Sensitive Area (ESA) बताया. इसके तहत इस इलाके के 142 तालुकों को तीन Ecologically Sensitive Zones यानी ESZ में बांटा गया. ESZ-1 में वो इलाके रखे गए, जहां हर तरह की विकास की गतिविधियों पर रोक की सिफारिश की गई. इसी के तहत कहा गया कि इस इलाके में पड़ने वाले केरल और कर्नाटक के दो बांधों को भी पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरी न दी जाए.

गाडगिल कमेटी ने ये भी कहा कि पर्यावरण से जुड़े मामलों में फैसले लेने के लिए स्थानीय संस्थाओं जैसे ग्राम सभाओं को ज़्यादा अधिकार दिए जाएं. जिन पर पर्यावरण से होने वाले नुकसान का सीधे असर पड़ता है. गाडगिल कमीशन ने ये भी कहा कि पर्यावरण से जुड़े मामलों में फैसले लेने के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत Western Ghats Ecology Authority (WGEA) बनाई जाए. 

गाडगिल कमेटी की हुई आलोचना
गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट की इस आधार पर आलोचना की गई कि ये पर्यावरण और विकास के बीच पर्यावरण संरक्षण की ओर ज़्यादा झुकी हुई है. जम़ीनी वास्तविकताओं से दूर है. ये भी कहा गया कि उसकी सिफारिशों पर अमल करना व्यावहारिक नहीं होगा. 

ये कमेटी वेस्टर्न घाट में बांध और बड़े पैमाने पर सड़कें बनाने के खिलाफ थे. यही वजह है कि इस रिपोर्ट के खिलाफ वो सभी वर्ग खड़े हो गए, जो किसी न किसी तरह इसकी सिफारिशों से प्रभावित हो सकते थे. उन्होंने इसे विकास विरोधी, जन विरोधी, किसान विरोधी तक बता दिया. 

वायनाड के हादसे के बाद आप खुद सोच सकते हैं कि ये रिपोर्ट जनता के हित में थी या नहीं... खास बात ये है कि तब की सरकार ने इस कमेटी की रिपोर्ट को 8 महीने तक सार्वजनिक ही नहीं किया. यहां तक कि सूचना के अधिकार के तहत भी इसकी जानकारी नहीं दी गई. आखिर में दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश के बाद मंत्रालय ने ये रिपोर्ट जारी की है. 

कमेटी ने पश्चिमी घाट के 37% इलाके को ESA बनाने का दिया सुझाव
अप्रैल 2013 में आई कस्तूरीरंगन कमेटी की रिपोर्ट ने पूरे पश्चिमी घाट के बजाय इसके 37% यानी करीब 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाके को ही Ecologically Sensitive Area (ESA) बनाने का सुझाव दिया. ऐसे इलाके में खनन, रेत और बजरी निकालने पर पूरी तरह पाबंदी का सुझाव दिया गया. जिन इलाकों में ये काम चल रहा है, उसे अगले 5 साल के भीतर बंद करने का सुझाव दिया गया.

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इन इलाकों में नहीं बनाए जा सकते थर्मल पावर प्रोजेक्ट
ये भी कहा गया कि इन इलाकों में थर्मल पावर प्रोजेक्ट नहीं बनाए जा सकते. प्रदूषण करने वाले उद्योगों पर पूरी तरह पाबंदी की सिफारिश की गई. कस्तूरीरंगन कमेटी की रिपोर्ट ने 123 गांवों और प्लांटेशन इलाकों को ESA से बाहर रखने का भी सुझाव दिया. एक तरह से गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट की सख्ती को कस्तूरीरंगन कमेटी ने कुछ हद तक हल्का किया. इस वजह से इस रिपोर्ट की आलोचना भी हुई कि उसमें पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को विकास की ज़रूरतों के आगे अनदेखा करने की कोशिश की गई.

महाराष्ट्र के पुणे जिले में 10 साल पहले हुई थी लैंडस्लाइड
ये संयोग ही है कि 10 साल पहले ठीक आज के ही दिन महाराष्ट्र के पुणे जिले में पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर भारी बारिश के बीच एक भीषण लैंडस्लाइड हुआ था. इसमें पूरा गांव ही मिट्टी के नीचे दब गया था. मलिन नाम के उस गांव में 151 लोगों की उस हादसे में मौत हुई थी, कई लोग घायल हो गए थे. गांव के बाकी लोगों की रोज़ी-रोटी भी छिन गई थी. 10 साल बाद भी लोग उस हादसे से उबर नहीं पाए हैं. जिस तरह से अतिवृष्टि की घटनाएं बढ़ रही हैं उससे इस तरह के पहाड़ी इलाके ज़्यादा संवेदनशील हो गए हैं. 

ऐसी लैंडस्लाइड की घटनाओं के पीछे कई कारण हो सकते हैं. जैसे पहाड़ की तीखी ढलानें और चट्टानों का प्रकार... इसके अलावा उस ज़मीन का इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है ये भी लैंडस्लाइड की आशंकाओं को तय करता है.
पहाड़ी ढलानों को काटना, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी इस तरह की लैंडस्लाइड की घटनाओं को बढ़ावा देती है. 

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