पुलवामा के शहीदों के परिजनों को धरनास्थल से हटाने पर भाजपा प्रवक्ता राज्यवर्धन राठौड़ ने प्रेस वार्ता कर राजस्थान सरकार और कांग्रेस पर जमकर हमला किया है. वहीं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले में भाजपा नेताओं पर राजनीतिक रोटियां सेंकने का आरोप लगाया है. उन्होंने वीरांगनाओं की मांगों पर ट्वीट कर सिलसिलेवार जवाब दिया.
अपनी बात से मुकर रहे मुख्यमंत्री
राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि राजस्थान में जिस तरह से वीरांगनाओं का अपमान हो रहा है, वह कांग्रेस पार्टी की मानसिकता दिखाती है. कांग्रेस ने हमेशा भारतीय सेना के ऊपर प्रश्न उठाया है. पुलवामा की घटना के बाद बड़ी-बड़ी घोषणा की, लेकिन अब वे इससे पीछे हट रहे हैं. सीएम भी उनसे मिलने से पीछे हट रहे हैं. पुलवामा के शहीदों के परिवार जनों पर लाठी चार्ज किया जा रहा है और वीरांगना को रात के तीन बजे उठकर थाना ले जाया गया. अंतिम संस्कार के समय सरकार के मंत्री ने कहा कि परिवार जिसे कहेगा, उसे नौकरी दी जाएगी. अब सीएम इस बात से मुकर रहे हैं. राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि वीरांगना तीसरी जगह मूर्ति लगाने की बात कर रही हैं, जबकि सीएम इससे इंकार कर रहे हैं.
ऐसी मांग उचित नहीं
पूरे मामले पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम शहीदों एवं उनके परिवारों का उच्चतम सम्मान करें. राजस्थान का हर नागरिक शहीदों के सम्मान का अपना कर्तव्य निभाता है, परन्तु भाजपा के कुछ नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए शहीदों की वीरांगनाओं का इस्तेमाल कर उनका अनादर कर रहे हैं. यह कभी भी राजस्थान की परम्परा नहीं रही है. मैं इसकी निंदा करता हूं. शहीद हेमराज मीणा की पत्नी उनकी तीसरी मूर्ति एक चौराहे पर स्थापित करवाना चाहती हैं, जबकि पूर्व में शहीद की दो मूर्तियां राजकीय महाविद्यालय, सांगोद के प्रांगण तथा उनके पैतृक गांव विनोद कलां स्थित पार्क में स्थापित की जा चुकी है. ऐसी मांग अन्य शहीद परिवारों को दृष्टिगत रखते हुए उचित नहीं है.
हक मारना उचित है क्या?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि शहीद रोहिताश लाम्बा की पत्नी अपने देवर के लिए अनुकम्पा नियुक्ति मांग रही हैं. यदि आज शहीद लाम्बा के भाई को नौकरी दे दी जाती है तो आगे सभी वीरांगनाओं के परिजन अथवा रिश्तेदार उनके एवं उनके बच्चे के हक की नौकरी अन्य परिजन को देने का अनुचित सामाजिक एवं पारिवारिक दबाव डालने लग सकते हैं. क्या हमें वीरांगनाओं के सामने एक ऐसी मुश्किल परिस्थिति खड़ी करनी चाहिए? क्योंकि वर्तमान में बनाए गए नियम पूर्व के अनुभवों के आधार पर ही बनाए गए हैं. शहीदों के बच्चों का हक मारकर किसी अन्य रिश्तेदार को नौकरी देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? जब शहीद के बच्चे बालिग होंगे तो उन बच्चों का क्या होगा? उनका हक मारना उचित है क्या?
गिनाए अपने काम
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि वर्ष 1999 में मुख्यमंत्री के रूप में मेरे पहले कार्यकाल के दौरान शहीदों के आश्रितों हेतु राज्य सरकार ने कारगिल पैकेज जारी किया एवं समय-समय पर इसमें बढ़ोत्तरी कर इसे और प्रभावशाली बनाया गया है. कारगिल पैकेज में शहीदों की पत्नी को पच्चीस लाख रुपये और 25 बीघा भूमि या हाउसिंग बोर्ड का मकान (भूमि या मकान ना लेने पर 25 लाख रुपये अतिरिक्त), मासिक आय योजना में शहीद के माता-पिता को 5 लाख रुपये सावधि जमा, एक सार्वजनिक स्थान का नामकरण शहीद के नाम पर एवं शहीद की पत्नी या उसके पुत्र/ पुत्री को नौकरी दी जाती है. राजस्थान सरकार ने प्रावधान किया है कि यदि शहादत के वक्त वीरांगना गर्भवती है एवं वो नौकरी नहीं करना चाहे तो गर्भस्थ शिशु के लिए नौकरी सुरक्षित रखी जाएगी, जिससे उसका भविष्य सुरक्षित हो सके. इस पैकेज के नियमानुसार पुलवामा शहीदों के आश्रितों को मदद दी जा चुकी है. शहीद परिवारों के लिए ऐसा पैकेज संभवत: अन्य किसी राज्य में नहीं है.
रक्षामंत्री से की बात
अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान वीरों की भूमि है, जहां के हजारों सैनिकों ने मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया है. यहां की जनता एवं सरकार शहीदों का सबसे अधिक सम्मान करती है. कारगिल युद्ध के दौरान मैं स्वयं राजस्थान के 56 शहीदों के घर जाकर उनके परिवार के दुख में शामिल हुआ. ये मेरे भाव जो मैं आपके समक्ष रख रहा हूं, वही मैंने आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ भी साझा किए हैं.
यह भी पढ़ें-
शहीद जवानों के परिजनों को धरनास्थल से हटाया गया, हिरासत में लिए गए BJP सांसद के समर्थक
कर्नाटक में भाजपा का दांव-प्रचार समिति के अध्यक्ष बने CM बोम्मई, येदियुरप्पा की यह होगी भूमिका
अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन को "प्रह्लाद" बताते हुए कहा- "हिरण्यकश्यप ..."
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं