
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पीसीएस की मुख्य परीक्षा पर रोक लगाने का आदेश दिया है.
- कोर्ट ने आरक्षित वर्ग के योग्य उम्मीदवारों को अनारक्षित सूची में शामिल नहीं करने पर फटकार लगाई.
- कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि वह प्रारंभिक परीक्षा की मेरिट सूची पुनः तैयार करे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) की संयुक्त राज्य इंजीनियरिंग सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा-2024 के रिजल्ट को संशोधित करने का आदेश देते हुए मुख्य परीक्षा पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने अनारक्षित श्रेणी में ओबीसी (OBC) उम्मीदवारों का चयन न किए जाने के मुद्दे पर विचार करते हुए निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग पोस्ट के विरुद्ध चयन और नियुक्ति के प्रयोजनार्थ अंतिम परीक्षा के अगले चरण के लिए अर्हता प्राप्त करने हेतु योग्य उम्मीदवारों की प्रारंभिक परीक्षा परिणाम की मेरिट सूची फिर से तैयार करेगा.
क्या कहा हाईकोर्ट ने
हाईकोर्ट ने कहा कि नई मेरिट सूची तैयार होने के बाद ही आयोग ऐसे संशोधित प्रारंभिक परीक्षा परिणाम के आधार पर मुख्य परीक्षा आयोजित करेगा. यह आदेश जस्टिस अजित कुमार की सिंगल बेंच ने रजत मौर्या व 41 अन्य द्वारा दायर दाखिल याचिकाओं समेत दो और अलग याचिकाओं पर दिया है. कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पाया कि यूपी लोक सेवा आयोग ने प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) का रिजल्ट तैयार करते समय आरक्षण के 'माइग्रेशन' के सिद्धांत का पालन नहीं किया. इस सिद्धांत के तहत आरक्षित वर्ग के जिन उम्मीदवारों ने योग्यता के आधार पर अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के बराबर या उससे अधिक अंक प्राप्त किए है उन्हें अनारक्षित सूची में शामिल किया जाना अनिवार्य है.
याचिकाकर्ताओं की शिकायत क्या
याचिकाकर्ताओं की शिकायत थी कि आयोग ने कुल 609 पोस्ट के विरुद्ध 1:15 के अनुपात में पर्याप्त संख्या में उम्मीदवारों को सफल घोषित नहीं किया, क्योंकि उसने परिणाम को वर्गवार तैयार किया और उच्च मेरिट वाले आरक्षित उम्मीदवारों को अनारक्षित सूची में नहीं डाला गया. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि आयोग ने भर्ती विज्ञापन के अनुसार कुल रिक्तियों के मुकाबले 1:15 के अनुपात में यानी 9135 अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए योग्य घोषित नहीं किया बल्कि केवल 7358 को ही सफल घोषित किया.
इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम श्रेणी वार तैयार किया गया और योग्य आरक्षित वर्ग को अनारक्षित वर्ग में समायोजित नहीं किया गया जो आरक्षण के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा है कि किसी उम्मीदवार ने आरक्षित श्रेणी के तहत आवेदन किया हो सकता है लेकिन यदि प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम में उसे आयु और शुल्क में रियायत के अलावा किसी अन्य छूट का लाभ नहीं मिलता है तो वह न केवल अंतिम चयन के चरण में बल्कि प्रारंभिक परीक्षा/स्क्रीनिंग टेस्ट के समय भी अनारक्षित श्रेणी में प्रवेश कर सकता है, जो केवल योग्य उम्मीदवारों को खोजने के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए हो सकता है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण का अर्थ है समान व्यवहार पसंद करना और इसलिए जो भी खुली श्रेणी के उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है और उस श्रेणी के कटऑफ के भीतर आता है जैसा कि निर्धारित किया जा सकता है, वह संविधान के अनुच्छेद 14 के अर्थ के अंदर योग्य उम्मीदवारों के समूह से सीमित उद्देश्यों के लिए एक वर्ग का गठन करेगा.
प्रारंभिक परीक्षा की बनेगी दोबारा मेरिट सूची
कोर्ट ने याचिकार्ताओं के तर्कों को स्वीकार करते हुए लोक सेवा (UPPSC) को निर्देश दिया कि वह प्रारंभिक परीक्षा के योग्य उम्मीदवारों की मेरिट सूची को दोबारा तैयार करे और माइग्रेशन के सिद्धांत को लागू करे. कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया कि इस संशोधित प्रारंभिक परीक्षा परिणाम को जारी करने के बाद ही आयोग को अगले चरण यानी मुख्य परीक्षा के आयोजन की अनुमति होगी. कोर्ट ने सभी याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा है कि प्रतिवादी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग 10 अप्रैल 2024 के विज्ञापन संख्या A-3/E-1/2024 को विज्ञापित रिक्तियों के विरुद्ध चयन और नियुक्ति के प्रयोजनार्थ, अंतिम परीक्षा के अगले चरण के लिए अर्हता प्राप्त करने हेतु योग्य अभ्यर्थियों की प्रारंभिक परीक्षा परिणाम की मेरिट सूची पुनः तैयार करेगा और उसके बाद ही आयोग ऐसे संशोधित प्रारंभिक परीक्षा परिणाम के आधार पर मुख्य परीक्षा आयोजित करेगा.
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