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This Article is From Nov 18, 2022

महाराष्ट्र के एक गांव का अनोखा फैसला, बच्चों के मोबाइल फोन इस्तेमाल पर लगाई पाबंदी

किशोरों और बच्चों में लगी मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए यवतमाल जिले के बंसी गांव की पंचायत ने उठाया अभूतपूर्व कदम, मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर लगेगा जुर्माना

महाराष्ट्र के एक गांव का अनोखा फैसला, बच्चों के मोबाइल फोन इस्तेमाल पर लगाई पाबंदी
प्रतीकात्मक फोटो.
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल फोन बैन
ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मिला था मोबाइल, अब लत हो गई
बच्चों का पढ़ाई से ज़्यादा मोबाइल पर बीत रहा है समय
मुंबई:

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के यवतमाल जिले के एक गांव में एक अनोखा फैसला लिया गया है. इस गांव में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाई गई है. इसे किसी स्थान के लिए लियटा गया अपने तरह का पहला फैसला माना जा रहा है.

कोविड-19 संक्रमण के दौर में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए हर हाथ में मोबाइल फोन पकड़ाया गया. अब बच्चों को इस फोन की लत लग गई है. अब स्मार्ट फोन पर पढ़ाई की जगह ऑनलाइन गेम्स या सोशल मीडिया ने ले ली है. बच्चों की इस लत को मिटाने की मुहिम के तहत महाराष्ट्र के यवतमाल जिले का बंसी नाम का गांव अपने अनोखे फ़ैसले को लेकर चर्चा में है. इस गांव में 18 साल से कम उम्र के किशोरों और बच्चों के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल बैन कर दिया गया है. 

बंसी गांव के सरपंच गजानन ताले कहते हैं कि, ''फैसले को लागू करने में शुरुआती दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन इसको सफल बनाने के लिए माता-पिता और बच्चों, दोनों को सलाह दी जाएगी. अगर काउंसलिंग के बाद भी बच्चे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते पकड़े गए तो 200 रुपये का जुर्माना लगाएंगे. इसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई में वापस लाना है न कि मोबाइल फोन से विचलित होने देना.''

गांव के बच्चे और उनके परिजन, सभी इस फ़ैसले का स्वागत करते दिखे. एक बच्चे ने कहा, अच्छा किया है. अब ये समय मोबाइल में ना देकर पढ़ाई में दूंगा. एक ग्रामीण ने कहा- सभी ने एक मत से इस फ़ैसले को मंज़ूर किया. सही फैसला है, स्वागत करते हैं.

मौजूदा दौर में मोबाइल ने बेशक जिंदगी को सरल और आसान बनाया है, लेकिन इसके हद से ज्यादा बढ़ते इस्तेमाल का असर बच्चों की दिमागी और शारीरिक सेहत पर पड़ रहा है. ऐसे में इस गांव की पंचायत के इस फैसले के खिलाफ आवाजें न के बराबर सुनाई दे रही हैं.

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