केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को युवाओं से कहा कि वे अपनी मातृभाषा को कभी न छोड़ें. शाह बड़ौदा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी के 71वें दीक्षांत समारोह में स्नातक छात्रों को संबोधित कर रहे थे. साथ ही उन्होंने छात्रों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का अध्ययन करने के लिए भी कहा. उन्होंने हिंदी में बोलते हुए कहा, "मैं सभी डिग्री धारकों से कहना चाहूंगा कि अपने जीवन में कुछ भी करें, लेकिन अपनी मातृभाषा को कभी न छोड़ें. इस हीन भावना से बाहर आएं कि यह (किसी विशेष भाषा में महारत हासिल करना) आपको स्वीकृति देगा."
उन्होंने कहा, "भाषा अभिव्यक्ति है, पदार्थ नहीं. अभिव्यक्ति के लिए कोई भी भाषा हो सकती है. जब व्यक्ति अपनी मातृभाषा में सोचता है, अनुसंधान और विश्लेषण करता है तो उसकी क्षमता बढ़ जाती है. विश्लेषण के साथ यह उसकी तर्क करने और निर्णय लेने की क्षमता को भी बढ़ाता है."
भाजपा नेता ने कहा कि व्यक्तित्व विकास के लिए मातृभाषा सबसे अच्छा माध्यम है.
साथ ही शाह ने कहा, "हमारे देश की भाषाओं में सबसे अच्छा व्याकरण, साहित्य, कविता और इतिहास है और जब तक हम उन्हें समृद्ध नहीं करते हम अपने देश के भविष्य को बेहतर नहीं बना सकते." उन्होंने कहा कि इस कारण से पीएम नरेंद्र मोदी ने एनईपी के तहत ‘प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा को अनिवार्य बनाने‘ के बारे में सोचा.
साथ ही उन्होंने स्नातक छात्रों से एनईपी का अध्ययन करने का भी आग्रह किया. उन्होंने कहा कि यह उनके शिक्षा के उपयोग के बारे में उनकी अवधारणाओं को स्पष्ट करेगा.
शाह ने कहा, "एनईपी में महाराजा सयाजीराव के सुलभ शिक्षा के विचार, सरदार पटेल के सशक्तिकरण के विचार, अंबेडकर के ज्ञान के विचार, अरबिंदो के सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी शिक्षा के विचार और गांधी के मातृभाषा पर जोर के विचार शामिल हैं."
उन्होंने कहा कि बड़ौदा राज्य के पूर्व शासक सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने एक अनुकरणीय शासन प्रणाली स्थापित करने की कोशिश की.
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, डॉ बीआर अंबेडकर ने हमारे संविधान को तैयार किया, जो दुनिया में ‘सर्वश्रेष्ठ में से एक‘ है. साथ ही शाह ने कहा कि वह इसे पूरा कर सकते हैं क्योंकि (अपने जीवन की शुरुआत में) महाराजा गायकवाड़ ने उन्हें छात्रवृत्ति दी थी.
शाह ने कहा कि गायकवाड़ ने शिक्षा के प्रसार, न्याय की स्थापना, वंचित वर्गों के उत्थान, किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने और सामाजिक सुधारों को अंजाम देने के लिए काम किया. उन्होंने अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के लिए काम किया और ललित कला संकाय की नींव रखी.
केंद्रीय मंत्री ने दावा किया कि एनईपी देश की पहली शिक्षा नीति थी, जिसे किसी विचारधारा या राजनीतिक दल के (समर्थकों) विरोध का सामना नहीं करना पड़ा.
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