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This Article is From Jan 07, 2022

अल्पसंख्यकों की राज्य स्तर पर पहचान से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने केंद्र को आखिरी मोहलत दी

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा और समय मांगने के बाद केंद्र को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

अल्पसंख्यकों की राज्य स्तर पर पहचान से जुड़ी याचिका पर कोर्ट ने केंद्र को आखिरी मोहलत दी
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सात सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.
नयी दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को केंद्र को उस जनहित याचिका (Public Interest Litigation) पर अपना जवाब दाखिल करने का ‘आखिरी मौका' दिया, जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों (Minorities) की पहचान के लिए गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. अर्जी में कहा गया है कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और वे अल्पसंख्यकों के लिए बनी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे. सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा और समय मांगने के बाद केंद्र को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने का पीठ से अनुरोध किया. शीर्ष अदालत ने पांच समुदायों - मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी - को अल्पसंख्यक घोषित करने की केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ कई उच्च न्यायालयों से मामले स्थानांतरित करने का अनुरोध करने वाली याचिका को भी स्वीकृति दी और मामले को मुख्य याचिका के साथ संलग्न कर दिया. याचिकाकर्ता-अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने पीठ से सुनवाई की निश्चित तारीख की मांग की लेकिन शीर्ष अदालत ने मामले को सात सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया.

पीठ ने कहा, “माहौल देखिए. इसे थोड़ा स्थिर होने दीजिए. अगले हफ्ते हम सिर्फ अत्यावश्यक मामले ले रहे हैं. हम नहीं जानते अगले दो-तीन हफ्तों में स्थितियां कैसी रहने वाली हैं. चीजों को स्थिर होने दीजिए.” उपाध्याय ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2(एफ) की वैधता को भी चुनौती दी है और कहा कि यह केंद्र को बेलगाम शक्ति देती है और स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक है.

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अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि “वास्तविक” अल्पसंख्यकों को लाभ से वंचित करना और उनके लिए योजनाओं के तहत मनमाने और अनुचित संवितरण का मतलब संविधान के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया, “प्रत्यक्ष और घोषित करें कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, टीएमए पाई रुलिंग की भावना के अनुरूप अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन कर सकते हैं.”

टीएमए पाई फाउंडेशन मामले में शीर्ष अदालत ने माना कि राज्य अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए अच्छी तरह से योग्य शिक्षकों के साथ प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय हित में एक नियामक शासन शुरू करने का अधिकार रखता है.

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