
रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने कुछ बिन्दु सुनवाई की प्राथमिकता के लिए तय किए हैं. बता दें कि विदेशियों/अवैध प्रवासियों/रोहिंग्याओं से संबंधित कई मामले आज न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध थे. सुविधा के लिए इनमें से कुछ को डी-टैग किया गया था.
सुनवाई के लिए तय किए गए बिन्दु
(i) क्या रोहिंग्याओं को शरणार्थी घोषित किए जाने का अधिकार है; यदि हां, तो उन्हें किस प्रकार का संरक्षण प्राप्त है?
(ii) यदि रोहिंग्या अवैध रूप से प्रवेश कर रहे हैं तो क्या भारत सरकार और राज्य सरकारें कानून के अनुसार उन्हें निर्वासित करने के लिए बाध्य हैं?
(iii) यदि रोहिंग्याओं को अवैध घुसपैठिया माना भी गया है, तो क्या उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत में रखा जा सकता है या वे शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा होने के हकदार हैं?
और (iv) क्या रोहिंग्याओं को, जो हिरासत में नहीं हैं लेकिन शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, बुनियादी सुविधाएं जैसे स्वच्छता, पेयजल, शिक्षा आदि प्रदान की गई हैं (अनुच्छेद 21 के अनुरूप)?
बता दें कि विदेशियों/अवैध प्रवासियों/रोहिंग्याओं से संबंधित कई मामले आज न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध थे. सुविधा के लिए इनमें से कुछ को डी-टैग किया गया था. मामलों को अंततः 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया. समूह 1 (रोहिंग्याओं से संबंधित), समूह 2 (गैर-रोहिंग्याओं से संबंधित) और समूह 3 (केवल एक मामला जिसमें एक पत्नी ने अपने हिरासत में लिए गए पति के संबंध में राहत मांगी थी, लेकिन कार्यवाही का दायरा अंततः न्यायमूर्ति अभय ओका के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा व्यापक बना दिया गया था. न्यायालय ने संकेत दिया कि वह समूह 1 के मामलों से शुरू करते हुए, लगातार तीन तारीखों पर इन मामलों की सुनवाई करेगा. समूह-1 के मामलों में वह सबसे पहले इस बात पर विचार करेगा कि रोहिंग्या शरणार्थी हैं या अवैध अप्रवासी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बाकी मामले महत्वपूर्ण हैं. समूह 2 के मामलों में उठने वाले मुद्दों का अलग से निपटारा किया जाएगा.
गौरतलब है कि 8 मई को न्यायालय को सूचित किया गया था कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) कार्ड धारक कुछ शरणार्थियों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, को पुलिस अधिकारियों ने एक दिन पहले गिरफ्तार कर लिया था और मामला सूचीबद्ध होने के बावजूद उन्हें निर्वासित कर दिया था. याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने मीडिया रिपोर्टों के आधार पर यह आरोप लगाया, जिनसे ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ रोहिंग्याओं को उस स्थान से ले जाया गया था जहां उन्हें दस्तावेजों के सत्यापन के लिए हिरासत में लिया गया था, लेकिन संभवतः उन्हें म्यांमार निर्वासित कर दिया गया था. हालांकि जब केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल, 2021 के एक आदेश की ओर ध्यान आकर्षित किया तो न्यायालय ने कोई भी रोक लगाने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह आदेश सरकार को केवल कानून के अनुसार ही निर्वासन की कार्रवाई करने के लिए बाध्य करता है.
मामले को 31 जुलाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था कि हम निर्णायक सुनवाई करेंगे. बेहतर होगा कि किसी भी प्रकार के अंतरिम आदेश पारित करने के बजाय, हम इन मामलों को लें और किसी भी तरह से निर्णय लें कि - यदि उन्हें यहां रहने का अधिकार है तो उसे स्वीकार किया जाना चाहिए. यदि उन्हें यहां रहने का अधिकार नहीं है तो उन्हें प्रक्रिया का पालन करना होगा और कानून के अनुसार निर्वासित किया जाएगा. जस्टिस दत्ता ने अपनी ओर से कहा कि वे (रोहिंग्या) सभी विदेशी हैं और यदि वे विदेशी अधिनियम के अंतर्गत आते हैं तो उनके साथ विदेशी अधिनियम के अनुसार ही व्यवहार किया जाएगा. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि असम और पश्चिम बंगाल में निरुद्ध कुछ विदेशियों से संबंधित कुछ मामले हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि इन सभी मामलों को एक साथ क्यों जोड़ा गया?
याचिकाकर्ताओं की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि इनमें कुछ विषय एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. मूल मुद्दा यह है कि रोहिंग्याओं को शरणार्थी माना जाए या अवैध प्रवासी. जस्टिस दत्ता ने उस मामले के बारे में पूछा जिसमें निर्वाचन आयोग पक्षकार है. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि ये मामले देश में अवैध प्रवासियों के साथ कैसा सलूक किया जाए, इससे संबंधित है. एक वर्ग रोहिंग्याओं से जुड़ा है, जिसे पहले लिया जा सकता है. पीठ ने सुझाव दिया कि रोहिंग्याओं से संबंधित मामलों को अन्य मामलों से अलग किया जाए.
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