सुप्रीम कोर्ट ने POCSO मामले में सजायाफ्ता व्यक्ति की दोषसिद्धि को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि उसने पीड़िता से शादी की ली थी और उनके दो बच्चे भी हैं. पीठ ने कहा कि यह अदालत जमीनी हकीकत से आंखें नहीं मूंद सकती और दोषी व शिकायतकर्ता के सुखी पारिवारिक जीवन में खलल नहीं डाल सकती. पीठ ने माना कि उनके रिवाज के मुताबिक मामा से भांजी की शादी हो सकती है.सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हमें तमिलनाडु में एक लड़की का मामा से शादी करने के रिवाज के बारे में बताया गया है जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने तमिलनाडु सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया कि ये शादी केवल सजा से बचने के उद्देश्य से की गई है.
दरअसल, निचली अदालत ने आरोपी, जो पीड़िता का मामा है, को POCSO की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई थी.मद्रास हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट में दोषी ने कहा कि उसके खिलाफ आरोप यह था कि उसने पीड़िता के साथ शादी करने के वादे पर शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन उसने पीड़ितासे शादी की है और उनके दो बच्चे हैं. अदालत ने महिला के बयान पर भी गौर किया जिसमें उसने कहा था कि उनके दो बच्चे हैं और पति उनकी देखभाल कर रहा है.वह एक सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है
उधर, राज्य सरकार ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि अपराध के दिन पीड़िता की आयु 14 साल थी और उसने पहले बच्चे को 15 वर्ष की उम्र में जन्म दिया. इसी तरह दूसरा बच्चा तब पैदा हुआ जब वह 17 साल की थी. सरकार का कहना था कि दोनों की शादी वैध नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा रद्द करने योग्य है. हालांकि SC ने स्पष्ट किया कि यदि वह महिला की उचित देखभाल नहीं करता है तो महिला या राज्य सरकार की ओर से इस आदेश में संशोधन की गुहार लगाई जा सकती है.
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