विज्ञापन
This Article is From Apr 19, 2023

"समलैंगिक विवाह को एलीट कहना गलत, सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं": सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक विवाह का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है. केंद्र सरकार ने SC से राज्यों व UT को पक्षकार बनाने की मांग की है.

"समलैंगिक विवाह को एलीट कहना गलत, सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं": सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है. सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी. CJI चंद्रचूड़ ने इस मुद्दे को केंद्र सरकार की तरफ से शहरी अभिजात्य अवधारणा बताने की दलीलों पर सवाल खड़ा किया है.  समलैंगिकता के अपराध से बाहर होने के बाद ये अधिक प्रचलित हो गया है. लेकिन यह अधिक शहरी लग सकता है क्योंकि अधिक शहरी लोग खुलकर बाहर आ रहे हैं.  लेकिन यह साबित करने के लिए सरकार के पास कोई डेटा नहीं है कि यह शहरी अभिजात्य अवधारणा है.

अदालत ने कहा कि सिद्धांत वास्तव में बहुत सरल है कि राज्य किसी व्यक्ति के खिलाफ "विशेषता" के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता.जिसके लिए व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है. जब आप कहते हैं कि यह एक सहज विशेषता है, तो यह इस विवाद का जवाब भी है कि यह शहरी लोगों के लिए बहुत अभिजात्य है और इसमें एक वर्ग के लिए पूर्वाग्रह है. जब यह जन्मजात होता है तो उस वर्ग के लिए पूर्वाग्रह नहीं हो सकता. 

"पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं"

मंगलवार को भी CJI ने कहा था कि 2018 के नवतेज जौहर के फैसले के बीच, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था और अब हमारे समाज को अधिक स्वीकृति मिली है. इसे हमारे विश्वविद्यालयों में स्वीकृति मिली है. हमारे विश्वविद्यालयों में केवल शहरी बच्चे ही नहीं हैं, वे सभी क्षेत्रों से हैं.  हमारे समाज ने समलैंगिक संबंधों को स्वीकार कर लिया है. पिछले पांच सालों में चीजें बदली हैं.  एक स्वीकृति है जो शामिल है. हम इसके प्रति सचेत हैं.

राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए : केंद्र सरकार

सेम सेक्स मैरिज मामले में संविधान पीठ दूसरे दिन की सुनवाई कर रही है. केंद्र सरकार ने राज्यों की भागीदारी की बात रखी. SG तुषार मेहता ने कहा कि राज्यों से परामर्श शुरू किया है. राज्यों को भी पार्टी बनाकर नोटिस किया जाए. ये अच्छा है कि राज्यों को भी मामले की जानकारी है. याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध किया और कहा कि ये पत्र कल लिखा गया है, लेकिन अदालत ने पांच महीने पहले नोटिस जारी किया था. ये गैरजरूरी है.

अदालत आदेश दे: मुकुल रोहतगी 

रोहतगी ने कहा कि अगर अदालत आदेश देगी तो समाज इसे मानेगा. अदालत को इस मामले में आदेश जारी करना चाहिए. हम इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर भरोसा करते हैं. संसद कानून से इसका पालन करे या न करे, लेकिन इस अदालत का आदेश हमें बराबर मानेगा. अदालत हमें समान मानने के लिए समाज पर दबाव डाले. ऐसा ही संविधान भी कहता है. इस अदालत को नैतिक अधिकार और जनता का विश्वास प्राप्त है.

ये भी पढ़ें-

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com