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This Article is From Oct 03, 2023

M3M कथित मनी लांड्रिंग केस में ED को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- ईमानदार रहें, प्रतिशोधी न बनें

सुप्रीम कोर्ट ने M3M समूह के दो निदेशकों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, कहा- ED कामकाज में पारदर्शी और निष्पक्ष रहे, आपको देश की आर्थिक सुरक्षा बनाए रखनी है

M3M कथित मनी लांड्रिंग केस में ED को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- ईमानदार रहें, प्रतिशोधी न बनें
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय से कहा- निष्पक्षता के कड़े मानकों को बनाए रखें और प्रतिशोधी ना बनें.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एम3एम (M3M) समूह के कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) पर सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, ED अपने कामकाज में पारदर्शी और निष्पक्ष रहे, प्रतिशोधी ना बने. आपको देश की आर्थिक सुरक्षा बनाए रखनी है. सुप्रीम कोर्ट ने M3M समूह के दो निदेशकों को तत्काल रिहा करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है.  

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल रियल एस्टेट समूह M3M के गिरफ्तार निदेशकों को तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं बल्कि ED पर बड़े सवाल भी उठाए हैं.  सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ED अपने कामकाज में ईमानदारी बरते, निष्पक्षता के कड़े मानकों को बनाए रखे और प्रतिशोधी ना बने.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर ED किसी को गिरफ्तार करती है तो उसे लिखित में गिरफ्तारी के आधार की कॉपी आरोपी को देनी होगी. कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट समूह एम3एम के गिरफ्तार निदेशकों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने ये फैसला सुनाया है.

एम3एम के दो डायरेक्टरों को ईडी ने जून में किया था गिरफ्तार

दो निदेशकों पंकज और बसंत बंसल को कथित मनी लॉन्ड्रिंग में पूछताछ के लिए 14 जून को बुलाया गया था और दोनों को उसी दिन ईडी द्वारा दर्ज एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था. बंसल ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 19 के तहत अपनी गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए चुनौती दी और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया, जिसने उनकी गिरफ्तारी को रद्द करने से इनकार कर दिया था.

गिरफ्तारी के आधारों की लिखित प्रति नहीं दी

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. दोनों की तत्काल रिहाई का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्य दिलचस्प हैं क्योंकि ED अधिकारी द्वारा आरोपियों को गिरफ्तारी के आधारों की लिखित प्रति दिए बिना मौखिक रूप से पढ़ा गया, जिस पर गंभीर आपत्ति है. यह ED के बारे में बहुत कुछ कहता है और उनकी कार्यशैली पर खराब असर डालता है, खासकर तब जब एजेंसी पर देश की वित्तीय सुरक्षा को संरक्षित करने की जिम्मेदारी है.

पीठ ने कहा कि ED को पारदर्शी होना चाहिए. बोर्ड से ऊपर होना चाहिए, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा के प्राचीन मानकों के अनुरूप होना चाहिए और अपने रुख में प्रतिशोधी नहीं होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश के लिए मानदंड निर्धारित किया

अदालत ने आरोपियों की गिरफ्तारी के आधार की आपूर्ति के लिए ED द्वारा अपनाई गई किसी सुसंगत या समान प्रथा की कमी पर भी गौर किया. पूरे देश के लिए मानदंड निर्धारित करते हुए पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी के आधार की कॉपी प्रदान करना जरूरी होगा. अदालत ने माना कि ऐसा अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है क्योंकि यह आरोपी को गिरफ्तारी के लिखित आधार पर कानूनी सलाह लेने में सक्षम बनाता है. 

ED का गुप्त आचरण संतोषजनक नहीं

कोर्ट ने बंसल की गिरफ्तारी को रद्द कर दिया और कहा कि ED के जांच अधिकारी ने केवल गिरफ्तारी के आधार को पढ़ा. यह संविधान  और पीएमएलए की धारा 19(1) के आदेश को पूरा नहीं करता है. आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई में ED का गुप्त आचरण संतोषजनक नहीं है क्योंकि इसमें मनमानी की बू आती है.

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