सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया है. अपने 5 मई 2021 का आरक्षण रद्द करने का फैसला बरकरार रखा है. इस मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी गईं हैं. पांच जजों के संविधान पीठ ने चेंबर में विचार कर यह फैसला सुनाया. पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई त्रुटि नहीं मिली है, जिससे मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत हो. पांच जजों के संविधान पीठ ने 11 अप्रैल को चेंबर मे विचार किया है. फैसला गुरुवार को अपलोड किया गया है.
'वैध आधार नहीं'
महाराष्ट्र सरकार और याचिकाकर्ता विनोद नारायण पाटिल ने इस बाबत याचिका दाखिल की थी. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं. मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है. मराठा आरक्षण देते समय 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा पार करने के लिए कोई वैध आधार नहीं है. आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर यह आरक्षण दिया गया था.
'दाखिले बने रहेंगे'
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे. पहले की सभी नियुक्तियों में भी छेड़छाड नहीं की जाएगी. इन पर फैसले का असर नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया.
कई सवालों पर हुआ मंथन
बता दें, 26 मार्च 2021 को मराठा आरक्षण के खिलाफ दाखिल याचिका पर 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह इस बात का परीक्षण करेगा कि राज्य 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण कर सकते हैं या नहीं. क्या 1992 में दिए गए इंदिरा साहनी फैसले को दोबारा देखने की जरूरत है या नहीं? क्या इंदिरा साहनी जजमेंट को बड़ी बेंच में भेजने जाने की जरूरत है या नहीं? इंदिरा साहनी जजमेंट में आरक्षण के लिए 50 फीसदी की सीमा तय की गई है.
सभी राज्यों से मांगा था जवाब
9 दिसंबर 2020 को महाराष्ट्र में नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगाए जाने के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव से मना कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा को 12 फीसदी से लेकर 13 फीसदी तक रिजर्वेशन देने की बात की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तमाम राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा कि क्या विधायिका इस बात को लेकर सक्षम है कि वह आरक्षण देने के लिए किसी जाति विशेष को सामााजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित कर सके.
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