- दिल्ली दंगा मामले की सुनवाई SC में चल रही है, कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंधवी बचाव पक्ष की तरफ से दलील रख रहे हैं
- कपिल सिब्बल ने उमर खालिद की गिरफ्तारी और पुलिस की जांच पर कई सवाल खड़े किए
- सिंघवी ने गुलफिशा फातिमा पर लगाए गए UAPA आरोपों को गैर न्यायसंगत बताते हुए अन्य आरोपियों के मामलों से तुलना की
दिल्ली दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है. मंगलवार को अदालत ने कई अहम सवाल उठाए थे. अदालत ने पूछा था कि क्या इन भाषणों को उकसावे या UAPA के तहत आतंकी कृत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है? वहीं, बचाव पक्ष ने जोर देकर कहा कि केवल भाषणों के आधार पर आतंकवाद का आरोप नहीं लगाया जा सकता. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने उमर खालिद और गुलफिशा फातिमा की ओर से दलीलें दीं, जबकि सिद्धार्थ दवे ने शरजील इमाम का पक्ष रखा. सुनवाई में यह भी सामने आया कि जांच में देरी और चार्जशीट की रणनीति ने ट्रायल को लंबा खींचा है. अदालत ने संकेत दिए कि भाषणों की प्रकृति और उनके प्रभाव को लेकर गहन पड़ताल होगी. यह मामला न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आतंकवाद कानून की व्याख्या के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण हो गया है.
उमर खालिद की दलीलें और कपिल सिब्बल का तर्क
कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि उमर खालिद पिछले 5 साल 3 महीने से जेल में हैं. उनकी गिरफ्तारी 13 सितंबर 2020 को हुई थी. आरोप सिर्फ इतना है कि उन्होंने 17 फरवरी को महाराष्ट्र में एक भाषण दिया था. इसके अलावा, उन्हें एक WhatsApp ग्रुप में जोड़ा गया था, जिसमें उनका कोई संदेश नहीं है. सिब्बल ने कहा कि अगर जमानत नहीं मिली तो खालिद बिना ट्रायल के 8 साल जेल में रहेंगे. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ट्रायल में देरी इसलिए हुई क्योंकि दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर जांच पूरी होने की घोषणा नहीं की. चार्ज पर बहस शुरू करने की कोशिश बचाव पक्ष ने की, लेकिन पुलिस ने चार सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल कर समय बढ़ाया.

सिब्बल ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार करते समय देरी को आधार नहीं माना. उन्होंने उमर खालिद के भाषण का वीडियो दिखाते हुए कहा कि यह भाषण महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित था, जिसमें हिंसा का जवाब हिंसा से न देने की बात कही गई थी. ऐसे भाषण पर UAPA कैसे लगाया जा सकता है?
गुलफिशा फातिमा और सिंघवी की दलील
अभिषेक मनु सिंघवी ने गुलफिशा फातिमा के मामले में कहा कि नताशा नरवाल और देवांगना कलिता पर भी गंभीर आरोप थे, लेकिन उन्हें एक साल में जमानत मिल गई. गुलफिशा का नाम सिर्फ दो बार ASG राजू की दलीलों में आया है. सिंघवी ने कहा कि महिला प्रदर्शनकारियों को फंडिंग का आरोप भी गुलफिशा पर नहीं है. दूसरी सीक्रेट मीटिंग में भी उसकी भूमिका नताशा और देवांगना से कम थी. फिर भी उस पर UAPA लगाया गया है, जो अनुचित है.
शरजील इमाम पर सुप्रीम कोर्ट के सवाल
सुनवाई में जस्टिस अरविंद कुमार ने पूछा कि क्या शरजील इमाम के भाषणों को उकसावे या UAPA के तहत आतंकी कृत्य नहीं माना जाए? पुलिस ने तर्क दिया कि “हमारे पास सिर्फ़ 4 हफ़्ते हैं” जैसे बयान दंगों की जमीन तैयार करने का हिस्सा थे. बचाव पक्ष के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि सिर्फ भाषण देने से UAPA की धारा 15 के तहत आतंकी कृत्य नहीं बनता. उन्होंने कहा कि कोई ठोस कार्रवाई, मीटिंग या हिंसक कदम दिखाना होगा.

जस्टिस कुमार ने इमाम के यूपी वाले भाषण का ज़िक्र किया, जिसमें ‘असम को काटने' जैसी बात कही गई थी. दवे ने बताया कि इन भाषणों पर पहले ही अलग-अलग FIR दर्ज हैं और उन मामलों में जमानत मिल चुकी है. उन्होंने कहा कि मौजूदा FIR में भाषण के अलावा कोई साजिश या हिंसक कार्रवाई नहीं दिखाई गई.
बुधवार को भी जारी रहेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजरिया शामिल हैं, उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई जारी रखेगी. अदालत के सवालों से साफ है कि भाषणों की प्रकृति, UAPA की व्याख्या और ट्रायल में देरी इस केस के निर्णायक पहलू होंगे.
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