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This Article is From May 22, 2024

14 साल की बच्ची का अश्लील वीडियो वायरल करने वाले छात्र को जमानत नहीं, जानें कैसे सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी नई लकीर

उत्तराखंड मामले में अदालत के जमानत न देने के सख्त फैसले के बाद पुणे के उस केस (Pune Road Accident) की चर्चा तेज हो गई है, जिसमें पोर्शे कार से दो लोगों की जान लेने वाले नाबालिग आरोपी को महज 300 शब्दों का निबंध लिखवाकर और अन्य शर्तों के साथ जुबेनाइल कोर्ट से जमानत मिल गई. हालांकि पुलिस आरोपी के लिए सख्त सजा की मांग कर रही है.

14 साल की बच्ची का अश्लील वीडियो वायरल करने वाले छात्र को जमानत नहीं, जानें कैसे सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी नई लकीर
उत्तराखंड के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग को नहीं दी जमानत.
नई दिल्ली:

उत्तराखंड के एक स्कूल में 14 साल की क्लासमेट का अश्लील वीडियो सर्कुलेट करने वाले छात्र को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जमानत देने से इनकार कर दिया. इस वीडियो से हुई बदमानी की वजह से बच्ची ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. टीओआई की खबर के मुताबिक, आरोपी को जमानत न देने वाले अदालत के इस फैसले से एक नजीर पेश हुई है कि कानून तोड़ने वाले बच्चों को अपराध गंभीर होने के बाद भी जमनात मिलनी चाहिए, ये अपवाद है. उत्तराखंड मामले में अदालत के फैसले के बाद पुणे के उस केस (Pune Road Accident) की चर्चा तेज हो गई है, जिसमें पोर्शे कार से दो लोगों की जान लेने वाले नाबालिग आरोपी को महज 300 शब्दों का निबंध लिखवाकर और अन्य शर्तों के साथ जुबेनाइल कोर्ट से जमानत मिल गई. हालांकि इस मामले में पुलिस आरोपी के लिए सख्त सजा की मांग कर रही है. उत्तराखंड का मामला पुणे केस में भी एक नजीर साबित हो सकता है. 

अश्लील वीडियो बनाने वाले बच्चे को नहीं मिली बेल

उत्तराखंड के स्कूल में हुए अश्लील वीडियो मामले में इस साल 10 जनवरी को, जुबेनाइल कोर्ट, हरिद्वार ने 'कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे' की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. बच्चे पर आईपीसी की धारा 305 और 509 और पोक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत मामला दर्ज किया गया था. जुबेनाइल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट की तरफ से बरकरार रखे जाने के बाद आरोपी लड़ने ने अपनी मां के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

HC के जमानत न देने के फैसले को SC ने रखा बरकरार

सीनियर वकील लोक पाल सिंह ने अदालत में दलील दी कि बच्चे के माता-पिता उनकी देखभाल करने के लिए तैयार हैं, उसे बाल सुधार गृह में नहीं रखा जाना चाहिए और उसकी हिरासत उसकी मां को दी जानी चाहिए. लेकिन न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की शीर्ष अदालत की बेंच ने सोमवार को हाई कोर्ट के फैसले की जांच करते हुए लड़के को जमानत देने से इनकार करने के फैसले को सही पाया.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आरोपी लड़के की अपील को खारिज करते हुए कहा, "रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री को ध्यान से देखने के बाद, हम हाई कोर्ट की तरफ से पारित आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं."

 बता दें कि हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार करते हुए लड़के को 'गैर अनुशासित बच्चा' कहा था.

क्या है अश्लील वीडियो मामला?

बच्ची के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि लड़के ने उनके अश्लील वीडियो शूट कर क्लिप को छात्रों के बीच सर्कुलेट किया. बदनामी के डर से उनकी बेटी ने जान दे दी. बता दें कि अश्लील वीडियो सर्कुलेट होने के बाद बच्ची पिछले साल 22 अक्टूबर को अपने घर से लापता हो गई थी और बाद में उसका शव बरामद किया गया था. 

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?

उत्तराखंड हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी ने 1 अप्रैल को आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए एक तर्कसंगत आदेश दिया था. उन्होंने कहा, "कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के लिए, हर अपराध जमानती है और वह सीआईएल जमानत का हकदार है, भले ही अपराध को जमानती या गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत किया गया हो."

हालांकि, अदालत ने आगे कहा, "अगर यह मानने के लिए उचित आधार है कि रिहाई से 'कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे' को किसी ज्ञात अपराधी की संगति में लाने, उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने की संभावना है, या फिर उसकी रिहाई से न्याय के उद्देश्य विफल हो जाएंगे, तो उसकी जमानत से इनकार किया जा सकता है."

हाई कोर्ट ने किस आधार पर खारिज की जमानत?

इस मामले में आरोपी लड़के की सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट कंसीडर करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वह बुरी संगत में रहने वाला एक अनुशासनहीन बच्चा है. उसे सख्त अनुशासन की जरूरत है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रिहा होने पर उसके साथ और भी अप्रिय घटनाएं हो सकती हैं.

न्यायाधीश मैथानी ने आरोपी लड़के की जमानत खारिज करते हुए कहा, "अदालत ने सामाजिक जांच रिपोर्ट, मेडिकल जांच रिपोर्ट, स्कूल की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद, माना ​​​है कि बच्चे को जमानत नहीं दिए जाना ही उसके हित में है. अगर उसको जमानत पर रिहा किया जाता है, तो यह निश्चित रूप से न्याय के उद्देश्यों को विफल कर देगा."

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