
- सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर में राजस्थान मंडपम और एकता मॉल परियोजनाओं के खिलाफ जनहित याचिका को खारिज किया है
- याचिका में विवादित भूमि को वन भूमि घोषित करने और परियोजनाओं को रोकने की मांग की गई थी
- राज्य सरकार ने बताया कि भूमि 1979 में औद्योगिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की गई थी
सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर में सरकार की दो प्रमुख परियोजनाओं - राजस्थान मंडपम और एकता मॉल के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने एक आवेदन के रूप में दाखिल जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है. इसमें जयपुर स्थित राजस्थान मंडपम और एकता मॉल परियोजना को रोकने तथा उक्त भूमि को वन भूमि घोषित करने की मांग की गई थी.
यह मामला IA No. 231707 of 2025 in W.P. (C) No. 202 of 1995 से संबंधित था, जिसे कुछ आवेदकों द्वारा इस आधार पर दायर किया गया था कि जयपुर के तहसील सांगानेर स्थित डोल का बाड़ क्षेत्र में परियोजना का स्थल वन भूमि है, और इसे वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत संरक्षण दिया जाना चाहिए.
राजस्थान राज्य सरकार और रीको (RIICO) ने इस आवेदन का विरोध करते हुए अदालत को अवगत कराया कि संबंधित भूमि वर्ष 1979 में औद्योगिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहित की गई थी, जिसकी वैधता की पुष्टि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने की है, और यह भूमि 1991, 2011 और 2025 के मास्टर प्लान में स्पष्ट रूप से औद्योगिक क्षेत्र के रूप में अंकित है.
राजस्थान राज्य और रीको की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने प्रस्तुत किया कि उसी समूह के लोगों ने परियोजना को रोकने के लिए बार-बार याचिकाएं दाखिल की हैं. उन्होंने बताया कि इसी प्रकार की याचिकाएं पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और राजस्थान उच्च न्यायालय में भी दायर की गई थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया था और उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं पर तथ्यों को छिपाने के लिए ₹1 लाख का जुर्माना भी लगाया था.
राज्य सरकार ने यह भी बताया कि परियोजना स्थल पर कोई पेड़ नहीं काटे गए हैं, केवल 56 पेड़ों को अनुमति प्राप्त कर प्रत्यारोपित किया गया है, और उनकी संख्या से दस गुना अधिक नए पौधे प्रतिपूरक वृक्षारोपण के रूप में लगाए जा चुके हैं.
एकता मॉल, जो प्रधानमंत्री की “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट” पहल का हिस्सा है, तथा राजस्थान मंडपम, ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर, आईटी टॉवर, फाइव स्टार और फोर स्टार होटल्स तथा रिहायशी टावर्स — ये सभी परियोजनाएं राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 95 एकड़ रीको भूमि पर अनुमोदित की गई हैं. सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि विवादित भूमि वन भूमि नहीं है और प्रस्तुत आवेदन में कोई औचित्य नहीं पाया गया है.
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