वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता (Waqf Law Hearing In Supreme Court) को लेकर बुधवार को दूसरे दिन भी सुनवाई चल रही है. केंद्र सरकार की तरफ से इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अपनी दलीलें रख रहे हैं. सरकार की तरफ से SG मेहता ने कहा कि हमने 1923 से चली आ रही बुराई को खत्म की. हर हितधारक की बात सुनी गई. मेरा कहना है कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकते. हमें 96 लाख प्रतिनिधित्व मिले. जेपीसी की 36 बैठकें हुईं. मेहता ने जेपीसी की रिपोर्ट पढी.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की अहम बातें
- SG तुषार मेहता- कई राज्य सरकारों से परामर्श किया गया वक्फ बोर्ड से परामर्श किया गया. जेपीसी ने हर खंड में दर्ज किया है कि वक्फ बोर्ड किस खंड से सहमत है या नहीं है. विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई-कुछ सुझाव स्वीकार किए गए या स्वीकार नहीं किए गए. जब धाराओं में संशोधन के लिए सुझाव दिए गए, तो विधेयक को पेश किया गया और अभूतपूर्व बहुमत से पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ, अपने स्वभाव से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है.
- SG तुषार मेहता- 1923 में कहा गया था कि वक्फ को वक्फ द्वारा बनाया जा सकता है 1955 में भी यही कहा गया था फिर नवंबर 2013 में चुनावों से ठीक पहले इसमें मुस्लिम को शामिल नहीं किया गया, लेकिन कोई भी व्यक्ति वक्फ बना सकता है, उसे मुस्लिम होना चाहिए. उसे 5 साल तक इस्लाम का पालन करना होगा और वह केवल अपनी संपत्ति पर ही वक्फ बना सकता है. किसी और की संपत्ति पर नहीं, ताकि निजी या सरकारी संपत्ति पर होने वाले खतरे को खत्म किया जा सके.
- CJI बीआर गवई- उनका तर्क है कि इस मामले में सरकार अपना दावा खुद तय करेगी
- SG तुषार मेहता- राजस्व अधिकारी तय करते हैं कि यह सरकारी ज़मीन है या नहीं.लेकिन यह सिर्फ़ राजस्व रिकॉर्ड के लिए है. वे टाइटल तय नहीं कर सकते. यह फाइनल नहीं है. अगर आपने खुद को वक्फ बाय यूजर के तौर पर रजिस्टर किया है तो यह दो अपवादों के साथ कह रहा है. विवाद का मतलब होगा कि किसी निजी पक्ष ने मुकदमा दायर किया हो कि यह मेरी संपत्ति है जिसे वक्फ घोषित किया गया है. अगर वक्फ संपत्ति के संबंध में निजी पक्ष के बीच कोई विवाद है तो यह सक्षम अदालत के फैसले द्वारा शासित होगा. हम वक्फ बाय यूजर से निपट रहे हैं. शुरुआती बिल में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला लेंगे. आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में खुद जज होंगे. इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए.
- CJI बीआर गवई- इसका मतलब है कि कलेक्टर सिर्फ पेपर इंट्री होंगे.
- SG तुषार मेहता- हां हमने हलफनामे में भी कहा है कि अगर कोई सरकारी जमीन है तो सरकार मुकदमा दाखिल करेगी.
- CJI बीआर गवई- इसका मतलब है कि कलेक्टर सिर्फ पेपर इंट्री होंगे.
- SG तुषार मेहता- हां हमने हलफनामे में भी कहा है कि अगर कोई सरकारी जमीन है तो सरकार मुकदमा दाखिल करेगी. 3सी प्रावधान के तहत न्याय तक पहुँच से इनकार नहीं किया गया है. यह प्रभावित पक्ष के लिए “किसी भी स्तर पर” 83 के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल से संपर्क करने के लिए खुला होगा. जो अंतिम टाइटल बनाएगा या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा में अपील होगी. राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करना केवल यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारों के रिकॉर्ड को सही तरीके से बनाए रखा गया है.
- सुप्रीम कोर्ट- आपको पता होना चाहिए कि क्या हो रहा है, बोलने की आज़ादी का अधिकार है. लेकिन ड्यूटी कहां है. ऐसा लगता है कि पूरा देश पिछले 75 सालों से सिर्फ़ अधिकार बांट रहा है, कोई डयूटी की बात नहीं कर रहा. अली खान को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत देते हुए पूछा कि क्या ये सस्ती लोकप्रियता पाने का समय है?
- CJI बीआर गवई- जो तस्वीर पेश की जा रही है, एक बार कलेक्टर ने पूरी कार्यवाही शुरू कर दी, तो यह वक्फ नहीं रह जाता और एक बार जांच पूरी हो जाने के बाद, संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया जाएगा.
- SG तुषार मेहता- वैधानिक प्रावधान हैं, अगर टाइटल निर्धारित नहीं होता है, तो हमें मुकदमा करना होगा.
- जस्टिस मसीह- आपके अनुसार जब तक सहारा नहीं लिया जाता, तब तक कब्ज़ा जारी रहता है?
- SG तुषार मेहता- हां, उनके दिखाने का इंतज़ार कर रहा था.
- CJI बीआर गवई- क्या आप इस अदालत में इसकी उम्मीद करते हैं?
- SG तुषार मेहता- तीन हाईकोर्ट से आए थे, इसलिए
- CJI बीआर गवई- यहां भी चुनिंदा रीडिंग हैं.
- CJI बीआर गवई- तो जब तक धारा 83 में दी गई ट्रिब्यूनल कार्यवाही तार्किक अंत तक नहीं पहुंच जाती, तब तक बेदखली नहीं होगी?
- SG तुषार मेहता- हां, कोई भी मुतवली व्यक्ति या 3सी के तहत आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति अधिनियम में दिए समय के भीतर आवेदन कर सकता है.॥ कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो यह देखे कि वक्फ घोषित की गई संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना जा रहा है या नहीं.
- CJI बीआर गवई- क्या 1923 के कानून में पंजीकरण का भी प्रावधान था? सिब्बल ने तर्क दिया था कि पंजीकरण 1954 से हुआ था, 1923 से नहीं.
- SG तुषार मेहता- मैं सीधे धारा से पढ़ रहा हूं. एक अभियान चल रहा है कि 100 साल पुरानी संपत्ति हम कागज़ कहां से लाएंगे. मुझे बताइए कि कागज़ कभी ज़रूरी नहीं थे. यह एक कहानी बनाई जा रही है. अगर आप कहते हैं कि वक्फ 100 साल से पहले बना था तो आप सिर्फ़ पिछले 5 सालों के ही दस्तावेज़ पेश करेंगे. यह महज़ औपचारिकता नहीं थी. अधिनियम के साथ एक पवित्रता जुड़ी हुई थी. 1923 अधिनियम कहता है कि अगर आपके पास दस्तावेज़ हैं तो आप पेश करें, अन्यथा आप मूल के बारे में जो भी जानते हैं, पेश करें
ऐसा इसलिए है क्योंकि वक्फ का मतलब केवल संपत्ति का समर्पण है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम का विरोध करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन बताया है. उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी है. केंद्र सरकार ने कोर्ट से अपील की है कि सुनवाई को तीन मुख्य मुद्दों तक सीमित रखा जाए, जबकि याचिकाकर्ता पूरी समीक्षा की मांग कर रहे हैं. अदालत में किन मुद्दों पर दलीलें दी जा रही हैं और कौन जज सुनवाई कर रहे हैं, जानिए.
पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ
वक्फ कानून पर कपिल सिब्बल की दलीलें पढ़िए
वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की 10 प्रमुख बातें
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की दलीलें पढ़िए
किन 3 मुद्दों पर चल रहीं दलीलें
- अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार
- राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए.
- वक्फ कानून के उस प्रावधान पर, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
सुनवाई कर रही बेंच में कौन कौन?
- प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई
- न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह
वकील कौन-कौन?
- कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी- कानून की वैधता को चुनौती देने वालों की ओर से पक्ष रख रहे हैं.
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
‘मजबूत और स्पष्ट' मामले की जरूरत
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कानून के पक्ष में 'संवैधानिकता की अवधारणा' को रेखांकित करते हुए कहा कि वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत के लिए एक ‘मजबूत और स्पष्ट' मामले की जरूरत है.
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तीन मुद्दों पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें ‘अदालतों द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार शामिल है.
कपिल सिब्बल की दलील पर CJI ने क्या कहा
मामले की सुनवाई के दौरान जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कानून के खिलाफ अपना पक्ष रखना शुरू किया तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रत्येक कानून के पक्ष में ‘संवैधानिकता की अवधारणा' होती है अंतरिम राहत के लिए आपको बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला बनाना होगा, अन्यथा संवैधानिकता की अवधारणा बनी रहेगी.
सिब्बल ने इस कानून को ‘ऐतिहासिक कानूनी और संवैधानिक सिद्धांतों से पूर्णतः परे' तथा ‘गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करने' का साधन बताया.
तुषार मेहता ने अदालत से क्या कहा?
केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया था कि याचिकाओं पर सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित रखी जाए. इनमें से एक मुद्दा यह है कि न्यायालय द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार है.
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