सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को लेकर सुनवाई जारी है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है. केंद्र सरकार ने अदालत से अनुरोध किया है कि सुनवाई को तीन मुख्य मुद्दों तक सीमित रखा जाए, जबकि याचिकाकर्ता पूरी समीक्षा की मांग कर रहे हैं.
वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता पर सवाल: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून बिना न्यायिक प्रक्रिया के निजी संपत्तियों को वक्फ घोषित करने की अनुमति देता है, जिससे यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 300A (स्वामित्व अधिकार) का उल्लंघन करता है.
कपिल सिब्बल ने धार्मिक अधिकारों पर अतिक्रमण का लगाया आरोप: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति संबंधी अधिकारों का अतिक्रमण करता है. उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियां धर्म से जुड़ी होती हैं और इनपर राज्य का नियंत्रण अनुचित और असंवैधानिक है, जो धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है.
कोर्ट ने कहा कि ठोस आधार जरूरी: मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने स्पष्ट कहा कि अदालत किसी भी कानून में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगी जब तक कि याचिकाकर्ता कोई ठोस, स्पष्ट और निर्णायक आधार प्रस्तुत न करें. उन्होंने कहा कि "भावनात्मक" या "राजनीतिक" आरोपों से न्यायिक समीक्षा संभव नहीं है.
केंद्र सरकार ने क्या कहा: मुद्दों को सीमित करें: भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह इस मामले की सुनवाई को तीन कानूनी बिंदुओं तक सीमित रखे, जिससे अनावश्यक बहस से बचा जा सके. वहीं याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि कानून की समग्र संवैधानिक समीक्षा की जाए क्योंकि इससे बड़ी संख्या में संपत्तियां प्रभावित हो रही हैं.
सरकार का क्या है तर्क: केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि वक्फ अधिनियम का उद्देश्य सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना है. यह किसी भी धार्मिक प्रथा या विश्वास में हस्तक्षेप नहीं करता. इसलिए इसे धार्मिक आज़ादी के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
वक्फ बाय यूज़र की समाप्ति का विवाद: संशोधित कानून में 'वक्फ बाय यूज़र' (प्रयोग से वक्फ) की धारणा को हटा दिया गया है. पहले लंबे समय से मुस्लिम उपयोग में रही संपत्ति को वक्फ माना जाता था. इसके हटने से कई परंपरागत संपत्तियों की वक्फ स्थिति खत्म हो सकती है, जिससे समुदाय में असंतोष है.
वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य पंजीकरण: अब कानून के अनुसार सभी वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. इससे हजारों ऐसी संपत्तियां जो अब तक पारंपरिक रूप से वक्फ के रूप में उपयोग में थीं, उनकी कानूनी स्थिति पर संकट खड़ा हो गया है. यह कई विवादों और कानूनी चुनौतियों को जन्म दे सकता है.
वक्फ बोर्ड की नियुक्ति प्रक्रिया पर आपत्ति: संशोधित अधिनियम के सेक्शन 14 के तहत वक्फ बोर्ड की नियुक्ति में सरकार का सीधा हस्तक्षेप बढ़ा है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे स्वायत्तता खत्म हो रही है और समुदाय के भीतर यह आशंका है कि यह सरकारी नियंत्रण का साधन बन सकता है.
मस्जिदों की वित्तीय स्थिति पर चिंता: कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क दिया कि भारत में मस्जिदों को मंदिरों की तरह “चढ़ावा” नहीं मिलता, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पहले से कमजोर है. ऐसे में यदि सरकार संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाती है, तो इससे धार्मिक स्थलों का प्रबंधन और अधिक संकटग्रस्त हो सकता है.
देशभर में विरोध और सामाजिक असर : इस अधिनियम के खिलाफ देशभर में मुस्लिम संगठनों और बुद्धिजीवियों ने प्रदर्शन किए हैं. उनका कहना है कि यह कानून केवल मुस्लिम समुदाय को लक्षित करता है और इससे उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक और संपत्ति संबंधी आज़ादी पर हमला होता है. कई संगठनों ने इसे वापस लेने की मांग की है.