
केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का बचाव करते हुए कहा कि वक्फ अपने स्वभाव से ही एक ‘‘धर्मनिरपेक्ष अवधारणा'' है और इसके पक्ष में ‘‘संवैधानिकता की धारणा'' को देखते हुए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. केंद्र ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष प्रस्तुत अपने लिखित नोट में उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जो अदालत ने पहले उठाए थे और कहा कि इस कानून का उद्देश्य केवल धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए वक्फ प्रशासन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करना है.
उन्होंने कहा कि इस पर रोक लगाने की कोई ‘‘तात्कालिक आवश्यकता'' नहीं है. लिखित नोट में कहा गया है, ‘‘कानून में यह स्थापित तथ्य है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी. संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की परिकल्पना लागू होती है.''
सॉलिसिटर जनरल बुधवार को भी अपनी दलीलें पेश करेंगे. केंद्र ने कहा कि पीठ द्वारा अंतरिम निर्देशों के लिए तीन मुद्दों को निपटाया जाना था, जिनमें धारा 3 (आर), जो ‘‘उपयोग के आधार पर वक्फ'' की मान्यता को हटा देती है और धारा 3 (सी), जो सरकारी संपत्ति को वक्फ घोषित करने से बाहर रखने वाले विशेष प्रावधान पेश करती है, शामिल हैं.
इसमें कहा गया कि तीसरा मुद्दा केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड की संरचना से संबंधित है, जिसमें सीमित तौर पर गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व की अनुमति दी गई है. कानून पर रोक की याचिका का विरोध करते हुए, लिखित नोट में कहा गया कि तथ्यों एवं मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की विशिष्ट दलीलों के अभाव में, किसी कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने वाला कोई भी आदेश, वह भी प्रारंभिक अवस्था में, प्रतिकूल परिणाम देने वाला होगा.
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