
- SC ने उत्तर प्रदेश सरकार से उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा शामिल करने पर विस्तृत जवाब मांगा है.
- न्यायालय ने राज्य से पूछा कि क्या किशोरों को यौवन और हार्मोनल परिवर्तनों के बारे में शिक्षित किया जाता है.
- मामला एक किशोर की अपील से जुड़ा है जिसमें जमानत याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका थी.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के बारे में जवाब मांगा है. जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि राज्य को यह बताने के लिए एक अतिरिक्त जवाबी हलफनामा जवाब की आवश्यकता होगी कि क्या उत्तर प्रदेश राज्य के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में यौन शिक्षा प्रदान की जाती है. ताकि युवा किशोरों को यौवन के साथ आने वाले हार्मोनल परिवर्तनों और उनसे होने वाले संभावित परिणामों के बारे में जागरूक किया जा सके.
पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाले एक किशोर द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी , जिसमें एक ऐसे मामले के संबंध में उसकी जमानत याचिका खारिज करने के खिलाफ उसकी पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई थी. इसमें पीड़िता के ढाई महीने के गर्भवती होने का पता चलने के बाद उसके खिलाफ धारा 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक धमकी) आईपीसी और धारा 6 पॉक्सो अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई
निचली अदालत के जमानत देने से इनकार करने के फैसले को जिला अदालत ने बरकरार रखा, जिसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई. किशोर ने तर्क दिया कि संबंध सहमति से था. हालांकि, हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि नाबालिग की सहमति POCSO मामलों के लिए अप्रासंगिक है याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई.
शुरुआत में, अदालत को सूचित किया गया कि राज्य ने एक जवाबी हलफनामा दायर किया है. हालांकि, अदालत ने राज्य को उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करने की स्थिति का विवरण देते हुए एक अतिरिक्त जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या युवा किशोरों को यौन शिक्षा के मूलभूत पहलुओं के बारे में जागरूक किया जाता है. ताकि ऐसी अनुचित गतिविधियों को रोका जा सके.
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