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This Article is From Jan 17, 2023

हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग पर जवाब दाखिल नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

खंडपीठ ने कहा कि हम इस बात की सराहना करने में विफल हैं कि इन राज्यों ने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी. हम इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आखिरी मौका देते हैं. यदि वे जवाब दाखिल नहीं करते हैं तो यह माना जाएगा कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है.

हिन्दुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग पर जवाब दाखिल नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी
अब इस मामले पर 21 मार्च को अगली सुनवाई होगी.
नई दिल्ली:

9 राज्यों में  हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के जवाब दाखिल ना करने पर नाराजगी जाहिर की. अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इनके जवाब लेने का आखिरी मौका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ये राज्यों ने जवाब नहीं दिया तो समझेंगे कि उनके पास कहने को कुछ नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू- कश्मीर और लक्षद्वीप के जवाब ना देने पर केंद्र पर उठाते हुए कहा ये तो केंद्र के शासित हैं, फिर भी जवाब क्यों नहीं दे रहे ? अब इस मामले पर 21 मार्च को अगली सुनवाई होगी. ये सुनवाई जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच में हुई.

आदेश एजी का कहना है कि 6 राज्यों ने अपना जवाब नहीं दिया है. हम इस बात की सराहना करने में विफल हैं कि इन राज्यों को प्रतिक्रिया क्यों नहीं देनी चाहिए. हम केंद्र सरकार को उनकी प्रतिक्रिया लेने का आखिरी मौका देते हैं, ऐसा न करने पर हम मान लेंगे कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है. एजी वेंकटरमणी ने कहा कि 6 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने जवाब दाखिल नहीं किया है. हम चाहते हैं कि सभी राज्य हों. अरूणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, राजस्थान, तेलंगाना, झारखंड ने उत्तर दाखिल नहीं किया.

खंडपीठ ने कहा कि हम इस बात की सराहना करने में विफल हैं कि इन राज्यों ने प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी. हम इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आखिरी मौका देते हैं. यदि वे जवाब दाखिल नहीं करते हैं तो यह माना जाएगा कि उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एसएनआर एडवोकेट वैद्यनाथन- जम्मू-कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं. हम समझते हैं कि उन्होंने जवाब क्यों नहीं दिया. बेंच ने एजी से कहा कि लेकिन जम्मू-कश्मीर अभी आपके द्वारा प्रशासित किया जा रहा है. एजी आर वेंकटरमणि से जस्टिस कौल बोले कि आपकी अपनी सरकारें फाइल क्यों नहीं कर रही हैं? जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप में आपका शासन है

सुनवाई के दौरान एजी एन वेंकटरमनी ने कहा कि 4 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने जवाब दाखिल नहीं किया है. अरूणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, राजस्थान, तेलंगाना, झारखंड ने जवाब दाखिल नहीं किया. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर सी एस वैद्यनाथन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं. हम समझते हैं कि उन्होंने जवाब क्यों नहीं दिया. बेंच ने AG से कहा कि लेकिन जम्मू-कश्मीर अभी आपके द्वारा प्रशासित किया जा रहा है. जस्टिस कौल ने कहा कि आपकी अपनी सरकारें जवाब क्यों नहीं दे रही हैं?जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप में आपका शासन है

इससे पहले केंद्र सरकार ने SC को बताया था मामले में 24 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश का जवाब उसे मिला है. केंद्र सरकार ने बताया हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने को लेकर राज्य सरकार  एकमत नहीं है. केंद्र ने कहा अधिकतर राज्यों ने अल्पसंख्यक का दर्जा देने का अधिकार राज्यों के पास रहने की बात कही. उत्तराखंड का सुझाव राज्यों में जनसंख्या के आधार पर धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित किया जाना चाहिए. केंद्र ने SC को बताया UP सरकार ने जवाब में कहा मामले में केंद्र जो भी फैसला लेगा UP सरकार को कोई आपत्ति नहीं होगी

बंगाल सरकार ने कहा कि किसी वर्ग को अल्पसंख्यक घोषित करने की शक्ति राज्य सरकार के पास होनी चाहिए. दिल्ली सरकार ने सुझाव दिया कि हिन्दू धर्म के मानने वालों को दिल्ली में अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं प्राप्त है. लेकिन हिन्दू धर्म के ऐसे लोग हैं, जो जम्मू कश्मीर और लद्दाख जैसे राज्यों से पलायन कर दिल्ली में रह रहे है, उनको केंद्र सरकार  'प्रवासी अल्पसंख्यक' का दर्जा दे सकती है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अरूणांचल प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में जम्मू-कश्मीर तथा लक्ष्यद्वीप के सुझाव का इंतज़ार है.

अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा दाखिल किया है. सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका के जरिए कहा गया है की नौ राज्यों में हिंदू आबादी अल्पसंख्यक है. अल्पसंख्यक समुदाय की पहचान करने और उन्हें इसका दर्जा देने का अधिकार राज्यों का है.  याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार से 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित करने और 'जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश' निर्धारित करने की मांग की है. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल वे धार्मिक और भाषाई समूह, जो सामाजिक रूप से आर्थिक रूप से राजनीतिक रूप से कमजोर हैं और संख्यात्मक रूप से बहुत कम हैं गारंटीकृत लाभ और सुरक्षा प्राप्त करें. 

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2(सी) की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई, जो केंद्र को अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति देती है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका का जवाब देते हुए, केंद्र ने 28 मार्च 2022 को दायर एक हलफनामे में कहा था कि जिन राज्यों में वे अल्पसंख्यक हैं, वहां संबंधित राज्य सरकार द्वारा हिंदुओं को अनुच्छेद 29 और 30 के उद्देश्यों के लिए अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है. हालांकि, बाद में केंद्र ने अपना रुख बदल दिया और पहले वाले को वापस लेते हुए एक नया हलफनामा दायर किया. नए हलफनामे में, केंद्र ने कहा कि उसके पास अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति है.

इस संबंध में "भविष्य में अनपेक्षित जटिलताओं" से बचने के लिए "राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श" के बाद ही कोई रुख अपनाया जा सकता है. याचिका में अल्पसंख्यक अधिनियम कानून को संविधान के अनुच्छेद 14,15,21,29 और 30 के विपरीत बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ 1%, मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4% हिंदू हैं। इसके अलावा नगालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% हिंदू हैं. इसके बावजूद सरकार ने उन्हें अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है.

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