सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक फैसले में 25 सालों से अलग रह रहे पति-पत्नी की शादी को भंग कर दिया. अदालत ने कहा कि दंपती को शादी के बंधन में बंधे रहने के लिए कहना 'क्रूरता को मंज़ूरी देना है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने दिल्ली के इस जोड़े के विवाह को खत्म करते हुए कहा कि हमारे सामने एक ऐसा शादीशुदा जोड़ा है जो मुश्किल से चार साल तक एक जोड़े के रूप में साथ रहा और पिछले 25 सालों से अलग रह रहे है. उनका कोई बच्चा भी नहीं है. इनका वैवाहिक बंधन पूरी तरह से टूटा हुआ है और 'मरम्मत' से परे है. हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह रिश्ता खत्म होना चाहिए क्योंकि इसकी निरंतरता 'क्रूरता' को मंज़ूरी देना होगा.
अदालत ने कहा कि लंबी जुदाई व सहवास नहीं होना और सभी सार्थक बंधनों का पूरी तरह से विराम और दोनों के बीच मौजूदा कड़वाहट को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत 'क्रूरता' के रूप में पढ़ा जाना चाहिए.उनके वैवाहिक संबंध को खत्म करने से सिर्फ वहीं दोनों ही प्रभावित होंगे क्योंकि उनका कोई बच्चा नहीं है. यह देखते हुए कि पति का वर्तमान वेतन एक लाख रुपए प्रति महीने से अधिक है, पीठ ने पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को चार हफ्ते के भीतर 30 लाख रुपए दे.
जानकारी के अनुसार इन दोनों की शादी दिल्ली में अप्रैल, 1994 में हिंदू रीति रिवाजों के तहत हुई थी.लेकिन जल्द ही उनके रिश्ते में कड़वाहट आ गई.पति का आरोप था कि पत्नी को उसका छोटा घर पसंद नहीं था और वह भद्दे शब्दों का इस्तेमाल करती थी. 1994 में उसे बिना बताए गर्भपात कराया था.आखिरकार चार साल बाद पत्नी ने पति का घर छोड़ दिया और पति व उसके भाई पर दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया था.
इसके बाद पुलिस ने पति और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया था. बाद में दोनों को जमानत मिल गई थी.इसके बाद पत्नी ने ससुरालियों के खिलाफ और भी आपराधिक शिकायतें की थी.परेशान होकर पति ने तलाक की अर्जी लगाई थी. निचली अदालत ने क्रूरता और लंबे समय से अलग रहने के आधार पर तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी.लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस आधार पर तलाक का मामला नहीं बनता है. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पति ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
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