सुप्रीम कोर्ट ने को-लोकेशन (Co-Location Scam)घोटाले में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण को दी गई जमानत को खारिज करने से इनकार कर दिया है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने बीते 28 सितंबर (बुधवार) को सीबीआई की ओर से जांच की जा रही को-लोकेशन घोटाला मामले में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण और पूर्व समूह संचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यम को जमानत दे दी थी. इसके बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने रामकृष्ण को डिफॉल्ट जमानत देने के 28 सितंबर के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने एनएसई की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण और पूर्व समूह संचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यम की वैधानिक जमानत को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत देने के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया है.
जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने सीबीआई की याचिका खारिज करते हुए कहा, 'हमें जमानत आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला. हम स्पष्ट करते हैं कि की गई टिप्पणी केवल डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए है. ये ट्रायल की मेरिट को प्रभावित नहीं करेंगी. कानून के सभी प्रश्न खुले रहेंगे.'
एनएसई को-लोकेशन केस क्या है?
को-लोकेशन डेटा सेंटर फैसिलिटी होती है. इसमें तीसरी पार्टियां सर्वर और अन्य कंप्यूटर हार्डवेयर के लिए स्पेस लीज पर दे सकती हैं. वो सर्वर स्थापित करने और डेटा के स्टोरेज के लिए बिजली की आपूर्ति, बैंडविथ और कूलिंग जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करती हैं. ग्राहक आमतौर पर रैक, कैबिनेट, केज या कमरे की जगह किराये पर लेते हैं.
एनएसई ने 2009 में को-लोकेशन की सुविधा शुरू की थी. इसके तहत ट्रेडर्स/ ब्रोकर्स को अपने सर्वर एनएसई के डेटा सेंटर में रखने की पेशकश की थी. इसके बदले उन्हें शुल्क देना था. स्टॉक एक्सचेंज के सर्वरों के निकट होने से ट्रेडर्स और ब्रोकर्स को तेज एक्सेस मिला. सौदों का निष्पादन तेजी से होने लगा. इसमें किसी तरह की रुकावट की गुंजाइश कम थी. समान सर्वर के चलते डेटा का ट्रांसमिशन तेजी से होता था. उन्हें जल्दी जानकारी मिल जाती थी. जिन कारोबारियों और ब्रोकरों के पास यह सुविधा नहीं थी, वो इस मामले में पीछे रह जाते थे. इसे सर्वर की नकल या क्लोनिंग कहा जा सकता है.
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