इशामुद्दीन खान दिल्ली में रहते हैं (AFP)
नई दिल्ली:
कुछ वक्त के लिए ही सही इशामुद्दीन खान के कदमों में दुनिया बिछ गई थी. जादूगरी की दुनिया का एक बड़ा तहलका - जिसमें रस्सी को हवा में लटका दिया जाता था - यह जादू जिस पर भरोसा करना मुश्किल था इसके बूते खान सोचने लगे थे कि उनका भविष्य तो उज्जवल है. 22 साल पहले इशामुद्दीन ने जनता को तब हैरानी में डाल दिया था जब उन्होंने एक टोकरी में से लंबी रस्सी निकालकर हवा में 20 फुट ऊपर लटकाई थी जिस पर उनके सहायक चढ़ भी थे. लेकिन इस हैरतअंगेज़ कारनामे के बाद अब इतने सालों बाद भी खान अपनी और इस कला की पहचान के लिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं.
ख़ान नाराज़ हैं कि जादूगरी की इस कला को बचाने को लेकर देश में उन्हें किसी तरह का समर्थन हासिल नहीं है और उन्होंने तय किया है कि सड़क पर प्रदर्शन करने वालों को अपराधी घोषित करने वाले इस आदिम जाति के कानून को चुनौती देंगे. खान कहते हैं 'सड़कों पर परफॉर्म करना मुझे बहुत पसंद है, लेकिन कानून के तहत मैं स्ट्रीट परफॉर्मर नहीं भिखारी हूं.'
उन्होंने आगे कहा 'मैं अकेला तो कानून से लड़ नहीं सकता लेकिन मैं हार मानने को तैयार नहीं हूं.' खान बताते हैं कि उन्होंने इस कानून को चुनौती देने के लिए कुछ कानूनी केंद्रों से मदद मांगने का फैसला किया है.
खान के पिता बंदरों का खेल करते थे और उनकी मां कचड़ा बीनने का काम करती थीं. वह दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी में बड़े हुए हैं जो सपेरे, कठपुतली का खेल करने वाले और तमाशा करने वालों का ठिकाना है जिसे सलमान रुश्दी के प्रसिद्ध उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' में जादूगार का ठिकाना बताया गया.
लेकिन खान की मानें तो अब इस तरह के काम की कोई कीमत नहीं है. इसके पीछे की वजह है दशकों पुराना बॉम्बे बेगरी एक्ट जिसके मुताबिक सड़को पर तमाशा करने वाला लाखों लोगों को परेशानी का सबब बताया गया और उन्हें गैरकानूनी अवस्था के गढ्ढे में ढकेल दिया. यही वजह है कि देश की बहुमूल्य रहस्यवाद और कलात्मक परंपरा के बावजूद आदिवासी कलाकारों को अपने कला के प्रदर्शन के कम ही मौके मिल पाते हैं.
1995 में खुले आसमान के नीचे रस्सी के साथ यह कमाल करने वाले खान पहले कलाकार थे. इसे जादगूरी की दुनिया का तहलका माना जाने लगा क्योंकि यह खुले मैदान में किया जा रहा था जहां किसी तरह की तिकड़म या लोगों की नज़रों को धोखा देने की संभावना कम होती थी. खान बताते हैं कि इस ट्रिक के बारे में सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान यूरोप के लेखकों ने लिखा था. यह इतना मुश्किल जादू था कि 30 के दशक के मैजिक सर्किल ने इसे करने वाले के लिए ईनाम तक की घोषणा कर दी थी.
खान बताते हैं 'मैंने एक बार सुना था कि अगर मैं यह ट्रिक कर लूंगा तो मुझे वह पैसा मिल सकता है जो ब्रिटिश मैजिक सर्किल ने तय किया है. मैंने छह साल इसके राज़ का पता लगाने में निकाल दिए.' फिर खान ने कुतुब मिनार के बाहर हजारों दर्शकों की भीड़ के सामने हवा में रस्सी लटकाने वाला यह जादू करके दिखाया जिसमें लोगों ने एक बच्चे को उस रस्सी पर चढ़ते भी देखा. रातों रात खान दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए.
खान को दुनिया भर से न्यौते आने लगे, उन्हें प्रायोजक मिलने लगे और अभी भी दिल्ली में विदेश से आने वाले पर्यटक खान को इस जादू के लिए ढूंढ निकालते हैं. लेकिन वहीं भारत में खान की इस प्रतिभा का कोई नामलेवा नहीं है. इस कानून में बदलाव को लेकर उठी मांग अब ठंडे बस्ते में है. कठपुतली नगर जहां खान के पेशे से जुड़े दो हजार परिवार रहते हैं, उस बस्ती को ढहा दिया गया है. लेकिन खान जो हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ थोड़ी बहुत फ्रेंच और जापानी भी बोल लेते हैं, अभी भी आशावान है. वह कहते हैं 'मुझे सड़कों पर यह खेल दिखाना पसंद है और मुझे इसकी अनुमति मिलनी चाहिए. क्या मैं कुछ ज्यादा मांग रहा हूं?'
ख़ान नाराज़ हैं कि जादूगरी की इस कला को बचाने को लेकर देश में उन्हें किसी तरह का समर्थन हासिल नहीं है और उन्होंने तय किया है कि सड़क पर प्रदर्शन करने वालों को अपराधी घोषित करने वाले इस आदिम जाति के कानून को चुनौती देंगे. खान कहते हैं 'सड़कों पर परफॉर्म करना मुझे बहुत पसंद है, लेकिन कानून के तहत मैं स्ट्रीट परफॉर्मर नहीं भिखारी हूं.'
उन्होंने आगे कहा 'मैं अकेला तो कानून से लड़ नहीं सकता लेकिन मैं हार मानने को तैयार नहीं हूं.' खान बताते हैं कि उन्होंने इस कानून को चुनौती देने के लिए कुछ कानूनी केंद्रों से मदद मांगने का फैसला किया है.
खान के पिता बंदरों का खेल करते थे और उनकी मां कचड़ा बीनने का काम करती थीं. वह दिल्ली की कठपुतली कॉलोनी में बड़े हुए हैं जो सपेरे, कठपुतली का खेल करने वाले और तमाशा करने वालों का ठिकाना है जिसे सलमान रुश्दी के प्रसिद्ध उपन्यास 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' में जादूगार का ठिकाना बताया गया.
लेकिन खान की मानें तो अब इस तरह के काम की कोई कीमत नहीं है. इसके पीछे की वजह है दशकों पुराना बॉम्बे बेगरी एक्ट जिसके मुताबिक सड़को पर तमाशा करने वाला लाखों लोगों को परेशानी का सबब बताया गया और उन्हें गैरकानूनी अवस्था के गढ्ढे में ढकेल दिया. यही वजह है कि देश की बहुमूल्य रहस्यवाद और कलात्मक परंपरा के बावजूद आदिवासी कलाकारों को अपने कला के प्रदर्शन के कम ही मौके मिल पाते हैं.
1995 में खुले आसमान के नीचे रस्सी के साथ यह कमाल करने वाले खान पहले कलाकार थे. इसे जादगूरी की दुनिया का तहलका माना जाने लगा क्योंकि यह खुले मैदान में किया जा रहा था जहां किसी तरह की तिकड़म या लोगों की नज़रों को धोखा देने की संभावना कम होती थी. खान बताते हैं कि इस ट्रिक के बारे में सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान यूरोप के लेखकों ने लिखा था. यह इतना मुश्किल जादू था कि 30 के दशक के मैजिक सर्किल ने इसे करने वाले के लिए ईनाम तक की घोषणा कर दी थी.
खान बताते हैं 'मैंने एक बार सुना था कि अगर मैं यह ट्रिक कर लूंगा तो मुझे वह पैसा मिल सकता है जो ब्रिटिश मैजिक सर्किल ने तय किया है. मैंने छह साल इसके राज़ का पता लगाने में निकाल दिए.' फिर खान ने कुतुब मिनार के बाहर हजारों दर्शकों की भीड़ के सामने हवा में रस्सी लटकाने वाला यह जादू करके दिखाया जिसमें लोगों ने एक बच्चे को उस रस्सी पर चढ़ते भी देखा. रातों रात खान दुनिया भर में लोकप्रिय हो गए.
खान को दुनिया भर से न्यौते आने लगे, उन्हें प्रायोजक मिलने लगे और अभी भी दिल्ली में विदेश से आने वाले पर्यटक खान को इस जादू के लिए ढूंढ निकालते हैं. लेकिन वहीं भारत में खान की इस प्रतिभा का कोई नामलेवा नहीं है. इस कानून में बदलाव को लेकर उठी मांग अब ठंडे बस्ते में है. कठपुतली नगर जहां खान के पेशे से जुड़े दो हजार परिवार रहते हैं, उस बस्ती को ढहा दिया गया है. लेकिन खान जो हिंदी, अंग्रेजी के साथ साथ थोड़ी बहुत फ्रेंच और जापानी भी बोल लेते हैं, अभी भी आशावान है. वह कहते हैं 'मुझे सड़कों पर यह खेल दिखाना पसंद है और मुझे इसकी अनुमति मिलनी चाहिए. क्या मैं कुछ ज्यादा मांग रहा हूं?'
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