राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब के लिए केंद्र ने 1 हफ्ता मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि वो हफ्ते के अंत तक अपना जवाब दाखिल करें. इसके बाद याचिकाकर्ता अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करेंगे

राजद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब के लिए केंद्र ने 1 हफ्ता मांगा

राजद्रोह कानून (Sedition Law) के कथित दुरुपयोग पर कोर्ट ने जताई थी चिंता

नई दिल्ली:

राजद्रोह कानून (Sedition Law) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दूसरी अर्जी दाखिल की है.  जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए उसने एक हफ्ते का वक्त और मांगा है. इस मामले में स्पेशल बेंच में गुरुवार को सुनवाई होनी है. सोमवार को भी केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पहली अर्जी दाखिल कर जवाब दाखिल करने के लिए और वक्त मांगा था. केंद्र ने कहा है कि मसौदा तैयार है लेकिन सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी का इंतजार है. दरअसल IPC की धारा 124 A यानी देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को  फाइनल सुनवाई होनी है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा था कि वो हफ्ते के अंत तक अपना जवाब दाखिल करें. इसके बाद याचिकाकर्ता अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करेंगे. केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र की ओर से जवाब लगभग तैयार है और दो- तीन दिन में हलफनामा दाखिल किया जाएगा. अन्य याचिकाओं को भी इसमें शामिल किया जाएगा. CJI एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की स्पेशल बेंच में ये सुनवाई होनी है. 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व सैन्य अधिकारी महुआ मोइत्रा समेत अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई होनी है. कोर्ट ने इससे पहले निर्देश दिया था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलीलों का नेतृत्व करेंगे. राजद्रोह कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को रद्द क्यों नहीं कर रही जिसे स्वाधीनता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं सुनवाई को शीर्ष अदालत सहमति जताई थी. कोर्ट ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है, जिसके कारण मामलों बढ़ोतरी हो रही है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने प्रावधानों के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या 'आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की जरूरत है'