महाराष्ट्र विधानसभा से 12 BJP विधायकों को एक साल के लिए निलंबित करने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक साल के लिए निलंबित करने पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों को एक साल तक निलंबित करना निष्कासन से भी बदतर है और ये पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देना होगा.
जस्टिस एएम खानविलकर ने टिप्पणी की कि यह फैसला निष्कासन से भी बदतर है. उन्होंने कहा, 'कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता क्योंकि क्षेत्र के विधायक सदन में मौजूद नहीं होंग. यह सदस्य को नहीं बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को सजा देने के बराबर है.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो एक साल के निलंबन की सजा की न्यायिक समीक्षा करेगा. हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है.
SC ने यह भी बताया कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, एक निर्वाचन क्षेत्र 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए बिना प्रतिनिधित्व के नहीं रह सकता है. SC ने महाराष्ट्र की इस दलील को ठुकरा दिया कि अदालत एक विधानसभा द्वारा दिए गए दंड की मात्रा की जांच नहीं कर सकती है. जबकि याचिकाकर्ता बीजेपी विधायकों ने कहा कि सदन द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया. निर्वाचन क्षेत्र के अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत है. इस तरह से निष्कासन सरकार को महत्वपूर्ण मुद्दों में बहुमत वोट हासिल करने के लिए सदन में ताकत में हेरफेर करने की अनुमति दे सकता है. याचिकाकर्ता विधायकों की ओर से महेश जेठमलानी, मुकुल रोहतगी, नीरज किशन कौल और सिद्धार्थ भटनागर पेश हुए.
इससे पहले 14 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि याचिका का लंबित रहना याचिकाकर्ता के कार्यकाल में कटौती के संबंध में सदन से आग्रह करने के रास्ते में नहीं आएगा. यह एक ऐसा मामला है जिस पर सदन द्वारा विचार किया जा सकता है.
उस दौरान शेलार की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा, 'स्पीकर का ये फैसला पूरी तरह मनमाना, अनुचित और प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है. हमें इस तरह एक साल के लिए निलंबित नहीं किया जा सकता. ये लोकतांत्रिक नियमों के खिलाफ है. ज्यादा से ज्यादा सदन का सत्र चलने तक निलंबित किया जा सकता था.'
महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबित किए गए भाजपा विधायक आशीष शेलार और अन्य विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उनका कहना है कि उन्हें 1 साल के लिए निलंबित करने का फैसला दुर्भावना के चलते लिया गया और ऐसा फैसला लेने से पहले उनके पक्ष को भी नहीं सुना गया है.
भाजपा विधायक आशीष शेलार ने याचिका में मांग की है कि जिस गैरकानूनी प्रस्ताव के तहत हमें निलंबित किया गया है, उस अवैध प्रस्ताव को खारिज किया जाए. इसके साथ ही अदालत से याचिका में यह भी गुहार लगाई है कि स्पीकर के निलंबन की कार्रवाई के प्रस्ताव पर अंतरिम रोक लगाई जाए तथा इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसला आने तक उनके सभी अधिकार बहाल किया जाए.
बता दें कि विधानसभा के पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ अपमानजनक और दुर्व्यवहार करने के आरोप में 6 जुलाई को महाराष्ट्र विधानसबा से 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिए निलंबित किया गया था. निलंबित किए गए 12 भाजपा विधायकों में आशीष शेलार, गिरिश महाजन, अभिमन्यु पवार, अतुल भातखलकर, नारायण कुचे, संजय कुटे, पराग अलवणी, राम सातपुते, हरीश पिंपले, जयकुमार रावल, योगेश सागर, कीर्ति कुमार बागडिया के नाम शामिल हैं. संसदीय कामकाज मंत्री अनिल परभ भाजपा विधायकों के निलंबन का प्रस्ताव लाए थे, जिसे ध्वनि मत से मंजूर कर लिया गया था.
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