CAA को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 31 अक्टूबर को सुनवाई होगी. कोर्ट ने इसको लेकर केंद्र से चार हफ्ते में जवाब मांगा है. नई याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी किया गया है. केरल सरकार के केंद्र के खिलाफ दाखिल सूट को भी मामले के साथ जोड़ा गया है.
CAA को चुनौती देने वाली सैकड़ों याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई शुरू हुई तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार की ओर से कुछ जवाब आ गए हैं, लेकिन कुछ जवाब अभी बाकी हैं. वहीं याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाओं की छंटनी करनी जरूरी है. याचिकाकर्ताओं में से एक एमएल शर्मा ने कहा कि वकीलों के लिए बहस का समय तय हो. पहले दी गई दलीलों का दोहराव न हो.
नागरिकता कानून यानी CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में CJI यू यू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने सुनवाई की. कुल 220 याचिकाओं पर सुनवाई हुई. 2020 में नागरिकता कानून पर रोक लगाने पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था.
नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था और जवाब मांगा है.
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस, त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन और असम गण परिषद, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, CPI और डीएमके द्वारा दायर याचिकाओं सहित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं, जिनमें नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. राष्ट्रपति के नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान किए जाने के बाद से यह कानून बन गया था.
कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन 'रिहाई मंच और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा और कानून के कई छात्र शामिल हैं.
जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर 'खुला हमला है. वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है. रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है, क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है.
मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है. उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है. आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है.
वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक जवाब दाखिल किया था. केद्र ने कहा है कि CAA से किसी भी नागरिक के मौजूदा अधिकारों पर प्रतिबंध नहीं है. यह कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा. केंद्र का कहना है कि CAA संसद की संप्रभु शक्ति से जुड़ा मामला है और अदालत के समक्ष इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता.
हलफनामे में आगे कहा गया है कि संसद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को चिन्हित करने के लिए सक्षम है. केंद्र ने CAA को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक जवाबी हलफनामा दायर किया है. सुप्रीम कोर्ट ने करीब 140 याचिकाओं पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा था.
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