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This Article is From Apr 22, 2023

समलैंगिक विवाह मामले में सोमवार को नहीं होगी संविधान पीठ में सुनवाई

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा था कि सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद अगले कदम के रूप में 'शादी की विकसित होती धारणा' को फिर से परिभाषित किया जा सकता है.

समलैंगिक विवाह मामले में सोमवार को नहीं होगी संविधान पीठ में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) मामले में सोमवार को संविधान पीठ में सुनवाई नहीं हो पाएगी. दरअसल जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस रवींद्र भट के ना होने से सुनवाई टल गई है. इससे पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को संकेत दिया था कि उनकी अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ 24 अप्रैल को निर्धारित समय से एक घंटा पहले अदालती कार्यवाही शुरू करेगी. लेकिन अब ऐसा मुमकिन नहीं हो पाएगा.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश कामकाजी दिनों में सुबह साढ़े 10 बजे से शाम चार बजे तक मामलों पर सुनवाई करते हैं.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मंजूरी के अनुरोध वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही है. पीठ इस दलील से सहमत नहीं थी कि विषम लैंगिकों के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर सकते. प्रधान न्यायाधीश ने परिवारों में विषम लैंगिकों द्वारा शराब के दुरुपयोग और बच्चों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव का उल्लेख किया.

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के वी विश्वनाथन ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जानी चाहिए और ऐसे जोड़ों को विवाह के अधिकार से वंचित करने के लिए संतानोत्पत्ति वैध आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि ‘‘एलजीबीटीक्यूआईए'' लोग बच्चों को गोद लेने या उनका पालन-पोषण करने के लिए उतने ही योग्य हैं जितने विषम लैंगिक जोड़े. पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि लोग अब इस धारणा से दूर हो रहे हैं कि एक लड़का होना ही चाहिए और यह शिक्षा के प्रसार और प्रभाव के कारण है. पीठ ने कहा कि केवल बहुत उच्च शिक्षित या अभिजात्य वर्ग कम बच्चे चाहते हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘विषम लैंगिक जोड़ों के मामले में, शिक्षा के प्रसार के साथ, आधुनिक दौर के दबाव में... ऐसे जोड़े तेजी से बढ रहे हैं जो या तो निःसंतान हैं या एकल बच्चे वाले हैं और इसलिए आप देखते हैं कि चीन जैसे देश भी अब जनसांख्यिकीय लाभांश में पिछड़ रहे हैं क्योंकि आबादी तेजी से बुजुर्ग हो रही है.' इस मामले में दलीलें अभी पूरी नहीं हुई हैं और अगली सुनवाई 24 अप्रैल को पुन: शुरू होनी थी, जो कि अब टल गई है.

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