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This Article is From Dec 27, 2024

अग्नि अखाड़े की पेशवाई भव्य तरीके से निकली, साधुओं ने किया मेला क्षेत्र में प्रवेश

अग्नि अखाड़े का छावनी प्रवेश पुराने शहर के कई इलाकों से गुजरते हुए मेला क्षेत्र में अपनी छावनी में प्रवेश कर गया. अब तक दो अखाड़े जिसमें नागा सन्यासियों से जुड़े जुना अखाड़े और आवाहन अखाड़े ने अपना छावनी प्रवेश मेला क्षेत्र में कर लिया है.

अग्नि अखाड़े की पेशवाई भव्य तरीके से निकली, साधुओं ने किया मेला क्षेत्र में प्रवेश

प्रयागराज में संगम की धरती पर अगले साल की शुरुआत में लगने जा रहे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और धार्मिक मेले महाकुंभ 2025 को लेकर अब महज 17 दिन बचे हैं. संगम की रेती पर 13 जनवरी 2025 से शुरू होने जा रहे इस धार्मिक मेले को दिव्य और भव्य बनाने को लेकर युद्धस्तर पर तैयारियां चल रही है. वहीं इस मेले में आकर्षण का केंद्र रहने वाले 13 अखाड़ों से जुड़े साधु-संतों का मेला क्षेत्र में आने का सिलसिला शुरू हो चुका है. इन 13 अखाड़ों में से एक श्री शंभु पंच अग्नि अखाड़े का छावनी प्रवेश जिसे पहले पेशवाई के नाम से जाना जाता था, उसकी शोभायात्रा चौफटका स्थित अनंत माधव मंदिर से शुरू हुई.

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किन अखाड़ों का मेले में हुआ प्रवेश

अग्नि अखाड़े का छावनी प्रवेश पुराने शहर के कई इलाकों से गुजरते हुए मेला क्षेत्र में अपनी छावनी में प्रवेश कर गया. अबतक दो अखाड़े जिसमें नागा सन्यासियों से जुड़े जुना अखाड़े और आवाहन अखाड़े ने अपना छावनी प्रवेश मेला क्षेत्र में कर लिया है. करीब 10 किमी लंबी इस छावनी प्रवेश में अग्नि अखाड़े से जुड़े तमाम साधु-संत शामिल हुए. अग्नि अखाड़े का छावनी प्रवेश भव्य तरीके से निकला. जिसमें घोड़े, पालकी, रथ, बग्गी और चांदी के ओहदे पर सवार होकर साधु-संत मेला क्षेत्र में बने अपनी छावनी में प्रवेश कर गए. पूरे लाव लश्कर के साथ आज मेला क्षेत्र में तीसरे अखाड़े ने प्रवेश कर लिया है.

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अखाड़ों की परंपराएं और पद्धतियां एक-दूजे से अलग

अभी दस और अखाड़े मेला क्षेत्र में अपनी आमद कराएंगे. सब अखाड़ों के शिविर बनने का काम तेज़ी से चल रहा है. अग्नि अखाड़ा शैव सन्यासी संप्रदाय से जुड़ा हुआ है. इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं. शैव अखाड़े से जुड़े कुल सात अखाड़े हैं. देश में कुल 13 अखाड़े हैं, जिसमें 7 शैव, 3 बैरागी और 3 उदासीन अखाड़े हैं. ये अखाड़े देखने में एक जैसे लगते है. लेकिन इनकी परंपराएं और पद्धतियां बिल्कुल अलग होती है. शैव अखाड़े वो है जो शिव की भक्ति करते हैं. वैष्णव अखाड़े विष्णु के भक्त होते हैं और तीसरा संप्रदाय उदासीन खालसा पंथ से जुड़ा है. उदासीन पंथ के लोग गुरु नानक की वाणी से बहुत प्रेरित होते हैं.
 

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