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सूरत में अदाणी हजीरा पोर्ट पर स्टील के कचरे से बनी सड़क, जानिए क्यों है खास?

CSIR-CRRI की ये पहल पीएम मोदी के "वेस्ट टू वेल्थ मिशन" (Waste to Wealth Mission) को भी साकार कर रही है. क्यूंकि आने वाले समय में स्टील के कचरे का उपयोग रनवे और रेलवे में भी किया जाएगा.

सूरत में अदाणी हजीरा पोर्ट पर स्टील के कचरे से बनी सड़क, जानिए क्यों है खास?
गुजरात के सूरत स्थित अदाणी हजीरा पोर्ट पर स्टील के कचरे से बनी सड़क.
  • गुजरात के अदाणी हजीरा पोर्ट पर पहली बार स्टील स्लैग एग्रीगेट से सड़क का निर्माण किया गया है.
  • 1.02 किलोमीटर लंबी यह सड़क स्टील कचरे के उपयोग से बनाई गई है.
  • नीति आयोग के सदस्य विजय कुमार सारस्वत ने सड़क का उद्घाटन किया है.
  • यह सड़क कन्वेंशनल रोड से 44% सस्ती और 3-4 गुना अधिक मजबूत है.
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नई दिल्ली:

रोड और हाईवे निर्माण के बाद अब तटीय इलाके में भी स्टील के कचरे का इस्तेमाल करके सड़क बनाई गई है. यह संभव हुआ है गुजरात के सूरत स्थित अदाणी हजीरा पोर्ट पर, जहां 1.02 किलोमीटर लंबी सड़क स्टील स्लैग एग्रीगेट का प्रयोग करके बनी है. ये दुनिया की पहली ऐसी स्टील स्लैग एग्रीगेट के प्रयोग से बनी सड़क है, जो किसी कमर्शियल पोर्ट पर बनाई गई है. इस सड़क का शनिवार (5 जुलाई ) को नीति आयोग के सदस्य विजय कुमार सारस्वत ने उद्घाटन किया.

"कचरे से सड़क बनना बड़ी अचीवमेंट"

एनडीटीवी से बात करते हुए विजय कुमार सारस्वत ने कहा, "पोर्ट एरिया में स्टील स्लैग सड़क का निर्माण बहुत बड़ी उपलब्धि है. यहां पर सड़क बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण था, क्यूंकि यहां पर मैक्सिमम लोडिंग और ट्रैफिकिंग होती है और उसमें इस स्टील स्लैग रोड को बनाना हमारे वैज्ञानिकों, स्टील प्रोड्यूसर्स, स्लैग प्रोड्यूसर्स और अदाणी पोर्ट के लिए (जिसने यह इनीशिएटिव लिया) बहुत बड़ी सफलता की बात है. हमने स्टील स्लैग से गड्ढों को भी भरने की तकनीक बना ली है." सारस्वत ने कहा कि मेरी इच्छा है कि देश में सभी सड़क स्टील स्लैक एग्रीगेट का इस्तेमाल करके बनाई जाए.

अदाणी हजीरा पोर्ट के अंदर बनी इस 1.1 किलोमीटर लंबी सड़क में कुल 17000 मीट्रिक टन स्टील के कचरे का इस्तेमाल किया गया है. यहां से प्रतिदिन 1 हजार से अधिक डंपर सामान लेकर गुजरेंगे. यह सड़क औद्योगिक अनुसंधान परिषद- केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CSIR-CRRI) और केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से बनाई गई है. 

कान्वेंशनल रोड से अधिक मजबूत 

इस परियोजना के बारे में बात करते हुए स्टील स्लैग रोड टेक्नोलॉजी के इन्वेंटर और वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक सतीश पांडेय ने कहा, " इस स्टील स्लैग रोड के अंदर 4 लेयर स्ट्रक्चर होता है. चारों लेयर के निर्माण में हमने नेचुरल एग्रीगेट की जगह 100 प्रतिशत प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट का प्रयोग किया है. इंडियन रोड कांग्रेस की गाइडलाइन के मुताबिक रोड की थिकनेस 1100 एमएम किया जाना था, लेकिन उसकी जगह हमने 790 एमएम थिकनेस का रोड बनाया है. कुल मिलाकर हमने 37 प्रतिशत थिकनेस कम की है, जिससे यह सड़क कन्वेंशनल रोड की तुलना में करीब 44% सस्ती हो जाती है. साथ ही, कन्वेंशनल रोड की तुलना में यह सड़क करीब तीन से चार गुना अधिक मजबूत है. 

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स्टील स्लैग रोड की विशिष्ट बात ये है कि कम समय में बनने के साथ ही ये अधिक टिकाऊ होती है. सतीश पांडेय ने कहा, "कोस्टल एरिया में सड़क की समय सीमा कम होती है. क्योंकि ह्यूमिड क्लाइमेट और सलाइन वॉटर के साथ सल्फेट अटैक होता है, जिसकी वजह से कन्वेंशनल बिटुमिनस सड़क कभी भी यहां पर सक्सेस नहीं हो पाती है और उसमें बहुत जल्द ही गड्ढे हो जाते हैं, लेकिन इस स्टील स्लैग एग्रीगेट से बनी रोड में ये दिक्कत नहीं आती है. यही वजह है कि इस रोड को बने 3 महीने हो गए और इसके समुद्र के इतने पास होते हुए भी आज तक इसमें कोई गड्ढे नहीं हुए."

इस प्रोजेक्ट के बारे में अदाणी हजीरा पोर्ट के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर आनंद मराठे ने कहा, "पोर्ट के अंदर हमारा जो 50 से 60 किलोमीटर का इंटरनल रोड है और जो फ्यूचर डेवलपमेंट हो रहा है, उसके अंदर भी हम चाहते हैं कि इस तकनीक का इस्तेमाल करें. हम ट्रैडिशनल एग्रीगेट का कम से कम प्रयोग करके नेचुरल रिसोर्स के वेस्ट को यूज करना चाहते हैं.

एक टन स्टील प्रोडक्शन में 20% कचरा 

भारत में हर साल 110 मिलियन टन स्टील का प्रोडक्शन होता है और 2030 तक ये 300 मिलियन टन होने का अनुमान है. हर एक टन स्टील प्रोडक्शन में 20% कचरा निकलता है. जो देश के अलग-अलग स्टील प्लांट के बाहर पहाड़ बनाकर इकट्ठा हो जाता है. ये कचरा हवा, पानी और लैंड पॉल्यूशन का मुख्य कारण बन रहा है, लेकिन भारत इस कचरे का इस्तेमाल तकनीक के जरिये इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में कर रहा है. ऐसे में अब इस टेक्नोलॉजी की मांग दुनिया के अलग-अलग देश में भी की जा रही है.

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सीएसआईआर-सीआरआरआई के निदेशक और भारतीय सड़क कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. मनोरंजन परिदा ने कहा, " इस तकनीक का विकास भारत में किया गया है , लेकिन अब इसके एप्लीकेशन के लिए दुनिया के अलग-अलग देश अपनी इच्छा दिखा रहे हैं. ऐसे में निश्चित तौर पर इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल भारत के अलावा जो बाहर के देश है, वहां पर भी किया जा सकता है. "

सतीश पांडेय ने कहा, "अभी हम अमेरिका की अग्रणी कंपनी ग्लिफ और आरएमटी के साथ मिलकर स्टील स्लैग रोड टेक्नोलॉजी को विस्तार कर रहे हैं. हम रिसर्च प्रोजेक्ट के अंदर वहां पर शिकागो में स्टील स्लैग का इस्तेमाल करके सड़क का निर्माण कर रहे हैं. हमें ओमान, रूस से भी इस तकनीक को लेकर प्रस्ताव आया है. हम टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट के थ्रू वेस्ट को कैसे वेल्थ में कन्वर्ट किया जाए, कैसे स्लैग को एग्रीगेट बनाकर सड़क निर्माण में प्रयोग कर सकते हैं, इसकी दिशा में उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं."

वेस्ट टू वेल्थ मिशन को मिल रहा बल 

CSIR-CRRI की ये पहल पीएम मोदी के "वेस्ट टू वेल्थ मिशन" (Waste to Wealth Mission) को भी साकार कर रही है. क्यूंकि आने वाले समय में स्टील के कचरे का उपयोग रनवे और रेलवे में भी किया जाएगा. कुल मिलाकर स्टील स्लैग से बनी ये सड़क इको फ्रेंडली होने के साथ प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान से बचाती है. साथ ही ग्रीनर, सस्टेनेबल और राइजिंग इंडिया के संकल्प को भी पूरा कर रही है.

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