- 2025 में GST सुधारों से टैक्स आसान हुआ और मिडिल क्लास की जेब को सीधी राहत मिली.
- डिजिटल वेरिफिकेशन से सरकारी दफ्तरों के चक्कर और अधिकारी पर निर्भरता खत्म हुई.
- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और मैन्युफैक्चरिंग पुश से रोजगार और निवेश बढ़ा.
साल 2025 को अगर एक लाइन में समझना हो, तो कहा जा सकता है कि यह भारत के लिए कागज, कतार और कन्फ्यूजन से बाहर निकलने का साल रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित मुख्य सचिवों के पांचवें राष्ट्रीय सम्मेलन में जिस ‘रिफॉर्म एक्सप्रेस' का जिक्र किया, वह सिर्फ नीतियों की बात नहीं थी बल्कि आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस होने वाला बदलाव था. सरकारी दफ्तरों के चक्कर, अधिकारी के हस्ताक्षर, सत्यापन की मजबूरी, बिजनेस शुरू करने की झंझट और टैक्स की उलझन. 2025 में सरकार ने ऐसे कई सुधारों से इन्हीं अड़चनों को सुधारने पर फोकस किया. ऐसे सुधार, जिन्हें किसी रिपोर्ट में नहीं, बल्कि राशन कार्ड, दुकान, फैक्ट्री, स्टार्टअप, किसान, नौकरीपेशा और छोटे कारोबारी की जिंदगी में महसूस किया गया.
GST का डबल बोनस- सीधा आम जनता की जेब पर असर
इस साल का सबसे बड़ा बदलाव GST टैक्स स्लैब में किया गया सुधार माना जा सकता है. पहले GST में कई स्लैब थे और आम आदमी को यह समझना मुश्किल होता था कि किस सामान पर कितना टैक्स लगेगा. 0%, 5%, 12%, 18% और 28% के साथ सेस भी था. एक ही कैटेगरी के सामान अलग-अलग स्लैब में चले जाते थे, जिससे भ्रम और विवाद बढ़ते थे.
2025 में GST को व्यवहारिक तौर पर 2-स्लैब सिस्टम की तरफ लाया गया.
लो टैक्स स्लैब: इसके तहत रोजमर्रा की जरूरत की चीजें (खाना, दवा वगैरह) आती हैं. इस टैक्स स्लैब को 0 से 5 फीसद के बीच रखा गया.
स्टैंडर्ड टैक्स स्लैबः इसके तहत अन्य ज्यादातर सामान और सेवाएं (मुख्य रूप से मिडिल क्लास के इस्तेमाल की चीजें) आती हैं, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, ट्रांसपोर्ट आदि. इसमें प्रभावी टैक्स स्लैब 18% रखा गया.
इसके अलावा एक और टैक्स स्लैब 40% का रखा गया जिसमें लग्जरी गाड़ियों और सिन उत्पादों (तंबाकू आदि) को रखा गया. हालांकि शराब जैसे उत्पाद अब भी GST के दायरे में नहीं आते हैं.

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GST Reform 2025 के बाद टैक्स स्लैब आसान हुए और रोजमर्रा की चीजों पर बोझ कम हुआ. दूध जैसे उत्पाद के दाम भी घटे. वहीं रिफंड और इनपुट क्रेडिट के ऑटोमैटिक और तय समय पर मिलने का दावा किया गया. सरकार को समय पर ईमानदारी से टैक्स देने वालों को नोटिस और जांच से राहत मिली. पूरा सिस्टम डिजिटल और पारदर्शी हुआ, जिससे टैक्स देना आसान और भरोसेमंद बन गया. तो यह कहा जा सकता है कि 2025 में GST सिर्फ टैक्स सिस्टम नहीं रहा, बल्कि आम आदमी के लिए राहत का जरिया बना.
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GST कलेक्शन पर असर कैसा रहा?
ग्रेटर नोएडा में किराने की दुकान चलाने वाले रमेश गुप्ता पहले हर महीने अकाउंटेंट के चक्कर लगाते थे. रिफंड अटकता था, नोटिस आते थे. 2025 में ऑटो GST रीकंसिलिएशन लागू हुआ. अब उनका रिफंड तय समय पर खाते में आता है. मोबाइल, वॉशिंग मशीन, किचन अप्लायंसेज (रसोई उपकरण) और कंस्ट्रक्शन मटेरियल (निर्माण सामग्री) जैसी चीजों पर टैक्स स्लैब को सरल किया गया. इससे मिडिल क्लास की जेब पर दबाव कम हुआ.
22 सितंबर 2025 से इन नए टैक्स स्लैब के लागू होने के बावजूद अक्टूबर महीने के GST कलेक्शन में 4.6% का इजाफा हुआ. अक्टूबर 2025 में GST का कुल कलेक्शन ₹1.96 लाख करोड़ था, जो पिछले साल के मुकाबले 4.6% अधिक है. पर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2025 में देश का जीएसटी कलेक्शन पिछले साल की तुलना में केवल 0.7 फीसदी बढ़कर 1,70,276 करोड़ रुपये हुआ, जबकि अक्टूबर 2025 में यह 1.95 करोड़ रुपये था.
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ईज ऑफ लाइफ- साइलेंट रिफॉर्म
2025 में सरकारी अधिकारी से सत्यापन की मजबूरी खत्म हो गई. यानी अब प्रमाणपत्र, सब्सिडी, स्कॉलरशिप, पेंशन, राशन और कई सेवाओं के लिए सरकारी दफ्तर जाकर अधिकारी से सत्यापन करवाने की मजबूरी खत्म हुई. डिजिटल डेटाबेस, आधार लिंकिंग और AI आधारित वेरिफिकेशन से लोगों की जिंदगी आसान हुई.
बिहार की रहने वाली रमा देवी को विधवा पेंशन के लिए पहले तीन दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे. पटवारी, ब्लॉक ऑफिस और बैंक. 2025 में एप्लिकेशन ऑनलाइन हुआ, डेटा वेरिफाई होते ही पेंशन सीधे खाते में पहुंचने लगा.
यही ईज ऑफ लाइफ है. न सिफारिश, न रिश्वत, न फाइल. प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में स्पष्ट कहा कि विकसित भारत का मतलब है- डिलीवरी में गुणवत्ता और भरोसा. यही भरोसा आम नागरिक को सिस्टम से जोड़ता है.

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस. दुकान से लेकर फैक्ट्री तक राहत
प्रधानमंत्री ने राज्यों से साफ कहा कि जमीन, यूटिलिटी और सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर को ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का हिस्सा मानना होगा. यही वजह है कि नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन को शीर्ष प्राथमिकता दी गई. 2025 में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मतलब सिर्फ बड़े उद्योग नहीं रहे. लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन, इंस्पेक्शन और कंप्लायंस को कम किया गया. ‘एक राज्य, एक डिजिटल बिजनेस विंडो' को बढ़ावा दिया गया.
बेकरी चलाने वाले अहमद खान को पहले नगर निगम, फूड सेफ्टी, बिजली विभाग और प्रदूषण बोर्ड से अलग-अलग मंजूरी लेनी पड़ती थी. 2025 में सिंगल डिजिटल एप्लीकेशन से काम हो गया. स्टार्टअप के लिए सेल्फ सर्टिफिकेशन और रिस्क-बेस्ड इंस्पेक्शन ने डर का माहौल खत्म किया.
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‘मेड इन इंडिया' और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग का पुश
प्रधानमंत्री का ‘जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट' का मतलब सिर्फ नारा नहीं रहा, बल्कि क्वालिटी कंट्रोल और पर्यावरणीय मानकों का हिस्सा बना.
2025 में सुधार सिर्फ कागजी नहीं रहे, फैक्ट्री फ्लोर तक पहुंचे. घरेलू विनिर्माण के लिए कई उत्पादों की पहचान की गई. आयात पर निर्भरता घटाने का ठोस रोडमैप बना.
लोकल मैन्युफैक्चरिंग बढ़ने से मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइस और एग्री मशीनरी के दाम स्थिर हुए.
तमिलनाडु के एक ऑटो कंपोनेंट यूनिट में काम करने वाले सुरेश बताते हैं कि पहले ऑर्डर अनिश्चित थे. 2025 में घरेलू सप्लाई चेन मजबूत हुई और नौकरी सुरक्षित हुई.

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सर्विस डिलीवरी में टेक्नोलॉजी और AI का इस्तेमाल
प्रधानमंत्री ने कहा कि तकनीक पूरे जीवन चक्र में सुरक्षित और स्थिर समाधान दे सकती है. 2025 में यह सोच जमीन पर उतरी. 2025 में टेक्नोलॉजी सिर्फ ऐप तक सीमित नहीं रही. सरकार ने शासन में AI और डेटा आधारित निगरानी को बढ़ावा दिया. साइबर सुरक्षा को हर नागरिक की सुरक्षा से जोड़ा गया. किसान सम्मान निधि, स्कॉलरशिप और स्वास्थ्य योजनाओं में डुप्लीकेट और फर्जी लाभार्थी के हटने और असली लोगों तक पैसा समय पर पहुंचने का दावा किया गया. शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और पर्यटन में सर्विस क्वालिटी मापने के लिए डेटा का इस्तेमाल हुआ. इससे शिकायतों का निपटारा तेज हुआ.
‘रिफॉर्म एक्सप्रेस' और युवा भारत
प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में कहा कि भारत अपनी युवा आबादी की ताकत से रिफॉर्म एक्सप्रेस पर सवार है. लगभग 70 प्रतिशत आबादी कामकाजी उम्र की है. स्किल मैपिंग, इंडस्ट्री-एजुकेशन सहयोग और टूरिज्म, स्पोर्ट्स, एग्रीकल्चर जैसे सेक्टरों में नए मौके बने. टूरिज्म रोडमैप, हाई वैल्यू एग्रीकल्चर और फूड बास्केट बनने की दिशा में कदमों का असर गांव और छोटे शहरों तक दिखा.
कुल मिलाकर, साल 2025 को जहां आर्थिक सुधारों के वर्ष के रूप में याद रखा जाएगा, वहीं इसे, देश के नागरिकों का यहां के सिस्टम में विश्वास लौटने का साल भी कहा जा सकता है. इसे कागज से भरोसे तक के सफर के वर्ष के रूप में याद रखा जाएगा. इस साल जीएसटी ने जहां जेब को राहत दी, वहीं ईज ऑफ लाइफ ने सम्मान बढ़ाया तो ईज ऑफ डूइंग बिजनेस ने हौसला बढ़ाया, मैन्युफैक्चरिंग ने कारोबार और रोजगार दिया और टेक्नोलॉजी से पारदर्शिता आई. तेजी से सुलझती आम आदमी की मुश्किलें और भरोसा, यही है रिफॉर्म एक्सप्रेस.
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