- 2025 में भारत ने आर्थिक और नीतिगत सुधारों के माध्यम से विकास की नई दिशा चुनी.
- GST, इनकम टैक्स, श्रम कानून और जन विश्वास जैसे सुधारों ने आम जनता और MSME को राहत दी.
- FDI, व्यापार समझौते, न्यूक्लियर सुधार और ग्रामीण रोजगार ने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की मजबूत नींव रखी.
साल 2025 को भारत के समकालीन इतिहास में केवल एक आर्थिक उपलब्धि के रूप में नहीं, बल्कि एक मानसिक और नीतिगत बदलाव के वर्ष के तौर पर देखा जाएगा. यह वह साल रहा जब भारत ने यह फैसला किया कि अब सुधारों को लेकर हिचकिचाहट नहीं होगी, न कानूनों में, न टैक्स में और न ही शासन की सोच में. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार अब सिस्टम बदलने वाले फैसले लेगी और पुराने ढांचों को ढोने के बजाय उन्हें तोड़कर नया बनाने के लिए तैयार है. यह बदलाव केवल नीतियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने यह संकेत भी दिया कि भारत अपनी विकास यात्रा को अब छोटे कदमों से नहीं, बल्कि बड़े निर्णयों से आगे बढ़ाना चाहता है.
आंकड़ों से आगे की कहानी
8.2 प्रतिशत की GDP ग्रोथ अपने आप में एक मजबूत आंकड़ा है, लेकिन इसका असली महत्व इस बात में छिपा है कि यह वृद्धि ऐसे समय में आई, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता, युद्ध, आपूर्ति बाधाओं और महंगाई के दबाव से जूझ रही थी. यह बढ़त किसी एक सेक्टर की तेजी का नतीजा नहीं बल्कि उस व्यापक सुधार प्रक्रिया का परिणाम है जिसमें टैक्स प्रणाली को सरल किया गया, श्रम कानूनों को स्पष्ट बनाया गया, निवेश के रास्ते खोले गए और व्यापार को नियमों के डर से बाहर निकालने की कोशिश की गई.

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यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 2025 में भारत की आर्थिक नीति ने स्टेबलिटी से आगे बढ़कर स्केल की ओर कदम रखा.
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श्रम सुधार: विकास की निर्णायक नींव
श्रम सुधार अक्सर राजनीतिक बहसों में सबसे ज्यादा विरोध झेलते हैं, लेकिन 2025 ने दिखाया कि अगर बदलाव को स्पष्टता और संतुलन के साथ लागू किया जाए, तो उसका असर सकारात्मक हो सकता है. 29 पुराने श्रम कानूनों को चार कोड्स में समेटना केवल प्रशासनिक सुधार नहीं था, बल्कि यह उस भ्रम को खत्म करने की कोशिश थी, जो दशकों से उद्योगों और कामगारों, दोनों को परेशान कर रहा था. इन सुधारों का महत्व इस बात में है कि इन्होंने कामगारों की सामाजिक सुरक्षा को कमजोर किए बिना उद्योगों को स्पष्ट नियम दिए. महिला श्रम भागीदारी, संगठित रोजगार और औद्योगिक संबंधों में स्थिरता जैसी चीजों पर इसके दीर्घकालिक असर दिखेंगे.
GST और इनकम टैक्स: भरोसे की राजनीति
GST को दो स्लैब में लाना और इनकम टैक्स में 12 लाख रुपये तक की आय को टैक्स फ्री करना न केवल सरकार की आय पर असरकारी होने थे बल्कि इसने सरकार में लोगों का भरोसा मजबूत किया. GST सुधारों ने यह संदेश दिया कि टैक्स प्रणाली का मकसद केवल वसूली करना नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है. बाजार में खपत बढ़ने, त्योहारों के दौरान रिकॉर्ड बिक्री से और टैक्स कलेक्शन के स्थिर रहने से इस सोच को और मजबूती मिली. इसका असर सीधे दिखा रोजमर्रा की चीजें सस्ती हुईं, छोटे कारोबारियों का कंप्लायंस बोझ घटा और टैक्स विवाद और नोटिस कम हुए.
दूसरी तरफ, इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 को हटाकर नया कानून लाना एक प्रतीकात्मक कदम बना जिसने औपनिवेशिक जटिलता से आधुनिक सरलता की ओर कदम बढ़ाना कहा जा सकता है. मध्यम वर्ग के लोगों के लिए यह टैक्स केवल राहत नहीं बल्कि यह संकेत भी था कि नीति निर्माता घरेलू बजट की वास्तविकताओं को भी समझते हुए फैसले ले रहे हैं. नतीजा यह हुआ कि इस साल दिवाली में 6.05 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज हुई और नवरात्रि की खरीदारी एक दशक में सबसे मजबूत रही.
जन विश्वास सुधारः शासन की भाषा में बदलाव
2025 में जन विश्वास सुधार (Jan Vishwas Reforms) के तहत सरकार ने 200 से ज्यादा छोटे अपराधों को डीक्रिमिनलाइज किया. LPG स्टॉक रजिस्टर में तकनीकी गलती, बीज कानून में लेबलिंग की छोटी चूक, पर्यावरण नियमों में मामूली देरी, फैक्ट्री रिटर्न भरने में साधारण त्रुटि, जैसे मामलों में जेल नहीं, सिर्फ जुर्माना होगा.
NDA शासित राज्यों ने भी मिलकर 1,000 से ज्यादा प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया. यह सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सोच का बदलाव था- सरकार अब डराने वाली नहीं, सहयोग करने वाली दिखी. छोटे-छोटे तकनीकी उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना केवल कानून में संशोधन नहीं है, यह शासन की मानसिकता में बदलाव है. जब सरकार यह मानती है कि हर गलती अपराध नहीं होती, तो वह नागरिक और उद्यमी- दोनों के साथ भरोसे का रिश्ता बनाती है.
यह बदलाव खासतौर पर MSME और छोटे व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अब नोटिस और मुकदमों के डर के बिना काम कर सकते हैं.

इज ऑफ डूइंग बिजनेस: नियम कम, भरोसा ज्यादा
2025 को इज ऑफ डूइंग बिजनेस का रीसेट साल भी कहा गया. क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर्स की समीक्षा में 76 उत्पादों से अनिवार्यता हटाई गई, 200 से अधिक कैटेगरी डीरेगुलेट किए गए. पहले छोटे स्टील या इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने वालों को हर बैच पर महंगा सर्टिफिकेशन कराना पड़ता था. अब छोटे उत्पादों को इस बोझ से राहत मिलेगी.
MSME, FDI और व्यापार: भारत का आत्मविश्वास
MSME की नई परिभाषा और इंश्योरेंस सेक्टर में 100 प्रतिशत FDI की अनुमति यह दिखाती है कि भारत अब नियंत्रण की जगह प्रतिस्पर्धा को प्राथमिकता दे रहा है. इससे विदेशी पूंजी आएगी, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं मिलेंगी.
इसके साथ UK, ओमान, न्यूजीलैंड और यूरोपीय देशों के साथ हुए व्यापार समझौते इस बात का संकेत हैं कि भारत अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में केवल एक बाजार नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद साझेदार बनना चाहता है. 100 डॉलर बिलियन निवेश प्रतिबद्धता वाला EFTA समझौता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक विश्वास का भी प्रमाण है.
न्यूक्लियर सुधार, ग्रामीण रोजगार और कानून: भविष्य की तैयारी
SHANTI बिल, ग्रामीण रोजगार गारंटी का विस्तार और भारतीय न्याय संहिता, ये तीनों सुधार यह दिखाते हैं कि सरकार ने 2025 को केवल आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं रखा. न्यूक्लियर सेक्टर को नियंत्रित लेकिन निवेश-अनुकूल बनाना, ग्रामीण रोजगार को राहत से जोड़कर संपत्ति निर्माण की ओर ले जाना और 160 साल पुराने IPC को बदलना.
भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने 160 साल पुराने IPC को हटाया. अब भारत का कानून साइबर क्राइम को पहचानता है, e-FIR की सुविधा देता है और समयबद्ध ट्रायल को अनिवार्य करता है. ये फैसले इस बात का संकेत हैं कि नीति निर्माता अल्पकालिक लाभ से आगे की सोच रहे हैं.
विकसित भारत जी राम जी विधेक 2025 के तहत रोजगार गारंटी 100 दिनों की बजाए 125 दिनों की होगी. काम को गांव की संपत्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ा गया साथ ही इसके डिजिटल ट्रैकिंग से पारदर्शिता बढ़ेगी.
2025 ने भारत की दिशा तय की
2025 को लेकर मतभेद हो सकते हैं, आलोचनाएं भी होंगी जैसा कि किसी भी बड़े बदलाव के साथ होता है. लेकिन इसमें संदेह नहीं कि यह साल भारत के सुधार विमर्श में एक स्पष्ट मोड़ के रूप में याद किया जाएगा.
2025 वह साल रहा जब भारत ने तय कर लिया कि वह सिर्फ तेजी से नहीं, बल्कि सही दिशा में आगे बढ़ेगा. यह वह साल रहा जब भारत ने तय किया कि विकास केवल नारे से नहीं, बल्कि कठिन फैसलों, सरल कानूनों और भरोसे पर आधारित शासन से आता है.
ये सुधार की ठोस नींव हैं- जहां कानून सरल हों, टैक्स न्यायपूर्ण हो, कारोबार आसान हो और अवसर हर नागरिक तक पहुंचे. अगर आने वाले वर्षों में इन सुधारों की निरंतरता बनी रही, तो 2025 को विकसित भारत 2047 की असली शुरुआत के तौर पर देखा जाएगा.
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